News in Hindi
👉 बेंगलुरु - *केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री श्री गजेन्द्रसिंह शेखावत गुरु सन्निधि में पधारे....*
🗯 *आचार्यश्री महाश्रमणजी* के दर्शन कर *मंगल आशीर्वाद एवं पावन पथदर्शन* प्राप्त किया
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 साकरी (महा) - तपस्वी अभिनन्दन समारोह
👉 मुम्बई - स्वतंत्रता दिवस एवं रक्षाबंधन पर कार्यक्रम का आयोजन
👉 गुवाहाटी ~ अणुव्रत समिति ने प्लास्टिक के बढ़ते प्रचलन पर चलाया जन-जागरूकता अभियान
👉 साउथ कोलकाता - स्वतंत्रता दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 बीकानेर ~ स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम में अणुव्रत समिति की सहभागिता
👉 बाड़मेर ~ आध्यात्मिक राखी कार्यक्रम का आयोजन
👉 बेंगलुरु - "Connection with food science" कार्यशाला का आयोजन
👉 जयपुर शहर - स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण कार्यक्रम
👉 दालकोला ~ स्वतंत्रता दिवस का कार्यक्रम आयोजित
👉 पट्टनगेरे - स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम का आयोजन
👉 अहमदाबाद - अणुव्रत समिति द्वारा नशामुक्ति का प्रचार प्रसार
👉 कटक ~ स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम का आयोजन
प्रस्तुति - *🌻 संघ संवाद🌻*
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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 14* 📜
*अध्याय~~1*
*॥स्थिरीकरण॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*13. भगवान् प्राह सत्योद्यं, घटना पौर्वदेहिकी।*
*जातिस्मृतिं विना वत्स! बोद्धुं शक्या न जन्तुभिः।।*
भगवान ने कहा— वत्स! तू सच कहता है। जाति-स्मृति के बिना कोई भी प्राणी पूर्वजन्म की घटना जान नहीं सकता।
*14. ईहापोह तथैकाग्रयं, विना सा नैव जायते।*
*संस्काराः सञ्चिता गूढाः, प्रादुः स्युर्यत्प्रत्नतः।।*
ईहा, अपोह और मन की एकाग्रता के बिना जाति-स्मृति ज्ञान उत्पन्न नहीं होता। जो संस्कार गहरे में संचित होते हैं, वे गहन प्रयत्न से ही प्रकट होते हैं।
*15. मेरुप्रभाऽभिधो हस्ती, त्वमासीः पूर्वजन्मनि।*
*विन्ध्यस्योपत्यका चारी, विहारी स्वेच्छाया वने।।*
मेघ! तू पूर्वजन्म में मेरुप्रभ नाम का हाथी था। तू विंध्य पर्वत की तलहटी के वन में स्वच्छंदता से विहार करता था।
*16. व्यधा भयाद् वनवह्नेः, मण्डलं योजनप्रमम्।*
*लब्धपूर्वानुभूतिस्तत्वं, दीर्घकालिकसंज्ञितः।।*
उस समय तू समनस्क था। तुझे पूर्वजन्म की स्मृति हुई। तूने दावानल से बचने के लिए चार कोस का स्थल बनाया।
*17. घासा उत्पाटिताः सर्वे, लता वृक्षाश्च गुल्मकाः।*
*अकारीभैः सप्तशतैः, स्थलं हस्ततलोपमम्।।*
तूने सात सौ हाथियों का सहयोग पाकर सब घास, लता, पेड़ और पौधे उखाड़ डाले और उस स्थल को हथेली के तल जैसा साफ बना दिया।
*भगवान् महावीर मेघ के पूर्वजन्म की क्या स्मृति दिला रहे हैं...?* आगे के श्लोकों में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 105* 📖
*अभय: प्रकम्पन और परिणमन*
गतांक से आगे...
