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👉 गोगुन्दा - ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 जालना - ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 साकरी (महा) - तप अभिनन्दन समारोह
👉 उधना, सूरत - वृहद सामायिक कार्यशाला
👉 हुबली- कन्या मंडल द्वारा समय प्रबंधन कार्यशाला
👉 कुर्ला, मुम्बई - ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 कांदिवली, मुंबई- ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
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👉 उधना- अभातेममं अध्यक्षा कुमुद जी कच्छारा की संगठन यात्रा
👉 हुबली - ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 ट्रिप्लिकेन, चेन्नई - जैन यंत्र मंत्र कार्यशाला का आयोजन
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद*🌻
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आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
चेतना सेवा केन्द्र,
कुम्बलगुड़ु,
बेंगलुरु,
⛳
महाश्रमण चरणों में
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: दिनांक:
21 अगस्त 2019
🎯
: प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*
💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_
📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*
🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*
⌚ _दिनांक_: *_21 अगस्त 2019_*
🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 121* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*6. न्याय के विचित्र प्रकार*
*न्याय की तुला पर*
स्वामीजी एक न्यायप्रिय एवं नीति-परायण आचार्य थे। व्यक्तियों का पारस्परिक मनोमालिन्य मिटाकर उनमें सद्भाव उत्पन्न करना उन्हें खूब आता था। पक्षपात सदैव न्याय और नीति का प्रतिपक्ष रहा है। स्वामीजी उसे कभी प्रश्रय नहीं देते थे। यद्यपि छद्मस्थावस्था के कारण मनुष्य राग और द्वेष से सर्वथा मुक्त नहीं हो पाता, फिर भी स्वामीजी जैसे कुछ ऐसे महान् व्यक्ति होते हैं, जो अपने मानसिक संतुलन को किसी भी स्थिति में डिगने नहीं देते। स्वामीजी तर्कों के आधार पर नहीं, वास्तविकता के आधार पर न्याय किया करते थे। हर घटना को न्याय की तुला पर पूरा-पूरा तोलते थे।
कभी-कभी स्वामीजी का न्याय इतना विचित्र और प्रभावशाली होता था कि झगड़ने वाले स्वयं ही लज्जित होकर झगड़े से विरत हो जाया करते थे। वे किसी व्यक्ति को साधारण बातों पर झगड़ता देखना नहीं चाहते थे। अपने संघ के साधु-साध्वियों के लिए तो उन्होंने मर्यादा बनाते समय यहां तक लिख दिया कि यदि कोई व्यक्ति तुम्हारे चलने, बोलने तथा प्रतिलेखन करने आदि की दैनिक क्रियाओं में सच्ची तथा झूठी भी त्रुटि निकाले, तो तुम उसका प्रतिवाद मत करो। आगे के लिए उस विषय में अधिक सावधान रहने का ही विचार व्यक्त करो। साधारण बातों को लेकर छद्मस्थता के कारण यदि साधुजनों में कोई खिंचाव हो जाता, तो स्वामीजी का न्याय उन्हें आत्म-चिंतन की ओर प्रेरित करने वाला होता।
*रस्सी से नाप आओ*
एक बार दो संतों में परस्पर विवाद हो गया। एक ने कहा— 'तुम गोचरी से आ रहे थे, तब तुम्हारे पात्र में से इतनी दूर तक पानी के टपके गिरते रहे।'
दूसरे ने कहा— 'टपके गिरे तो थे, पर तुम कहते हो उतनी दूर तक नहीं, उससे बहुत कम दूर तक गिरे थे।'
दोनों ही स्वामीजी के पास पुकार लेकर आए। एक कहता था— 'इसके पात्र से इतनी दूर तक टपके गिरे थे।' दूसरा कहता था— 'यह बढ़ा-चढ़ा कर बतला रहा है, इतनी दूर से बहुत कम थे।'
स्वामीजी ने दोनों को समझाते हुए कहा— 'टपके गिरे थे, यह तो तुम दोनों ही कह रहे हो। तब फिर दूरी का क्या झगड़ा है? उसके विषय में तो दोनों का अपना-अपना अनुमान ही तो है।'
इस पर भी वे अपने-अपने कथन को ही सिद्ध करने पर तुले रहे। स्वामीजी ने कहा— 'तुम्हें अपने-अपने अनुमान की सच्चाई का इतना अधिक विश्वास है, तब क्यों न उसकी परीक्षा कर ली जाए? तुम दोनों ही एक रस्सी लेकर जाओ और उस स्थान को नाप आओ, ताकि हमें भी पता रहे कि किसका अनुमान पूर्ण सत्य निकलता है।'
रस्सी लेकर नापने की आज्ञा ने दोनों की व्यावहारिकता को जगा दिया। वे दोनों ही लज्जित हो गए। परस्पर क्षमा-याचना करते हुए उन्होंने अपना विवाद वहीं समाप्त कर दिया।
*लोलुप कौन?*
लोलुपता के विषय में किन्ही दो संतों में परस्पर विवाद हो गया। एक ने कहा— 'तुम लोलुप हो।' दूसरे ने कहा— 'तुम लोलुप हो।' आखिर उस विवादास्पद विषय को लेकर वे स्वामीजी के पास न्याय कराने के लिए आए।
स्वामीजी ने दोनों को समझाते हुए कहा— 'हर एक व्यक्ति को स्वाद पर विजय पानी चाहिए, फिर भी जब तक छद्मस्थता है, तब तक विभिन्न अवसरों पर हर किसी की लोलुपता उभर सकती है।'
इतने पर भी उन दोनों का विवाद शांत नहीं हुआ और वे एक-दूसरे को ही लोलुप सिद्ध करने का प्रयास करते रहे। स्वामीजी ने तब कहा— 'तुम दोनों मेरी आज्ञा का आगार रखकर 'विगय' का परित्याग कर दो। जो व्यक्ति पहले आज्ञा मांगेगा वही दूसरे की अपेक्षा अधिक लोलुप समझा जाएगा।'
दोनों ने उस आदेश को मान लिया और आज्ञा का आगार रखकर 'विगय' का परित्याग कर दिया। लगभग चार महीने तक 'विगय' टालने के पश्चात् उनमें से एक ने आकर आज्ञा मांगी। स्वामीजी ने उसे आज्ञा दी, तब दूसरे को भी पूर्व निर्णय के अनुसार स्वतः ही आज्ञा हो गई। पहले आज्ञा मांगने वाले ने अपेक्षाकृत अपनी अधिक लोलुपता को बिना किसी दबाव या कहे-सुने स्वयं ही मान लिया।
*स्वामीजी आचार-हीनता के विरोधी थे... कुछ प्रसंगों के माध्यम से...* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 109* 📖
*नाम में छिपी है नागदमनी*
गतांक से आगे...
