Update
👉 *अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के तत्वावधान में*
💥 *चेन्नई - दक्षिणाचल स्तरीय आँचलिक कन्या कार्यशाला पहचान*
💥 *प्रथम सत्र-अभ्युदय सत्र, विषय - पहला कदम स्व की पहचान*
💥 *मातृहृदया साध्वी प्रमुखा श्री ने दी बाहरी पहचान के साथ भीतरी पहचान बनाने की प्रेरणादायी सिख*
💥 *अभातेमम अध्यक्ष कुमुद कच्छारा का स्वागत वक्तव्य*
💥 *6 राज्यो के 35 क्षेत्रों से लगभग 550 कन्याओं की उपस्थिति*
दिनांक - 17-08-2018
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 17 अगस्त 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
Update
👉 *अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के तत्वावधान में*
💥 *चेन्नई - दक्षिणाचल स्तरीय आँचलिक कन्या कार्यशाला पहचान का हुआ आगाज*
💥 *पहचान रैली के रूप में कन्याएं पहुची पूज्यवर के सान्निध्य में*
💥 *पूज्य प्रवर के सान्निध्य प्रेरणा पाकर*
💥 *अभातेमम अध्यक्ष कुमुद कच्छारा की उपस्थिति में*
💥 तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरला, तेलांगना व ओडिशा से लगभग *470* कन्याओं की उपस्थिति
दिनांक - 17-08-2018
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
Source: © Facebook
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 57* 📜
*बुधमलजी बैद*
*संगीत प्रेमी*
बुधमलजी बैद लाडनूं के निवासी थे। उनका जीवन काल संवत् 1903 से संवत् 1967 कार्तिक शुक्ला दशमी तक का था। शारीरिक और मानसिक दोनों ही दृष्टियों से वे कोमल प्रकृति के व्यक्ति थे। उनका रहन-सहन बड़ा सुरुचिपूर्ण था। अच्छे तत्त्वज्ञ होने पर भी उनकी जिज्ञासा वृत्ति अत्यंत जागरूक थी। प्रत्येक बात की गहराई तक पहुंच कर चिंतन करना उनका स्वभाव बन चुका था। संगीत के प्रति उनके मन में बहुत आदरभाव था। वे स्वयं भी गाने में बड़े निपुण थे। उनका कंठ तेज होने के साथ-साथ अत्यंत मधुर था। लाडनूं की संगीत सभाओं में तो वे प्रायः जाया ही करते थे, परंतु आसपास के किसी भी शहर में यदि ऐसी सभाओं का आयोजन होता तो वे बहुधा वहां भी पहुंच जाया करते थे। संगीत उनका व्यसन था।
*मुख्य और गौण*
धर्म शासन में उनकी परिपूर्ण निष्ठा थी। जयाचार्य उनकी श्रद्धा के केंद्र थे। तेरापंथ उनकी रग-रग में रमा हुआ था। दूलीचंदजी दुगड़ जैसे भक्तिमान् और संघ-हितैषी श्रावकों का उन्हें सत्संग प्राप्त था। उनके मन में भी वैसी ही संघ सेवा की अदम्य भावना विद्यमान थी। उनकी वह भावना निम्नोक्त घटना के प्रकाश में आंकी जा सकती है।
बुधमलजी के प्रथम पुत्र का जन्म हुआ तब वे अपने घर में विद्यमान न होकर दूलीचंदजी दुगड़ की हवेली में थे। वहां वे किसी निजी कार्य से गए हुए नहीं थे, अपितु जयाचार्य के विरुद्ध जोधपुर से आने वाले घुड़सवारों के प्रतिरोध में जो रक्षा व्यवस्था बनाई गई थी, उसी के सिलसिले में वहां उपस्थित थे। पुत्र जन्म का शुभ समाचार उन्हें वहीं प्राप्त हुआ। फिर भी वे घर आने को लालायित नहीं हुए। घर पर पुत्र जन्म के उत्सव मनाए जा रहे थे, परंतु बुधमलजी उनमें सम्मिलित होने के बजाय संघ के सम्मान की सुरक्षा में प्राणों की बाजी लगा देने को उद्यत हो रहे थे। उनकी दृष्टि में बलिदान मांगने वाला वह सेवा कार्य मुख्य था और पुत्र जन्मोत्सव गौण। वे आजीवन इसी प्रकार धर्म संघ के जागरूक प्रहरी बने रहे।