भाव आदिनाथ कौन है? स्तुतिकाल में भाव आदिनाथ वह है, जो आदिनाथ की स्तुति और स्मृति करता है। जो स्तुति करते समय आदिनाथ का अनुभव करता है, वह स्वयं आदिनाथ बन जाता है। हम भक्त बनकर भक्तामर का स्मरण न करें, किंतु आदिनाथ बनकर भक्तामर का स्मरण करें। यदि हम स्वयं आदिनाथ बन जाएं, हमारा परिणमन आदिनाथ का हो जाए तो अभय की घटना सिद्ध हो सकती है, इसमें कोई संदेह नहीं है। स्तुतिकार का यह कथन यथार्थ है— जो व्यक्ति आदिनाथ का आश्रय लिए हुए है, आदिनाथ को अपने भीतर बिठाए हुए है, उसका पैर सिंह को सामने देखकर भी नहीं रुकेगा, किंतु सिंह स्वयं बद्धक्रम होगा, रुकेगा। वस्तुतः यह अभय का एक प्रयोग है। इससे जुड़ी अनेक घटनाएं ऐतिहासिक जैन आख्यानों में उपलब्ध हैं।
भय का एक निमित्त है— दावानल। उस समय जंगलों में आग लगती रहती थी। विशेषतः वे जंगल जो बांस के होते थे। कर्नाटक और दक्षिण भारत के जंगलों में बांस के पेड़ बहुत हैं। इन बांस के पेड़ों के टकराने से बहुत जल्दी आग लगती है। इस भय को उभरते हुए मानतुंग कह रहे हैं— एक मनुष्य जंगल में जा रहा है। अचानक जंगल में आग लग गई। चारों ओर फैली हुई वह आग दावानल बन गई। इस स्थिति में वह मनुष्य क्या करे? कैसे स्वयं को बचाए? अभय कैसे रहे? मानतुंग कहते हैं— वह आपके नाम के जल का छींटा दे, तो अग्नि बुझ जाएगी, दावानल शांत हो जाएगा। मंत्रशास्त्र में अग्निशमन के अनेक मंत्र निर्दिष्ट हैं। आजकल कहीं आग लगती है तो फायरब्रिगेड की दमकलों को को बुलाया जाता है। उस समय दमकल कहां थी? आज भी यह समस्या है। आग कभी लगती है और दमकल बहुत कुछ अग्नि में स्वाहा होने के बाद ही पहुंच पाती है। जब तक दमकलें आग पर काबू पाती हैं, तब तक बहुत विनाश हो चुका होता है। कुछ वर्ष पहले दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में आग लग गई। उसमें सैकड़ों वर्षों के न्यायालय के रिकॉर्ड थे। दमकलें आईं, अग्नि शांत हुई, उससे पहले ही आग फैल चुकी थी। सैकड़ों वर्षों के रिकॉर्ड नष्ट हो चुके थे। यदि अग्निशमन मंत्र सिद्ध होता, उसका जप किया जाता तो संभवतः आज वहीं शांत हो जाती।
मानतुंग कह रहे हैं— जंगल में भयंकर दावानल से घिरे व्यक्ति ने आपके नामकीर्तन रूपी जल का छिड़काव किया। उससे वह अग्नि शांत हो गई, जो अत्यंत विकराल थी, कल्पान्त-काल की अग्नि जैसी थी। आगम साहित्य में कल्पान्त काल की अग्नि का वर्णन मिलता है। कहा गया— छठे काल खण्ड में अग्नि की वर्षा होगी। कल्पान्त-काल की अग्नि उतनी भयावह होती है, जितना आज अणुशस्त्रों का प्रयोग होता है। कल्पान्तकाल का अर्थ है प्रलयकाल। कल्प का अंत हो रहा है। उस प्रलयकाल की हवा से उद्धत बनी हुई अग्नि के समान वह दावानल उज्जवल है। अग्नि केवल लाल नहीं होती। अग्नि के तेज में पीलापन अथवा श्वेतिमा का मिश्रण होता है। उस उज्जवल अग्नि से स्फुलिंग उछल रहे हैं, चिनगारियां ही चिनगारियां उठ रही हैं। वह भयंकर दावानल सबको लील जाना चाहता है। ऐसा लगता है, जो भी सामने आएगा, उसे वह लील जाएगा, खा जाएगा। ऐसी सर्वभक्षी अग्नि आपके नाम-कीर्तन के जल से बुझ जाएगी, शांत हो जाएगी। अग्नि से घिरा वह व्यक्ति सकुशल अपने गंतव्य पहुंच जाएगा। दावानल में अभय रहने वाला वह मंत्रकाव्य है—