मानतुंग सर्प के शांत होने का रहस्य बता रहे हैं— प्रभो! जिसके हृदय में आपके नाम की नागदमनी है, उसका आकुष्ट विषधर भी कुछ नहीं कर सकता।
*रक्तेक्षणं समदकोकिलकंठनीलं,*
*क्रोधोद्धतं फणिनमुत्फणमापतन्तम्।*
*आक्रामति क्रमयुगेन निरस्तशंक*
*स्तवन्नामनागदमनी हृदि यस्य पुंसः।।*
एक जड़ी होती है नागदमनी। वह जड़ी जिसके पास है उसे सर्प का भय कभी नहीं सताता। भयंकर सर्प भी कुछ नहीं कर पाता। सर्प उसके पास ही नहीं आएगा, दूर से ही भाग जाएगा। जड़ी का प्रभाव बहुत विचित्र होता है। विशिष्ट मणि और जड़ी पास में होती है तो असंभव कार्य भी संभव हो जाता है। नदी को पार करना है। नौका नहीं है। जलकांत मणि को निकाला। मणि का प्रयोग किया। नदी में उतरा, इधर का पानी इधर और उधर का उधर रह गया। बीच में रास्ता बन गया।
नागदमनी का दूसरा अर्थ है— जांगुली विद्या। जो जांगुली विद्या को जानता है, सर्प उसका कुछ भी नहीं कर सकता। वह सर्प को पकड़ लेता है, हाथ में ले लेता है, उस पर पैर रख देता है, फिर भी सर्प उसका कुछ भी अहित नहीं कर सकता। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो विषधर सांपों के साथ खेलते हैं, सांपों के साथ रहते हैं। सांपों से इतना प्रेम हो जाता है कि सांप उन्हें नहीं काटते। समाचार पत्र में पढ़ा— एक व्यक्ति ने जहरीले सांपों के पास रहने का विश्व रिकॉर्ड बनाया है। कमरे में चारों ओर सांप ही सांप। उनके बीच उस व्यक्ति ने अनेक दिन बिताए। किसी सांप ने उसे काटा नहीं, नुकसान नहीं पहुंचाया। वह सबका मित्र जैसा बन गया।
वस्तुतः मैत्री का प्रयोग बहुत शक्तिशाली होता है। जिसने सब जीवो के साथ मैत्री साध ली, उसका दुश्मन कौन रहेगा? यह मैत्री केवल शब्दों में नहीं, अंतःकरण के भावों में विकसित होनी चाहिए। जो मैत्री का इतना विकास कर लेता है, न किसी के बारे में बुरा सोचता है, न बुरा बोलता है, न अनिष्ट कामना करता है, निरंतर मैत्री की भावना का संप्रेषण करता है, सब प्राणी उसके मित्र बन जाते हैं, सब जीव-जंतु उसके पास आने लग जाते हैं। कहा गया— वीतराग के पास शेर और बकरी एक घाट पर पानी पीते हैं। जन्मना विरोधी भी वैर-भाव भूल जाते हैं। सब एक साथ आते हैं, पास-पास बैठे रहते हैं। किसी के मन में भय और शत्रुता का भाव उत्पन्न नहीं होता।
*मैत्री-भाव की साधना...* के बारे में विस्तार से जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 18* 📜
*अध्याय~~1*
*॥स्थिरीकरण॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*31. अवशा वेदयन्त्येके, कष्टमर्जितमात्मना।*
*विलपन्तो विषीदन्तः, समभावः सुदुर्लभः।।*
कुछ व्यक्ति पहले कष्ट-कर्म का अर्जन करते हैं, फिर उसे विवश होकर भुगतते हैं। उसके वेदन-काल में विलाप और विषाद करते हैं, क्योंकि समभाव हर किसी के लिए सुलभ नहीं है।
*32. उदीर्णां वेदनां यश्च, सहते समभावतः।*
*निर्जरा कुरुते कामं, देहे दुःखं महाफलम्।।*
जो व्यक्ति कर्म के उदय से उत्पन्न वेदना को समभाव से सहन करता है, उसके बहुत निर्जरा होती है, क्योंकि शरीर में उत्पन्न कष्ट को सहन करना महान फल का हेतु है।
*33. असम्यक्त्वी तदा कष्टे, नाऽभवो वत्स! कातरः।*
*सम्यक्त्वी संयमीदानीं, क्लीबोऽभूः स्वल्पवेदने।।*
वत्स! उस समय हाथी के भव में तू सम्यग्दृष्टि नहीं था, फिर भी कष्ट में कायर नहीं बना। इस समय तू सम्यग्दृष्टि और संयमी है, फिर भी इतने थोड़े कष्ट में क्लीब— सत्त्वहीन बन गया?
*34. मुनीनां कायसंस्पर्शप्रमिलानाशमात्रतः।*
*अधीरो मामुपेतोसि, सद्यो गन्तुं पुनर्गृहम्।।*
साधुओं के शरीर का स्पर्श होने से रात को तेरी नींद नष्ट हो गई। इतने मात्र से तू अधीर होकर घर लौट जाने के लिए सहसा मेरे पास आया है!
