Update
👉 भिलवाड़ा - श्री उत्सव का आयोजन
👉 सरदारशहर - "महत्व जैन संस्कार विधि" कार्यशाला एवं जैन संस्कार विधि से सामुहिक जन्मोत्सव का आयोजन
👉 शाहीबाग, अहमदाबाद - पर्यावरण शुद्धता सम्बन्धित कार्यक्रम का आयोजन
👉 कालबादेवी(मुंबई) - मासखमण तप अनुमोदना का भव्य कार्यक्रम
👉 पीलीबंगा - पापो को पखारे, जीवन को संवारे" कार्यशाला
👉 बेंगलुरु: महिला मंडल द्वारा निर्धारित करें अपना लक्ष्य कार्यशाला आयोजित
👉 आसीन्द - सुखी परिवार कैसे बनाये कार्यक्रम का आयोजन
👉 हांसी: "अणुव्रत बने जीवन मूल्यों की प्रयोगशाला" विषयक संगोष्ठी का आयोजन
👉 कांदिवली (मुंबई) - जैन विद्या कार्यशाला का आयोजन
भायंदर (मुंबई) - मासखमण तप अभिनंदन समारोह का भव्य आयोजन
👉 ब्यावर - दम्पति शिविर का आयोजन
👉 बारडोली - अभातेयुप संगठन यात्रा
👉 लिम्बायत, सूरत - जैन विद्या कार्यशाला परीक्षा का आयोजन
👉 पुणे - दो दिवसीय प्रेक्षाध्यान शिविर का आयोजन
👉 आसीन्द - व्यक्तित्व विकास कार्यशाला का आयोजन
👉 राजसमन्द - अणुव्रत समिति शपथ ग्रहण समारोह
👉 रोहतक: अणुव्रत महासमिति की हरियाणा - "संगठन यात्रा" का दूसरा पड़ाव
👉 नोखा - मासखमण तपस्वी का अनुमोदन कार्यक्रम का आयोजन
👉 अहमदाबाद - मासखमण तप अभिनंदन कार्यक्रम का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 23 अगस्त 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
💢 *निमंत्रण* 💢
🌀 *चलो सिरियारी* 🌀
💢 *216 वां भिक्षु चरमोत्सव*💢
💥 *विराट भिक्षु भक्ति संध्या*
*दिनांक 22 सितम्बर 2018, सिरियारी*
♨ *आयोजक-निमंत्रक - आचार्य श्री भिक्षु समाधि स्थल संस्थान, सिरियारी*♨
प्रसारक -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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Update
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 408* 📝
*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र*
*जन्म एवं परिवार*
गतांक से आगे...
चांगदेव के मुनि दीक्षा ग्रहण का समय प्रबंध चिंतामणि, प्रबंधकोश आदि में उल्लिखित नहीं है, परंतु इन ग्रंथों में प्राप्त प्रसंगानुसार पाहिनी ने चांगदेव को गुरु चरणों में समर्पित किया उस समय बालक की अवस्था आठ वर्ष की थी। इस आधार पर मुनि दीक्षा ग्रहण का समय वीर निर्वाण 1624 (विक्रम संवत् 1154, ईस्वी सन् 1097) था। ज्योतिष कालगणना के आधार पर विक्रम संवत् 1154 माघ शुक्ला चतुर्दशी को शनिवार का योग पड़ता है, अतः यह संवत् ही होना चाहिए। प्रभावक चरित्र में उल्लिखित मुनि दीक्षा ग्रहण का समय विक्रम संवत् 1150 माघ शुक्ला चतुर्दशी शनिवार ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से विवादास्पद है।
आचार्य मेरुतुं ने आचार्य हेमचंद्र का दीक्षा स्थान कर्णावती माना है। इतिहास विशेषज्ञ प्रभाचंद्राचार्य आदि अधिकांश जैन विद्वानों के अभिमतानुसार हेमचंद्र का दीक्षा संस्कार खम्भात में हुआ।