*तेरापंथ के जागरूक श्रावक नथमलजी बैद के प्रेरणादायी जीवन-वृत्त* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 403* 📝
*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र*
*श्रीहेमचन्द्रसूरिणामपूर्वं वचनामृतम्।*
*जीवातुर्विश्वजीवानां राजवित्तावनिस्थितम्।।*
'आचार्य हेमचंद्र के वचन समस्त प्राणियों के लिए अमृत तुल्य हैं।' प्रभाचंद्राचार्य के इन शब्दों में अतिरञ्जन नहीं है। हेमचंद्र युग संस्थापक आचार्य थे। वे प्रज्ञा सम्पन्न थे। सार्धत्रय कोटि पद्यों की रचना कर उन्होंने सरस्वती के भंडार को साहित्य से भरा। गुजरात नरेश सिद्धराज जयसिंह को अध्यात्म से प्रभावित कर एवं उनके उत्तराधिकारी नरेश कुमारपाल को व्रत दीक्षा प्रदान कर जैन शासन के गौरव को सहस्र गुणित किया। उनके ज्ञान सूर्य की किरणों के प्रसार से गुजरात पुलक उठा। धरा का कण-कण अध्यात्म-आलोक से जगमगा गया। सामाजिक, राजनैतिक जीवन में नवचेतना का जागरण हुआ। साहित्य को नया रूप मिला। कला सजीव हो गई। गुजरात राज्य में यह समय जैन धर्म के उत्कर्ष का काल था।
*गुरु-परंपरा*
प्रभावक चरित ग्रंथ के अनुसार आचार्य हेमचंद्र के गुरु चंद्रगच्छ के देवचंद्रसूरि थे। देवचंद्रसूरि के गुरु प्रद्युम्नसूरि थे।
प्रबंधकोश के अनुसार हेमचंद्रसूरि की गुरु परंपरा पूर्णतल्लगच्छ से संबंधित थी। पूर्णतल्लगच्छ में श्रीदत्तसूरि हुए। श्रीदत्तसूरि के शिष्य यशोभद्र, यशोभद्र के पट्टशिष्य प्रद्युम्नसूरि, उनके पट्टशिष्य गुणसेनसूरि थे। श्री गुणसेनसूरि के पट्टशिष्य देवचंद्रसूरि तथा उनके शिष्य हेमचंद्राचार्य थे।
'कुमारपाल प्रतिबोध' नामक काव्य में श्री हेमचंद्राचार्य ने अपना संबंध पूर्णतल्लगच्छ से बताया है।
चंद्रगच्छ यथार्थ में गच्छ नहीं चंद्रकुल था। यह चंद्रकुल कोटिक गण से संबंधित था। कोटिक गण से अनेक शाखाओं, प्रशाखाओं एवं अवांतर गच्छों का विकास हुआ। उनमें एक पूर्णतल्लगच्छ था। जिसका चंद्रगच्छ से उद्भव हुआ। पूर्णतल्लगच्छ और चंद्रगच्छ दोनों का निकट का संबंध था।
त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित प्रशस्ति महाकाव्य में हेमचंद्रसूरि की गुरु परंपरा का संबंध कोटिक गण वज्रशाखा के अंतर्गत माना गया है। पूर्व गुरुजनों के नामों का क्रम प्रायः सभी ग्रंथों में समान है।
श्रीदत्तसूरि कई राजाओं के प्रतिबोधक थे। यशोभद्रसूरि राजपुत्र एवं महान् तपस्वी संत थे। प्रद्युम्नसूरि समर्थ व्याख्याता थे। गुणसेनसूरि सिद्धांतों के विशेषज्ञ थे एवं शिष्यहिता टीका रचना में वादिवेताल शांतिसूरि के प्रेरणा स्रोत थे। उनके उत्तराधिकारी देवचंद्रसूरि प्रद्युम्नसूरि के शिष्य थे एवं हेमचंद्रसूरि के गुरु थे। दिगंबर विद्वान् कुमुदचंद्र के साथ शास्त्रार्थ करने वाले वादिदेवसूरि हेमचंद्रसूरि के गुरु देवचंद्रसूरि से भिन्न थे।
*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र के जन्म एवं परिवार तथा जीवन-वृत* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
*इन्द्रियों पर विजय: वीडियो श्रंखला ३*
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संप्रेषक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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