*मेघकुमार द्वारा श्रमण धर्म की दुश्चरता का कथन तथा महावीर द्वारा मन को निश्चल बनाने का उपदेश...* आगे के श्लोकों में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*
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📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*
🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*
⌚ _दिनांक_: *_22 अगस्त 2019_*
🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*
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आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
चेतना सेवा केन्द्र,
कुम्बलगुड़ु,
बेंगलुरु,
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महाश्रमण चरणों में
📮
: दिनांक:
22 अगस्त 2019
🎯
: प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 120* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*5. समझाने की उत्तम पद्धति*
*कितना दण्ड*
पीपाड़ में स्वामीजी ने किसी प्रसंग पर अग्रोक्त पद्य सुनाया—
*अचित वस्त नै मोल लरावें,*
*समिति-गुप्ति हुवैं खंड।*
*महाव्रत तो पांचूंईं भागैं,*
*चौमासी रो दण्ड।।*
पद्य सुनकर मोजीरामजी बोहरा ने अपने पुत्र जसराजजी से कहा— 'चल, यहां से चलें। ये तो पूरा घर लूट लेने के पश्चात् दण्ड और करते हैं। जब पांचों ही महाव्रत भंग हो गए, तब फिर चौमासी का दण्ड किस बात का है?'
स्वामीजी ने उनको समझाते हुए कहा— 'यहां मैंने महाव्रतों का पूर्ण भंग हो जाने के बाद दण्ड नहीं कहा है, अपितु यह कहा है कि चातुर्मासिक दण्ड आए, उतना पांचों महाव्रतों का भंग होता है।'
स्वामीजी के उक्त स्पष्टीकरण ने उनके भ्रम को दूर कर दिया।
*दया माता है*
एक बार कुछ भाई स्वामीजी से चर्चा कर रहे थे। प्रसंगवश स्वामीजी ने कहा— 'धर्म तो दया में ही होता है, हिंसा में नहीं।'
वे लोग मूर्ति के सम्मुख पुष्प आदि चढ़ाने में धर्म मानते थे, अतः उक्त कथन को अपने पर आक्षेप समझकर क्रुद्ध हो गए। उनमें से एक तो आवेश-वश कह उठा— 'दया रांड घूरे पर पड़ी है, उसे पूछता कौन है? तुमने दया-दया का शोर मचाकर निरर्थक ही झगड़ा खड़ा कर रखा है।'
स्वामीजी ने कहा— 'दया तो हमारी माता है। उसका अपमान न करके सम्मान करना चाहिए।' उन्होंने दृष्टांत के द्वारा समझाते हुए कहा— 'एक साहूकार दिवंगत हुआ। उसके पुत्रों में जो सपूत थे, वे अपनी माता का विनय करते और आदर-भाव रखते। इसके विपरीत जो कपूत थे, वे हर समय अविनय करते और 'रांड' आदि अपमानजनक शब्द बोलते रहते। इसी तरह कहा जा सकता है कि दया के स्वामी भगवान् महावीर मुक्ति-गामी हो गए। पीछे पुत्र-रूप में चतुर्विध संघ रहा। उनमें जो सपूत हैं, वे दया माता का आदर तथा सुरक्षा करते हैं। जो कपूत हैं, वे उसकी अवज्ञा करते हैं तथा अपशब्द कहते हैं।'
उक्त दृष्टांत को सुनकर वे लोग बड़े लज्जित हुए और चुपचाप वहां से चल दिए।
*ऐसे ही समझदार*
आउवा के उत्तमोजी ईराणी मूर्तिपूजक मान्यता के थे। उन्होंने स्वामीजी से कहा— 'भीखणजी! आप मंदिर का खंडन तो करते हैं, पर यह क्यों नहीं देखते कि बड़े-बड़े लखपतियों-करोड़पतियों ने मंदिर बनवाए हैं। वे सब अज्ञानी थोड़े ही थे।'
स्वामीजी— 'यदि तुम्हारे पास पचास हजार रुपए हो जाएं, तो तुम मंदिर बनवाओ कि नहीं?'
उत्तमोजी— 'अवश्य बनवाऊं।'
स्वामीजी— 'तुम्हारे में जीव का भेद कौन-सा है?' गुणस्थान कौन-सा है? योग तथा उपयोग कितने हैं?'