गुरु द्वारा नवदीक्षित बालक चांगदेव का दीक्षा नाम सोमचंद्र रखा गया। मुनि सोमचंद अपने शीतल स्वभाव के कारण यथार्थ में सोमचंद्र थे। उनकी प्रतिभा प्रखर थी। तर्कशास्त्र, लक्षणशास्त्र एवं साहित्य की अनेक विधाओं का उन्होंने गंभीर अध्ययन किया। एक पद से शत-सहस्र पदों का बोध कराने वाली शीघ्रग्राही बुद्धि को प्राप्त करने के लिए मुनि हेमचंद्र ने सोचा 'काश्मीर निवासिनी विद्याधिष्ठात्री सरस्वती देवी की आराधना करनी चाहिए।' उन्होंने अपने विचार देवचंद्रसूरि के सामने रखे। गुरु का आदेश प्राप्त कर कई गीतार्थ मुनियों के साथ उन्होंने काश्मीर की ओर प्रस्थान किया। रेवतावतार नामक तीर्थ स्थान पर नेमिचैत्य में रुके। रात्रि में सोमचंद्र ने ध्यान किया। उस समय सरस्वती देवी ने प्रत्यक्ष होकर कहा "निर्मलमति वत्स! तुम्हें देशांतर में जाने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हारी भक्ति पर मैं संतुष्ट हूं। तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी।" यह कहकर देवी अदृश्य हो गई। सोमचंद्र मुनि को इस प्रकार सरस्वती की कृपा प्राप्त हुई। यथेप्सित वरदान की उपलब्धि हो जाने के बाद मुनि सोमचंद्र ने आगे की जाने वाली काश्मीर यात्रा स्थगित कर दी। वे पुनः गुरु चरणों में लौट आए। कुछ ही वर्षों में सोमचंद्र दिग्गज विद्वानों की गणना में आने लगे। गुरु ने धर्मधुरा धौरेय श्रमण सोमचंद्र को योग्य समझकर वीर निर्वाण 1636 (विक्रम संवत् 1166) बैशाख तृतीया के दिन मध्याह्न में आचार्य पद पर नियुक्त किया।
आचार्य पद प्राप्ति के समय सब प्रकार के ग्रह बलवान् थे एवं लग्न वृद्धिकारक थे। इस समय उनकी अवस्था 21 वर्ष की थी। आचार्य पद प्राप्ति के बाद उनका नाम हेमचंद्र हुआ।
आचार्य हेमचंद्र ने अपनी माता पाहिनी को भी इस अवसर पर आर्हती दीक्षा प्रदान की। उसे प्रवर्तिनी पद पर प्रतिष्ठित किया। नवोदीयमान आचार्य हेमचंद्र की कीर्ति दिन-प्रतिदिन विस्तार पाने लगी।
*आचार्य हेमचंद्र के समकालीन राजवंश* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 62* 📜
*मदनचंदजी राखेचा*
*राजभवन में पौषध*
गतांक से आगे...
मदनचंदजी राखेचा ने जब घर जाने की अनुमति मांगी तो नरेश ने पूछा— "मद्दू तीन दिनों तक क्या करता रहा?"
मदनचंदजी कहा— "प्रतिवर्ष 3 दिनों की छुट्टी लेकर जो धर्माराधना किया करता हूं, वही इस बार भी की। आपने घर जाने की मना ही कर दी थी, इसलिए यहीं पर रहना पड़ा। अन्यथा धर्म स्थान में संत समागम का लाभ भी मिल जाता।" उन्होंने पर्युषण पर्व तथा प्रतिवर्ष की जाने वाली अपनी साधना की पूरी बात नरेश को बतलाई।
पर्वाराधना की सारी बात समझ लेने के पश्चात् नरेश ने अनुताप भरी वाणी में कहा— "मुझे पता नहीं था कि तू ऐसी साधना करता है, अन्यथा मैं उस में बाधक नहीं बनता। आगे के लिए मैं तुझे आठ दिनों की छुट्टी देता हूं। साथ ही यह छूट भी देता हूं कि यदि कभी भूल से भी उन दिनों में बुला लूं तो मत आना। वैसा करना तेरा कोई अपराध नहीं माना जाएगा।"
तीन दिनों के पश्चात् मदनचंदजी घर पहुंच गए। सभी पारिवारिकों ने सुख की सांस ली। उससे पूर्व राज-प्रकोप के भय से उनकी नींद हराम हो चुकी थी। इसके विपरीत पुष्करणों की प्रसन्नता पर तब पानी फिर गया जब उन्हें पता चला कि मदनचंदजी को तीन दिनों के स्थान पर अब आगे के लिए आठ दिनों की छुट्टी मिला करेगी।
*चातुर्मास की प्रार्थना*
