Update
👉 पीलीबंगा - वंदनवार व थाली सजाओ प्रतियोगिता का आयोजन
👉 राजसमंद - मासखमण तप अभिनन्दन कार्यक्रम
👉 सिलीगुड़ी - आतिशबाजी को कहें ना का पोस्टर बैनर होर्डिंग के द्वारा प्रचार प्रसार
👉 बेहाला - जैन संस्कार विधि से दीपावली पूजन पर कार्यशाला आयोजित
👉 जाखल मंडी - दीप सजाओ प्रतियोगिता का आयोजन
👉 मदुरै - तेमम द्वारा प्रदुषण मुक्त दीपावली अभियान
👉 जयपुर - तेयुप द्वारा सेवा कार्य
प्रस्तुति - तेरापंथ *संघ संवाद*
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*अतिशबाजी को कहे ना*
अणुव्रत महासमिति द्वारा चलाये जा रहे इस अभियान में प्रचार प्रसार में सहयोगी बने।
दीपावली कैसे मनायें?
*वीडियो को अवश्य देखे*
प्रस्तुति - *अणुव्रत महासमिति*
प्रसारक - तेरापंथ *संघ संवाद*
पटना सिटी: -
🔸धनतेरस पर आध्यात्मिक दिपावली सामायिक अनुष्ठान
🔸Eco Friendly Dipawali पोस्टर का विमोचन एवं प्रचार प्रसार
👉 ईरोड़ - प्रदूषण रहित दीपावली कार्यक्रम के पोस्टर का विमोचन एवं प्रचार प्रसार
👉 राउरकेला - Eco Friendly Diwali पोस्टर्स का विमोचन एवं प्रचार - प्रसार
👉 कोयम्बत्तूर - प्रदूषण रहित दिवाली मनाने पर कार्यक्रम
👉 कोयम्बत्तूर - जैन संस्कार विधि के प्रचार प्रसार में तेयुप की अनूठी पहल
👉 कांटाबांजी - दीपावली पूजन जैन संस्कार विधि कार्यशाला का आयोजन
👉 विजयनगर (बेंगलोर) - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 बल्लारी - आतिशबाजी को कहें ना -Say no to crackers" कार्यशाला का आयोजन
👉 जोरावरपुरा:- संस्कार निर्माण शिविर का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 178* 📝
*प्रबुद्धचेता आचार्य पुष्पदन्त एवं भूतबलि*
*षट्खंडागम जीवट्ठाण खण्ड—* यह विशाल ग्रंथ है। इसके छह खण्ड हैं। प्रथम खण्ड का नाम जीवट्ठाण (जीवस्थान) है। इस खंड में सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भाव, अल्पबहुत्व नाम के आठ प्रकरण हैं। तदंतर 9 चूलिकाएं हैं। जीव के गुण-धर्म और नाना अवस्थाओं का वर्णन इस खंड में है। इसकी कुल सूत्र संख्या 2375 है।
*खुद्दाबंध खण्ड—* द्वितीय खंड का नाम खुद्दाबंध (क्षुद्रकबंध) है। इस खंड में 11 अनुयोगद्वार हैं। इस खंड के प्रारंभ में अनुयोगों से पूर्व बंधकों की प्रारूपणा है एवं अनुयोगों के बाद चूलिका में महादण्डक प्रकरण दिया गया है। इस प्रकार प्रस्तुत खण्ड के 13 अधिकार हैं। कर्म प्रकृति प्राभृत के बंधक अधिकार के बंध आदि चार अनुयोगों में से बंधक विषय का वर्णन इस खण्ड में किया गया है। खण्ड के कुल सूत्र 1582 हैं। महाबंधक की अपेक्षा यह प्रकरण छोटा होने के कारण इस खंड का नाम क्षुद्रक बंध है।
*बंधसामित्त विचय खण्ड (बंध स्वामित्व विचय)—* इस खण्ड में कर्मबंध करने वाले स्वामियों पर विचार किया गया है। यह इस खण्ड के नाम से स्पष्ट है। इस खण्ड के कुल 324 सूत्र हैं।