उत्तमोजी— 'यह तो मैं नहीं जानता।'
स्वामीजी— 'तो उस समय के धनिक भी ऐसे ही समझदार रहे होंगे। धन हो जाने मात्र से तत्त्व का ज्ञान नहीं हो जाता।'
*स्वामीजी की नीति-परायणता व न्याय के विचित्र प्रकारों...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 108* 📖
*नाम में छिपी है नागदमनी*
स्वास्थ्य, शक्ति और सफलता— इन सबका अमोघ मंत्र है– अभय। जहां भय व्यापक है, वहां आधी शक्ति तो पहले ही नष्ट हो जाती है। जहां भय गहरा होता है, स्वास्थ्य गड़बड़ा जाता है, पाचनशक्ति प्रभावित हो जाती है। भय की स्थिति में सफलता की सीढ़ियों का आरोहण ही संभव नहीं बनता। आचार्य मानतुंग भय के अनेक हेतुओं की चर्चा कर चुके हैं। उनका प्रतिपाद्य यह है— आपकी स्तुति करने वाला सर्वथा अभय बन जाता है। भय के हेतु का विश्लेषण और अभय का आश्वासन— ये दोनों ध्वनियां उनके काव्य में स्पष्ट प्रतिध्वनित हो रही हैं।
भय का एक हेतु है— सर्प। सर्प अपने आपमें है और आदमी अपने आपमें है। परस्पर दुश्मनी नहीं है, फिर भी मनुष्य सर्प से बहुत डरता है। इसलिए डरता है कि सर्प के काटने से प्राण खतरे में पड़ जाते हैं। वस्तुतः सब सांप जहरीले नहीं होते, कुछ ही सांप जहरीले होते हैं, किंतु पूरी जाति ही जहरीली मान ली गई। इसीलिए व्यक्ति सर्प के नाम से ही डरने लग जाता है। सामान्यतः सांप काटता भी नहीं है। वह तब काटता है, जब उसके ऊपर कोई पैर टिका दे, उससे छेड़छाड़ करे। बहुत प्रसिद्ध घटना है। तेरापंथ के सप्तम आचार्य पूज्य डालगणी से किसी ने प्रार्थना की— गुरुदेव! कृपा कर हमारा ध्यान रखना। डालगणी ने कहा— भाई! सावधान तुम भी रहना। हम बिना गलती उलाहना नहीं देंगे, दंड प्रायश्चित्त नहीं देंगे। किंतु सांप की पूंछ पर पैर तुम भी मत रखना, गलती तुम भी मत करना। राजस्थानी की प्रचलित उक्ति है गोगासा (सर्प-देव) काटना मत। इस प्रार्थना का उत्तर इस स्वर में दिया जाता है— पूंछ पर पैर तुम भी मत रखना। आचार्य मानतुंग ने इस तथ्य को स्वाभाविक अभिव्यक्ति दी है— सांप के हाथ लगाओ, वह क्रोध में नहीं आता। शरीर के अन्य भाग का स्पर्श हो जाए तो वह क्रोध में नहीं आता। उसके पैर लगाओ, वह एकदम क्रोध में आ जाएगा। पद-प्रहार को वह सहन नहीं कर सकता।
आचार्य मानतुंग ने कहा— प्रभो! एक आदमी दोनों पैरों से सांप पर आक्रमण कर देता है फिर भी वह भयभीत नहीं होता। वह *'निरस्त-शंकः'*— भय की आशंका को निरस्त कर देता है। वह इतना अभय होकर सर्प पर पांव रखता है और सांप भी उसे नहीं काटता। वह सर्प भी कैसा है कोई सामान्य सर्प नहीं है। उस सर्प की आंखें लाल हैं। वह कोयल के कंठ जैसा नीला है। जिस समय कोकिल मद में होती है, उस समय उसका रंग और गहरा हो जाता है। मस्त कोकिल के कंठ जैसा वह नीला सर्प क्रोध में उद्धत बना हुआ है। उसने अपने फन को ऊंचा कर लिया है, फटाटोप बना लिया है। दो शब्द हैं फटाटोप और घटाटोप। मेघ का होता है घटाटोप और सांप का होता है फटाटोप। ऐसे सांप पर आदमी ने निःशंक पैर रख दिया। फिर भी वह सर्प आदमी का कुछ अनिष्ट नहीं कर सका। न क्रोध काम आया, न लाल आंखें काम आईं। वह शांत बन गया।
*सर्प शांत कैसे बन गया...? वह आदमी का कुछ अनिष्ट क्यों नहीं कर पाया...? इस रहस्य...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 17* 📜
*अध्याय~~1*
*॥स्थिरीकरण॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*26. स्वच्छन्दं गहने शान्ते, विजह्रुः पशवस्तदा।*
*पलायितः शशकोऽपि, रिक्तं स्थानं त्वयेक्षितम्।।*
तब वन्य-पशु उस शांत जंगल में स्वतंत्रतापूर्वक घूमने-फिरने लगे। वह खरगोश भी वहां से चला गया। पीछे तूने वह स्थान खाली देखा।
*27. पादं न्यस्तुं पुनर्भूमौ, सार्द्धद्वयदिनान्तरम्।*
*स्तम्तभीभूतं जडीभूतं, त्वया प्रयतितं तदा।।*
ढाई दिन के पश्चात् तूने उस खंभे की तरह अकड़े हुए निष्क्रिय पांव को पुनः भूमि पर रखने का प्रयत्न किया।
*28. स्थूलकायः क्षुधाक्षामः, जरसा जीर्णविग्रहः।*
*पादन्यासे न शक्तोऽभूः, भूतले पतितः स्वयम्।।*
तेरा शरीर भारी-भरकम था। तू भूख से दुर्बल और बुढ़ापे से जर्जरित था। इसलिए तू पैर को फिर से नीचे रखने में समर्थ नहीं हो सका। तू लड़खड़ाकर भूमि पर गिर पड़ा।
*29. विपुला वेदनोदीर्णा, घोरा घोरतमोज्ज्वला।*
*सहित्वा समवृत्तिस्तां, तत्र यावद् दिनत्रयम्।।*
उस समय तुझे विपुल घोर, घोरतम और उज्जवल वेदना हुई। तीन दिन तक तूने उसे समभावपूर्वक सहन किया।
*30. आयुरन्ते पूरयित्वा, जातस्त्वं श्रेणिकाङ्गजः।*
*अहिंसा साधिता सत्त्वे, कष्टे च समता श्रिता।।*
तूने जीवों के प्रति अहिंसा की साधना की और कष्ट में समभाव रखा। अंत में आयुष्य पूरा कर तू श्रेणिक राजा का पुत्र हुआ।
*महावीर द्वारा मेघकुमार को समभाव की दुर्लभता... शरीर में उत्पन्न कष्ट को (समभावपूर्वक) सहना महान फल का हेतु... कष्टों में अधीर न होने के लिए तर्कयुक्त बात कहना...* इत्यादि आगे के श्लोकों में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 टिटलागढ़ ~ ज्ञानशाला दिवस का कार्यक्रम
👉 सोलापुर ~ ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 जलगांव ~ ज्ञानशाला दिवस के कार्यक्रम का आयोजन
👉 कालीकट ~महाप्रज्ञ जन्मशताब्दी समारोह व ज्ञानशाला दिवस कार्यक्रम
👉 कोटा ~ आद्यात्मिक सामूहिक एकासन कार्यक्रम
