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जन-जन का कल्याणकर #महातपस्वी महाश्रमण की मंगलवाणी
-‘#ठाणं’ #आगमाधारित पावन प्रवचन में आचार्यश्री ने #आराधना को किया विवेचित
-#आचार्य_श्री_महाश्रमण ने ‘मुनि मुनिपत के व्याख्यान’ का भी किया रोचकशैली में वर्णन
23.08.2018 #माधावरम, #चेन्नई (#तमिलनाडु): लोगों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का संदेश देते अपनी धवल सेना के साथ अहिंसा यात्रा का कुशल नेतृत्व करते हुए जैन श्वेताम्बर #तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता भगवान महावीर के प्रतिनिधि मानवता के मसीहा शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में #दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य की राजधानी चेन्नई के माधावरम विराजमान हैं। अपने चतुर्मासकाल के दौरान आचार्यश्री नित्य प्रति अपनी मंगलवाणी का शुभारम्भ आगमवाणी से करते हैं और आगमवाणी में वर्णित जीवन कल्याण के सूत्रों को सरल भाषा में विवेचित कर श्रद्धालुओं को अपने जीवन को अच्छा बनाने की पावन प्रेरणा प्रदान करते हैं। आचार्यश्री के इस नियमित क्रम का लाभ उठाने के लिए प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
गुरुवार को आचार्यश्री ने ‘ठाणं’ आगमाधारित अपने पावन प्रवचन में कहा कि आराधना के दो प्रकार बताए गए हैं-धार्मिकी आराधना और दूसरी होती है कैवलिकी आराधना। गृहस्थ लोग सामायिक करते हैं, ध्यान करते हैं, स्वाध्याय करते हैं, तपस्या करते हैं, सेवा करते हैं, साधु की उपासना करते हैं। साधु भी आराधना करता है, वह धर्म की आराधना होती है। ज्ञान की भी आराधना की जाती है। प्रवचन करने वाला और श्रवण करने वाला भी धर्म करता है। ज्ञान देने वाला और ज्ञान ग्रहण करने वाले दोनों ज्ञान की आराधना करते हैं। देव, गुरु और धर्म की आराधना करना धार्मिकी आराधना होती है।
केवलज्ञानी भी चार प्रकार के होते हैं-केवलज्ञानी तो केवली होता ही है, मनःपर्ययव ज्ञानी, अवधि ज्ञानी और श्रुतज्ञानी भी केवली होते हैं। इनके द्वारा की जाने वाली आराधना कैवलिकी आराधना होती है।
सामान्य धर्म के लिए छह बाते बताई गई हैं-शुद्ध साधु के पात्र में दान देना, गुरु के प्रति विनय का भाव रखना, सभी प्राणियों के प्रति दया और अनुकंपा का भाव रखना, न्यायपूर्ण वृत्ति अर्थात् नैतिकता और न्याय रखना, न्याय के प्रति निष्ठा का भाव, सदा दूसरों का हित धर्मयुक्त बाते होती हैं। आदमी को अपने समय का धर्म में नियोजन करने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही आदमी को सदैव सज्जनों की संगति करने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी को कष्ट में भी श्रद्धा का भाव नहीं छोड़ना चाहिए और न ही अपने धर्म के डोलना चाहिए। धर्म कोई कपड़ा नहीं, जिसे पुराना होने पर बदल दिया जाए। आदमी को अपने भीतर धर्म की श्रद्धा को मजबूत रखने का प्रयास करना चाहिए।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने ‘मुनि मुनिपत के व्याख्यान’ का रोचक शैली में वर्णन किया। तेरापंथ युवक परिषद चेन्नई द्वारा आरम्भ हो रही भिक्षु स्मृति साधना के लिए आचार्यश्री ने इच्छुक लोगों को निरवद्य संकल्प ग्रहण करवाए और पावन आशीर्वाद भी प्रदान किया।
23.08.2018
प्रेषक> The Media Center
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