*वेयणा खण्ड (वेदना खण्ड)—* इसके दो अनुयोग द्वार हैं। सूत्र संख्या 1449 है। इस खंड की प्रथम कृति अनुयोग द्वार के सूत्र संख्या 75 है। द्वितीय वेयणा अनुयोग द्वार विषय प्रतिपादन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। संपूर्ण खंड का नाम वेयणा है।
*वर्गणा खण्ड—* इसमें स्पर्श, कर्म और प्रकृति नामक तीन अनुयोग द्वार हैं। इन तीनों अनुयोग द्वारों में प्रथम अनुयोग द्वार के 63, द्वितीय के 31 एवं तृतीय के 142 सूत्र हैं। इस खण्ड में विभिन्न प्रकार की कर्म पुद्गल वर्गणाओं का प्रतिपादन है।
*महाबंध खण्ड—* षष्ठ का नाम महाबंध है। महाबंध का विस्तार 30 सहस्र श्लोक परिमाण है। प्रकृति, स्थिति, अनुभाग, प्रदेश बंध की व्याख्या इस खण्ड में है।
षट्खंडागम के छह खंडों में चालीस सहस्र श्लोक हैं। यह अंतिम खंड महाबंध के नाम से प्रसिद्ध है। महाबंध का दूसरा नाम महाधवल भी है। षट्खंडागम ग्रंथ से संयुक्त होते हुए भी यह स्वतंत्र कृति के रूप में उपलब्ध है। षट्खंडागम के पांचो खंडों से महाबंध का विस्तार अधिक है। 'धवला' टीकाकार आचार्य वीरसेन ने इस पर टिका लिखने की आवश्यकता नहीं समझी। यह महाबंध आधुनिक शैली में सात भागों में *'भारतीय ज्ञानपीठ'* द्वारा प्रकाशित है। जैन दर्शन सम्मत कर्मवाद का विवेचन इस कृति में है।
*षट्खंडागम की प्रामाणिकता* के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
📙 *'नींव के पत्थर'* 📙
📝 *श्रंखला -- 2* 📝
*चतरोजी पोरवाल*
*बहिष्कार*
चतरोजी, बच्छराजजी आदि अनेक वृद्ध तथा प्रमुख श्रावक वहां उपस्थित थे। उन्होंने जब देखा की पत्र को पढ़ने में मुनि जी ने मायाचार किया और पत्र फट जाने पर उस मायाचार को ढकने के लिए अनुप्रयुक्त शब्द-प्रयोग एवं अनुचित व्यवहार का आश्रय ले रहे हैं, तो उन सबका मन ग्लानि से भर गया। अनेक वर्षों से लोग मुनिजनों के कदाचारों एवं असद व्यवहारों से खिन्न थे। उनके मन में अश्रद्धा का भाव बूंद-बूंद करके बढ़ता जा रहा था। उपर्युक्त घटना ने उस भाव को आकंठ भर दिया। उन्होंने तात्कालीन शिथिल श्रमण-संघ को मान्य करना छोड़ दिया और घोषणा कर दी कि जब तक आचार दृढ़ता की ओर मुनिजनों के चरण नहीं बढ़ेंगे, हम उन्हें वंदन आदि के द्वारा सत्कृत नहीं करेंगे। उनके द्वारा किए गए उस बहिष्कार का प्रभाव आस-पास के क्षेत्रों पर तो पड़ा ही, दूरवर्ती क्षेत्र भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहे।
बहिष्कार के समाचार सुनकर आचार्य रघुनाथ जी अत्यंत चिंतित हुए। उन्होंने आंतरिक तथा बाह्य दबावों के माध्यम से उन लोगों को झुकाने के अनेक प्रयास किए, परंतु किसी में भी सफलता प्राप्त नहीं हुई। अंततः उन सबको वत्सलतापूर्वक समझाकर पुनः मार्ग पर लाने का उपाय सोचा गया।
*स्वामीजी राजनगर में*