👉 हिसार ~ ज्ञानशाला दिवस का कार्यक्रम
👉 सैंथिया ~ ज्ञानशाला दिवस का कार्यक्रम
👉 गंगावती - CONNECTION WITH FOOD SCIENCE कार्यशाला आयोजित
👉 कटक ~ ज्ञानशाला दिवस का कार्यक्रम
👉 अहमदाबाद - नशामुक्ति का प्रचार प्रसार
👉 उदयपुर - स्वस्थ आहार का सेवन श्रेष्ठ आरोग्य हर क्षण विषयक कार्यक्रम
👉 फरीदाबाद - ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 साकरी (महा) - ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 तिरुपुर - समय जीवन की बहुमूल्य निधि वर्कशॉप आयोजित
👉 उदासर - ज्ञानशाला दिवस के कार्यक्रम का आयोजन
👉 उधना, सूरत - ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 साउथ कोलकत्ता - सामूहिक आयम्बिल तप अनुष्ठान
👉 कांलावाली ~ ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 औरंगाबाद ~ ज्ञानशाला दिवस का कार्यक्रम
👉 इस्लामपुर ~ ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 रावलिया कलां - ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 गांधीनगर (बेंगलुरु) ~ तेमम द्वारा ऑडिटोरियम का उद्घाटन
👉 कृष्णा नगर (दिल्ली) ~ नशामुक्ति कार्यशाला का आयोजन
👉 ईरोड - स्वस्थ परिवार-स्वस्थ समाज कार्यशाला का आयोजन
👉 साउथ हावड़ा ~ स्वस्थ आहार का सेवन, श्रेष्ठ आरोग्य हर क्षण विषय पर कार्यशाला का आयोजन
👉जलगांव ~ समय प्रबंधन कार्यशाला का आयोजन
प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद 🌻*
💠 *श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महासभा के तत्वावधान में*
👉 कुम्बलगुडू, बेंगलुरु - ज्ञानशाला प्रशिक्षिक सम्मेलन व दीक्षांत समारोह
*⃣ *सान्निध्य - आचार्य श्री महाश्रमण*
*⃣ *बल्लारी क्षेत्र के कमरचेरु मठ के श्री श्री श्री कल्याण महास्वामी जी की उपस्थिति*
दिनांक 20-08-2019
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
👉 उदयपुर - मास खमण तप अभिनन्दन समारोह का आयोजन
👉 तिरुपुर ~ स्वस्थ आहार का सेवन श्रेष्ठ आरोग्य हर क्षण" कार्यशाला का आयोजन
👉 जींद - ज्ञानशाला दिवस का कार्यक्रम
👉 जयपुर ~ ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 सचिन, सूरत - आचार्य श्री महाश्रमण कन्या सुरक्षा सर्किल का शिलान्यास
👉 कोयम्बत्तूर - ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 जयपुर - वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन
👉 लिम्बायत, सूरत - ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 उदयपुर - ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
👉 गदग - स्वस्थ परिवार-स्वस्थ समाज कार्यशाला का आयोजन
👉 सूरत - हैप्पी एन्ड हॉर्मोनियस फेमिली सेमिनार का आयोजन
प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद 🌻*
News in Hindi
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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 16* 📜
*अध्याय~~1*
*॥स्थिरीकरण॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*22. कृत्वा कण्डूयनं पादं, दधता भूतले पुनः।*
*शशको निम्नगोऽलोकि, त्वया तत्त्वं विजानता।।*
*23. तदानुकम्पिना तत्र, न हतः स्यादसौ मया।*
*इति चिन्तायता पादः, त्वया संधारितोऽन्तरा।।*
*(युग्मम्)*
खुजलाने के बाद जब तू पांव नीचे रखने लगा, तब तूने वहां पांव से खाली हुए स्थान में खरगोश को बैठा देखा। तू तत्त्व को जानता था।
तेरे चित्त में अनुकंपा-अहिंसा का भाव जागा। 'खरगोश मेरे पैर से कुचला न जाए'— यह सोच तूने पांव को बीच में ही थाम लिया।
*24. शुभेनाध्यवसायेन, लेश्यया च विशुद्धया।*
*संसारः स्वल्पतां नीतो, मनुष्यायुस्त्वयार्जितम्।।*
शुभ अध्यवसाय और विशुद्ध लेश्या (भाव) से तूने संसार-भ्रमण-जन्म-मरण की संख्या को परिमित कर दिया और मनुष्य के आयुष्य का अर्जन किया।
*25. सार्द्धद्वयदिनेनाऽथ, दवः स्वयं शमं गतः।*
*निर्धूमं जातमाकाशं, अभया जन्तवोऽभवन्।।*
ढाई दिन के बाद दावानल अपने आप शांत हुआ। आकाश निर्धूम हो गया और वे वन्य-पशु निर्भय हो गए।
*महावीर द्वारा मेघकुमार के पूर्वभव के विस्तार से कथन में वर्तमान जन्म में राजकुमार होने की सार्थकता का निदर्शन...* आगे के श्लोकों में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 107* 📖
*अभय: प्रकम्पन और परिणमन*
गतांक से आगे...
राजा शिकार करने लगा। अंगरक्षकों के अश्व पीछे रह गए। राजा अकेला आगे निकल गया। कुछ दूरी पर एक चरवाहा मिला। चरवाहे ने देखा— अरे! यह तो राजा है, अकेला कैसे है? उसने सोचा— मुझे राजा की सहायता करनी चाहिए। यह सोचकर वह आगे बढ़ा। राजा ने चरवाहे को देखा, सोचा— यह अवश्य ही कोई विरोधी है, मुझ पर आक्रमण करने आ रहा है। राजा ने आदमी को पहचाना नहीं और कल्पना में एक भय समा गया। शत्रु का नाश करने के लिए राजा ने धनुष बाण संभाला। धनुष-टंकार कर तीर छोड़ने की तैयारी की।
चरवाहे ने तीव्र स्वर में निवेदन किया— 'राजन्! मैं आपका दुश्मन नहीं हूं। मैं आपका सेवक हूं।'
राजा रुका, घोड़े से नीचे उतरा। चरवाहे ने राजा का अभिवादन किया।
राजा ने कहा— 'अच्छा हुआ, तुम बोल गए अन्यथा मैं तुम्हें मार देता।'
चरवाहा बोला— 'कृपालु नरेश! आपमें अनेक विशेषताएं हैं, पर आदमी की पहचान नहीं है।'
नरेश ने पूछा— 'तुम क्या कहना चाहते हो?'