*कल्पान्तकालपवनोद्धतवह्निकल्पं,*
*दावानलं ज्वलितमुज्जवलमुत्स्फुलिंगम्।*
*विश्वं जिघत्सुमिव सम्मुखमापतन्तं,*
*त्वन्नामकीर्तनजलं शमयत्यशेषम्।।*
*आचार्य मानतुंग द्वारा गुंफित सिंह और अग्नि भय-निवारण मंत्रों के बारे में व्याख्याकारों का मत...* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 117* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*5. समझाने की उत्तम पद्धति*
*मिश्री और सन्त*
पीपाड़-निवासी चौथमलजी बोहरा ने पाली में कपड़े की दुकान की, उस वर्ष स्वामीजी का चातुर्मास पाली में था। चातुर्मास की समाप्ति पर चोथमलजी ने स्वामीजी को 'बासती' के दो थान दिए। स्वामीजी ने जब उनको स्वीकार कर लिया, तब चोथमलजी ने पूछा— 'भीखणजी! मैं आपको साधु नहीं मानता, फिर भी वस्त्र-दान किया है, मुझे इसका शुभ फल होगा या अशुभ?'
स्वामीजी ने कहा— 'किसी व्यक्ति ने विष समझकर मिश्री मुख में रख ली। वह उससे मरता है या नहीं?'
चौथमलजी बोले— 'नहीं मरता। मिश्री तो मुंह मीठा करती है।'
स्वामीजी ने निष्कर्ष की भाषा में कहा— 'संत मिश्री की तरह होते हैं। उन्हें कोई साधु समझता है तो वह उसके ज्ञान की कमी है। पात्र-दान का फल सदा शुभ होता है।'
*नदी और कलियां*
स्वामीजी के पास कई मूर्तिपूजक लोग आए और कहने लगे— 'भीखणजी! आप संतों को नदी पार करने में धर्म मानते हैं, तब पूजा के समय हम भगवान् को फूल चढ़ाते हैं, उसमें भी धर्म मानना चाहिए।'
स्वामीजी ने कहा— 'एक स्थान पर नदी में पानी कटि तक हो, दूसरे पर घुटने तक और तीसरे पर नदी सूखी हो, तो हम दो-चार कोस का घुमाव लेकर भी वहीं से पार होंगे, जहां नदी सूखी है। इसी तरह मान लीजिए एक और सूखे फूल पड़े हों, दूसरी ओर दो-तीन दिन के कुम्हलाए हुए और तीसरे स्थान पर पौधों पर लगी कलियां हों, तो आप भगवान् को कौन से फूल चढ़ाना पसंद करेंगे?'
उन लोगों ने कहा— 'पौधों पर से नई कलियां तोड़कर चढ़ाएंगे। बांसी तथा सूखे फूल चढ़ाना अनुपयुक्त है।'
स्वामीजी ने कहा— 'बस, आपमें और हमारे में यही भावों का अंतर है। हमारे परिणाम पानी को बचाने के रहते हैं, जबकि आपके परिणाम कच्ची कलियां तोड़ने के।'
*स्वामीजी लोगों की शंकाओं का समाधान किस प्रकार करते थे...? कुछ घटना प्रसंगों से...* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*
💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_
📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*
🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*
🎖 *_टीपीएफ के राष्ट्रीय अधिवेशन_* *_का प्रथम दिवस......_*
⌚ _दिनांक_: *_17 अगस्त 2019_*
🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
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👉 *#आहार और #विचार*: #श्रंखला १*
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आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २२७* - *चित्त शुद्धि और अनुप्रेक्षा १४*
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