मानसिक तथा वैचारिक स्तर पर दूर हो जाने वाले व्यक्तियों को समझाकर पुनः अपने साथ कर लेना कोई सरल कार्य नहीं होता। उसके लिए ऐसे गंभीर व्यक्ति की आवश्यकता होती है जो हर परिस्थिति में स्वयं शांत रह सके और उखड़े हुए मनों में श्रद्धा के बीज बो सके। आचार्य रघुनाथजी ने स्वामी भीखणजी को इस कार्य के लिए सर्वथा उपयुक्त पाया। वे जहां आगमज्ञ थे वहां तर्क निष्णात भी थे। सर्वाधिक महत्ता की बात यह थी कि वे एक ऐसे विरागी व्यक्ति थे, जिन्हें देखने मात्र से भी श्रद्धा के अंकुर प्रस्फुटित होने लगते थे। आचार्य रघुनाथजी ने उन्हें राजनगर जाने का आदेश दिया और वहां की सारी परिस्थिति समझाते हुए कहा— "उन सबकी शंकाओं का समाधान तो तुम्हें करना ही है, पर तुम्हारा प्रथम कार्य यह होगा कि उन्हें वंदन-व्यवहार पुनः चालू कर देने के लिए तैयार कर लो।"
स्वामीजी संवत 1815 का चातुर्मास करने के लिए राजनगर गए। टोकरजी, हरनाथजी, वीरभाणजी और भारमलजी - ये चार साधु उनके साथ थे। स्वामीजी के आगमन से स्थानीय श्रावक अत्यंत प्रसन्न हुए। उन लोगों ने स्वामी जी के तत्त्वज्ञान और विराग-भाव के विषय में बहुत-बहुत बातें सुन रखी थीं। चतरोजी पोरवाल तथा बच्छराजजी ओसवाल आदि वहां के प्रमुख एवं तत्त्वज्ञ श्रावक एकत्रित होकर स्वामीजी के पास आए। स्वामीजी ने उनकी शंकाओं तथा वंदन-व्यवहार छोड़ देने आदि विषयों पर बातचीत की। श्रावकों ने साधु-समाज की आचार-विचार संबंधी दयनीय स्थिति की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा— "आचार-विचार की शुद्धता के आधार पर ही साधु वंदनीय होते हैं। उन दोनों में ही जब भरपूर खामियां हैं, तो फिर वंदनीयता रह कहां जाती है?" स्वामीजी ने अपने बुद्धि कौशल से श्रावकों को समझाने का प्रयास किया और नरम तथा गर्म उपायों को यथावश्यक काम में लेकर अंततः उन्हें चरण छू कर वंदन करने के लिए सहमत कर लिया। श्रावकों ने कहा— "आप विरागी हैं, अतः आप के विश्वास पर हम वंदन तो प्रारंभ कर देते हैं, परंतु हमारे मन की शंकाएं यथावत् हैं।" स्वामीजी ने कहा— "चार महीनों का समय हमारे पास है, अतः शंकाओं का समाधान भी धीरे-धीरे किया जाता रहेगा।"
*श्रावकों को आश्वस्त कर देने के बाद भी स्वामीजी के मन में एक तुमुल संघर्ष छिड़ गया वह संघर्ष क्या था...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
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प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
*सामयिक साधक बन भक्ति चौदस मनाए*
ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन लिंक:
Https://bit.ly/SamayikSadhak
आप बन चुके हो तो औरों को सामयिक साधक बनने की प्रेरणा दे
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*विशेष सूचना*
परम पावन आचार्यश्री महाश्रमणजी दीपावली के पावन अवसर पर अर्थात गुरुवार 19 अक्टूबर 2017 को सायं 7.21 बजे महाश्रमण विहार राजरहाट में विशेष वृहद मंगलपाठ फरमाएंगे।
आप सपरिवार इस मंगलमय उपक्रम का लाभ उठाएं।
निवेदक
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, कोलकाता
प्रस्तुति -🌻 तेरापंथ *संघ संवाद* 🌻
News in Hindi
👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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