चरवाहा बोला— 'देखिए, मैं सैकड़ों घोड़ों को चरा रहा हूं। इनमें से आपके घोड़े को तत्काल पहचान लेता हूं। आप अपने भक्त और नौकर को नहीं पहचान पाए। आप यह भी नहीं पहचान सके कि यह आदमी मेरा है।'
राजा इस कथन को सुन शर्मिंदा हो गया।
यह समस्या केवल राजा की नहीं है, हर आदमी की है। वह अपने आपको नहीं पहचान रहा है और भय से ग्रस्त हो रहा है। यदि व्यक्ति अपने जीवन का विश्लेषण करे तो पता चलेगा— काल्पनिक भय कितना है? यथार्थ भय कितना है? दो कापियां बनाएं। एक कापी में यह लिखें— आज काल्पनिक भय कितना आया? दूसरी कापी में यह लिखें— वास्तविक भय कितना आया? आपकी पहली कपी पूरी भर जाएगी। दूसरी कापी के दो-चार पृष्ठ भी नहीं भरेंगे। वास्तविक भय कम होता है, संशय, कल्पना और संदेहजनित भय ज्यादा होता है। स्तुतिकार भगवान् आदिनाथ की स्तुति के माध्यम से अभय की चेतना को जगाने का प्रयत्न कर रहे हैं। वह काल्पनिक और वास्तविक– दोनों प्रकार के भय से मुक्ति दिलाने का प्रयत्न है। अपेक्षा यही है— हम स्तुति का हृदय समझें, अपने आराध्य के साथ भेद-प्रणिधान ही नहीं, अभेद-प्रणिधान स्थापित करें। अभेद-प्रणिधान अभय-चेतना की जागृति का अमोघ प्रयोग है। इस भूमिका पर ही अभय-जागरण के इस महान् अवदान का मूल्यांकन किया जा सकता है।
*भय के हेतु और अभय के आश्वासन...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 119* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*5. समझाने की उत्तम पद्धति*
*छह महीने बचे*
विक्रम संवत् 1853 के शेषकाल में स्वामीजी मांढा पधारे। वहां गृहस्थावस्था में हेमजी ने सिरियारी से आकर दर्शन किए। दूसरे दिन प्रातः स्वामीजी ने कुशलपुर की ओर विहार किया तथा हेमजी नीमली के मार्ग से सिरियारी की ओर चल दिए। मार्ग में स्वामीजी को अच्छे शकुन नहीं हुए, अतः वे भी उस मार्ग को छोड़कर नीमली की ओर ही आ गए। हेमजी की गति मंद थी और स्वामीजी की तेज, अतः पीछे से चलने पर भी वे उनसे आ मिले। स्वामीजी ने आवाज देते हुए कहा— 'हेमड़ा! हम भी इधर ही आ रहे हैं।'
हेमजी ने स्वामीजी को देखा तो ठहर कर वंदन किया और पूछा— 'आपने तो कुशलपुर की ओर विहार किया था, फिर इधर कैसे?'
स्वामीजी ने कहा— 'यही समझ ले कि आज तेरे लिए ही आए हैं।'
हेमजी ने कहा— 'बड़ी कृपा की।'
स्वामीजी बोले— 'तू लगभग तीन वर्ष से कह रहा है कि मेरी दीक्षा लेने की भावना है, पर अब अपना निश्चित निर्णय बतला कि मेरे जीते जी लेगा या मरने के पश्चात्?'
स्वामीजी की उक्त बात हेमजी के हृदय में चोट कर गई। वे खिन्न होकर बोले— 'आप ऐसी बात क्यों कहते हैं? मेरे कथन की सत्यता में आपको शंका हो तो नौ वर्ष के पश्चात् अब्रह्मचर्य का त्याग करा दें।'
स्वामीजी ने त्याग करवा दिए और कहा— 'लगता है, विवाह करने की इच्छा से तूने ये नौ वर्ष रखे हैं। परंतु तुझे यह समझ लेना चाहिए कि लगभग एक वर्ष विवाह होते-होते लग जाएगा। विवाह के पश्चात् यहां की प्रथा के अनुसार एक वर्ष तक स्त्री पीहर में रहेगी। इस प्रकार तेरे पास सात वर्ष का समय रहा। उसमें भी दिन के अब्रह्मचर्य का तुझे परित्याग है, अतः साढ़े तीन वर्ष ही रहे। इसके अतिरिक्त तुझे पांचों तिथियों के भी त्याग हैं। उन दिनों को बाद कर देने पर शेष दो वर्ष और चार महीने का समय ही बचता है। उन अवशिष्ट दिनों में भी सारा समय भोग-कार्य में नहीं लगता। प्रतिदिन घड़ी भर का समय गिना जाए, तो लगभग छह महीने का समय होता है। अब सोच की केवल छह मास के भोग के लिए नौ वर्ष का संयम खो देना कौनसी बुद्धिमत्ता है? यदि एक-दो संतान हो जाए, तब फिर व्यक्ति उनके मोह में उलझ जाता है। उस स्थिति में संयम ग्रहण करना कठिन हो जाता है।'
स्वामीजी के उक्त लेखे-जोखे ने हेमजी की संयम-भावना को उद्दीप्त कर दिया और उन्होंने उसी समय पूर्ण ब्रह्मचर्य स्वीकार कर लिया। कुछ दिनों के अनंतर तो वे प्रव्रजित ही हो गए।
*ऊपर के चावल*
एक व्यक्ति ने स्वामीजी के पास तत्त्व को समझा। दान, दया, श्रद्धा और आचार संबंधी मूलभूत तात्त्विक बातें उसकी समझ में आ गईं। इतना होने पर भी वह अपने-आप में निर्णीत नहीं हो पाया। उसका कथन था– 'स्वामीजी! यह सब तो आप जैसा कह रहे हैं, वैसा ही है, पर कुछ बातें ऐसी भी हो सकती हैं, जो ठीक न हों।'
स्वामीजी ने कहा— 'जब मूलभूत बातें ठीक हैं, तब अन्य को भी उसी आधार पर समझना चाहिए। चावल पके या नहीं इसकी परीक्षा ऊपर के पांच-चार चावलों को देखकर ही कर ली जाती है। नीचे के चावलों को देखने के लिए बर्तन के नीचे तक हाथ डालना व्यर्थ तो है ही, मूर्खता भी है।'
स्वामीजी के उक्त कथन ने उसके विवेक को एक ही क्षण में जागरित कर दिया। वह उसी क्षण से स्वामीजी का भक्त बन गया।
*कुछ घटना प्रसंगों के माध्यम से स्वामीजी के दृष्टांतों को...* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
चेतना सेवा केन्द्र,
कुम्बलगुड़ु,
बेंगलुरु,
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महाश्रमण चरणों में
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: दिनांक:
19 अगस्त 2019
🎯
: प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*
💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_
📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*
🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*
⌚ _दिनांक_: *_19 अगस्त 2019_*
🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
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👉 सिलीगुड़ी - स्वागत अभिनंदन समारोह एवं ज्ञानशाला दिवस का कार्यक्रम
👉 साहुकारपेठ: चैन्नई - ज्ञानशाला दिवस एवं 1250 सामूहिक एकासन अनुष्ठान समारोह आयोजन
👉 वणी (महा) - स्वतंत्रता दिवस पर मूकबधिर बच्चों द्वारा मुनि श्री के सान्निध्य में प्रस्तुति
👉 वणी (महा) - विशाल महिला सम्मेलन का आयोजन
👉 सूरत - महाप्रज्ञ अष्टकम लिखित प्रतियोगिता का आयोजन
👉 नागपुर - महिला मंडल शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन
👉 शालीमार बाग, दिल्ली- ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
प्रस्तुति - *🌻संघ संवाद 🌻*
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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 15* 📜
*अध्याय~~1*
*॥स्थिरीकरण॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*18. एकदा वह्निरुद्भूतः, आरण्याः पशवस्तदा।*
*निर्वैराः प्राविशंस्तत्र, हिंस्रास्तदितरे तथा।।*
एक बार वहां दावानल सुलगा। उस समय जंगल के हिंस्र और अहिंस्र— सभी पशु आपस में वैर भुलकर उस स्थल में घुस आए।
*19. यथैकस्मिन् बिले शान्ताः, निवसन्ति पिपीलिकाः।*
*अवात्सुः सकलास्तत्र, तथा वह्नेर्भयद्रुताः।।*
जैसे एक ही बिल में चीटियां शांतभाव से रहती हैं, वैसे ही दावानल से डरे हुए पशु शांतरूप से उस स्थल में रहने लगे।
*20. मण्डलं स्वल्पकालेन, जातं जन्तुसमाकुलम्।*
*वितस्ति मात्रमप्यासीत्, न स्थानं रिक्तमद्भुतम्।।*
थोड़े समय में वह स्थल वन्य पशुओं से खचाखच भर गया। यह आश्चर्य था कि वहां वितस्ति जितना भी स्थान खाली नहीं रहा।
*21. विधातुं गात्रकण्डूर्ति, त्वया पाद उदञ्चितः।*
*स्थानं रिक्तं समालोक्य, शशकस्तत्र संस्थितः।।*
तूने अपने शरीर को खुजलाने के लिए एक पांव को ऊंचा किया। तेरे उस पांव के स्थान को खाली देखकर एक खरगोश वहां आ बैठा।
*हाथी के भव में तब मेघ ने अपना पांव कहां रखा...?* आगे के श्लोकों में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 106* 📖
*अभय: प्रकम्पन और परिणमन*
गतांक से आगे...
आचार्य मानतुंग ने सिंह और अग्नि भय-निवारण का मंत्र प्रस्तुत श्लोकों में गुंफित किया है। व्याख्याकारों का मत है— ये श्लोक स्वयं मंत्र हैं। कुछ श्लोकों के साथ मंत्र की संयोजना की जाती है, किंतु अभय के जो श्लोक हैं, वे स्वयं मंत्र हैं। इन्हीं का जप करो, भावना बदल जाएगी। अलग से मंत्र का जप करने की जरूरत ही नहीं होगी। यह विश्वास करना कठिन है कि ये श्लोक इतने शक्तिशाली हैं। क्या शब्दों के उच्चारण मात्र से ऐसा हो सकता है? वस्तुतः यह शब्दों का उच्चारण मात्र नहीं है, परिणमन का सिद्धांत है। योग की भाषा में गुण संक्रमण का सिद्धांत है— अपने ध्येय के साथ तादात्म्य स्थापित करो, ध्येय में जो गुण हैं, वे ध्याता में संक्रांत हो जाते हैं। इसी आधार पर अनेक व्यक्ति अपने आराध्य की भिन्न-भिन्न रूपों में स्तुति करते हैं। जब व्यक्ति भय की स्थिति में होता है, तब *'अभय-दयाणं'* के रूप में, जब चिंता की स्थिति में होता है तब *'चक्खुदयाणं'* के रूप में और जब भटकाव की स्थिति में होता है, तब *'मग्गदयाणं'* के रूप में अपने आराध्य की स्तुति करता है, उसके साथ तादात्म्य स्थापित करता है। मन में दुर्बलता होती है, तो बाहुबली का ध्यान कर लेता है। जहां कष्ट सहिष्णुता का प्रश्न आता है, वहां महावीर के साथ एकात्म्य साध लेता है। सहिष्णुता के संदर्भ में महावीर आदर्श हैं। इस प्रकार जिस गुण का विकास करना होता है, उसके अनुरूप ध्येय, इष्ट अथवा आराध्य सामने प्रस्तुत कर लेते हैं, उनके साथ तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं और वैसे ही बन जाते हैं। इसलिए इस तथ्य में कोई संदेह नहीं है कि भय का निवारण किया जा सकता है, अभय की चेतना विकसित की जा सकती है।
बहुत आवश्यक है अभय की चेतना का विकास। अभय की चेतना जागती है तो सत्तर-अस्सी प्रतिशत दुःख अपने आप कम हो जाता है। अधिकांश दुःख कल्पनाजनित होते हैं, वास्तविक नहीं होते। आदमी अपनी कल्पना से एक भय बना लेता है और डरता रहता है। यदि वह अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान ले तो समस्याएं विलीन हो जाएंगी।
*अभय-जागरण के महान् अवदान...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 118* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*5. समझाने की उत्तम पद्धति*
*शाह और साधु*
किसी ने पूछा— 'भीखणजी! तुम जिन्हें असाधु मानते हो, उन्हीं को 'अमुक साधु' कहकर क्यों पुकारते हो?'