मदनचंदजी तेरापंथी बने तभी से संघ की हित-साधना में बड़े जागरुक रहने लगे थे। संवत् 1906 में युवाचार्य जय के बीकानेर चातुर्मास में वे तेरापंथी बने थे। उससे अगला चातुर्मास साधारण नियम के अनुसार युवाचार्य वहां नहीं कर सकते थे, फिर भी मदनचंदजी का विचार था कि उनके यहां चातुर्मास करने से काफी उपकार की संभावना है, अतः साधारण नियम से नहीं हो सकता हो तो विशेष नियम से करना चाहिए। उन्होंने पत्र द्वारा जयपुर में आचार्य ऋषिराय से प्रार्थना करवाई कि इस वर्ष युवाचार्य जय का चातुर्मास बीकानेर में ही कराने की कृपा करें। यद्यपि आचार्यश्री ने पहले उनका चातुर्मास बीदासर का घोषित कर दिया था, फिर भी मदनचंदजी की प्रार्थना के महत्त्व को आंकते हुए उसमें परिवर्तन कर दिया। वह चातुर्मास उन्हें किसी दीक्षावृद्ध के साथ ही कल्प सकता था, अतः मुनि सरूपचंदजी के सिंघाड़े को भी उनके साथ बीकानेर जाने की आज्ञा प्रदान की गई।
युवाचार्य जय चातुर्मास करने के लिए बीदासर पधार चुके थे। उसके पश्चात् ही उन्हें बीकानेर जाने की आज्ञा के समाचार प्राप्त हुए। बीदासरवासियों को वह परिवर्तन बहुत अखरा। एक श्रावक ने तो यहां तक कह दिया कि आचार्यश्री की आज्ञा तो बीकानेर जाने की है, परंतु आप उसमें कोई गली निकालिए। युवाचार्यश्री ने तत्काल उसे टोकते हुए कहा— "गली तो कोई कामचोर भृत्य ही निकालता है। हम भृत्य नहीं, शिष्य हैं। हमारे लिए सद्गुरु का आदेश प्राणों से भी बढ़कर है। उसमें गली निकालने जैसी कोई बात नहीं होती।"
आषाढ़ शुक्ला द्वितीया का युवाचार्य सहित दस साधुओं ने बीदासर से बिहार किया और दशमी को बीकानेर पहुंच गए। भयंकर गर्मी और आग की लपटों जैसे लू के तेज झोंकों का सामना करते हुए उन्हें उस मार्ग में अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा। एक दिन तो जल के अभाव में तृषा का मरणांत सदृश कष्ट भी सहना पड़ा, फिर भी गुरु आदेश की पूर्ति तथा लक्ष्य प्राप्ति के आनंद के सम्मुख वे सब नगण्य ही थे।
युवाचार्यश्री के उस पदार्पण से मदनचंदजी का मन आह्लाद से भर गया। मात्र एक पत्र द्वारा की गई प्रार्थना को मान्य कर आचार्यश्री ने उन्हें युवाचार्यश्री का जो चातुर्मास प्रदान किया था, उसके उत्तरदायित्व को वे बहुत अच्छी तरह से समझते थे। उन्होंने उसे यथावत् निभाया। उस चातुर्मास में वे स्वयं के धार्मिक प्रवृत्तियों में तो विशेष जागरूक बने ही, साथ में अन्य अनेक महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के लिए सम्यक्त्व-प्राप्ति में भी सहयोगी बने। युवाचार्यश्री का वह चातुर्मास जहां चर्चा-वार्ताओं की दृष्टि से बड़ा प्रभावशाली रहा, वहां श्रावक समाज की वृद्धि में भी अद्वितीय रहा। मदनचंदजी की कल्पना उस समय युवाचार्यश्री के श्रम का स्पर्श पाकर आकारवती और प्राणवती बन गई थी।
*राजगढ़ के पक्के श्रावक भीमराजजी पारख के प्रेरणादायी जीवन-वृत्त* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
*विचार क्यों?: विचार प्रेक्षा वीडियो श्रंखला १*
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संप्रेषक: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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