स्वामीजी ने कहा— 'किसी ने दिवाला निकाल दिया हो, फिर भी विशेष अवसर पर उसकी ओर से जब गांव में निमंत्रण दिया जाता है, तब यही कहा जाता है कि आज अमुक शाह के घर का निमंत्रण है। इसी तरह साधुत्व न पालने पर भी द्रव्य निक्षेप की अपेक्षा से उसे साधु कहा जाता है।'
*तो संवर कर ले*
ढूंढाड़ का एक श्रावक शंकाशील हो गया। संघ से पृथक् हुए मुनि वीरभाणजी ने स्वामीजी के विषय में अनेक असत्य बातें कहकर उसे भ्रांत कर बना दिया था। कालांतर में जब स्वामीजी उधर पधारे, तब वह आया तो सही, पर नमस्कार नहीं किया। स्वामीजी ने उसे सामायिक करने के लिए कहा, तो बोला— 'सामायिक तो मैं नहीं करूंगा, क्योंकि संभव है, बातचीत करते समय मेरे मुंह से आपके लिए 'स्वामीजी' शब्द का प्रयोग हो जाए, तो मुझे सामायिक में दोष लगे।'
स्वामीजी ने कहा— 'एक मुहूर्त्त का संवर कर ले। उसमें तू यथावश्यक आगार रख सकता है।'
उसने तब संवर किया। स्वामीजी ने उसकी एक-एक शंका का समाधान किया। निस्संदेह होने पर अपने अविनय के लिए क्षमा मांगता हुआ वह स्वामीजी के पैरों में गिर पड़ा।
*कौन-सा खपरेल लाएगा*
मुनि बेणीरामजी बाल्यावस्था में थे, तब एक दिन स्वामीजी से कहने लगे— 'हमें हिंगुल से पात्र नहीं रंगने चाहिए, क्योंकि रंग की सुंदरता पात्र के प्रति ममत्व पैदा करती है।'
स्वामीजी ने कहा— 'हमें तो ऐसा अनुभव नहीं हुआ, तुम्हें होता हो तो मत रंगना।'
मुनि बेणीरामजी ने कहा— 'मैं खपरेल से रंगने का विचार करता हूं।'
स्वामीजी ने कहा— खपरेल लेने जाओगे, तब यदि पहले पीले रंग का कच्चा खपरेल दिखाई दे, फिर उससे कुछ आगे लाल रंग का पक्का खपरेल दिखाई दे तो तुम कौनसा लोगे?'
मुनि बेणीरामजी ने कहा— 'उनमें से तो लाल रंग वाला पक्का खपरेल ही लूंगा।'
स्वामीजी ने कहा— 'तब तुम्हारी भावना तो अच्छा रंग खोजने की ही रही। खपरेल में जब अच्छा रंग खोजते हो, तो मूल रंग को ही काम में लेने में क्या बाधा है? ममत्व तो मन का दोष है, रंग तथा सुंदरता का नहीं।'
मुनि बेणीरामजी के मन में स्वामीजी की उक्त बात पूर्णरूपेण बैठ गई। उसके बाद उनको उस संदेह ने कभी नहीं सताया।
*स्वामीजी ने मुनि हेमराजजी की संयम-भावना को किस तरह समझाकर उद्दीप्त किया...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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सूचना___
*70वां अणुव्रत अधिवेशन*
*(बेंगलुरू)*
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: सान्निध्य:
*अणुव्रत अनुशास्ता*
*आचार्य श्री महाश्रमण जी*
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: त्रिदिवसीय:
*21, 22, 23 अक्टूबर 2019*
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: प्रस्तुति:
*अणुव्रत सोशल मीडिया*
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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*
💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_
📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*
🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*
⌚ _दिनांक_: *_18 अगस्त 2019_*
🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
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आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
चेतना सेवा केन्द्र,
कुम्बलगुड़ु,
बेंगलुरु,
⛳
महाश्रमण चरणों में
📮
: दिनांक:
18 अगस्त 2019
🎯
: प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 इरोड ~ स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम का आयोजन
👉 शालीमार बाग, दिल्ली- सामूहिक आयम्बिल तप का आयोजन
👉 रायपुर - स्वतंत्रता दिवस का आयोजन
👉 टिटलागढ़ - सामूहिक तप अभिनंदन का कार्यक्रम आयोजित
👉 हुबली- सामूहिक उपवास तप आराधना
👉 कांलावाली - वृहद सामायिक कार्यशाला का आयोजन
👉 गंगाशहर - मुनि श्री सुमति कुमार जी के सान्निध्य में तपस्वियों द्वारा प्रत्याख्यान
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
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आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २३२* - *चित्त शुद्धि और लेश्या ध्यान १*
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