Update
👉 उदयपुर - समय जीवन की बहुमूल्य निधि है विषयक कार्यशाला
👉 केजीएफ ~ "स्वस्थ आहार का सेवन, श्रेष्ठ आरोग्य हर क्षण" कार्यशाला का आयोजन
👉 पीलीबंगा ~ त्रिदिवसीय प्रेक्षाध्यान कार्यशाला का आयोजन
👉 दालकोला ~ ज्ञानशाला दिवस कार्यक्रम का आयोजन
👉 टॉलीगंज (कोलकाता) ~ संबोधि ग्रंथ पर आधारित जैन विद्या परीक्षा का आयोजन
👉 बेंगलुरु ~ "समय जीवन की बहुमूल्य निधि" कार्यशाला का आयोजन
👉 केजीएफ ~ जैन विद्या कार्यशाला परीक्षा का आयोजन
👉 ठाणे (मुम्बई) ~ नशामुक्ति रैली का आयोजन
👉 तिरुपुर ~ जैन विद्या कार्यशाला परीक्षा का आयोजन
👉 सिंधनूर ~ "अध्यात्म का ज्ञान, विकास का सोपान" कार्यशाला का आयोजन
👉 घाटकोपर (मुंबई) ~ अणुव्रत समिति द्वारा नशामुक्ति रैली का आयोजन
👉 हिसार ~ जैन संस्कार विधि से सामूहिक जन्मोत्सव
👉 मैसूर - जैन महाप्रज्ञ प्रज्ञा केंद्र का उदघाटन
👉 भुज - जैन विद्या कार्यशाला परीक्षा
👉 बारडोली - जैनविद्या कार्यशाला परीक्षा का आयोजन
👉 रायपुर - जैन विद्या कार्यशाला परीक्षा का आयोजन
👉सिरसा - हैप्पी एन्ड हॉर्मोनियस फेमिली पर भव्य नाटिका का मंचन
👉 जयपुर शहर - "समय जीवन की बहुमूल्य निधि" कार्यशाला का आयोजन
👉 हावड़ा ~ अणुव्रत समिति द्वारा नशामुक्ति कार्यशाला का आयोजन
👉 दिल्ली ~ नशामुक्ति जनजागरण अभियान
👉 ठाणे - अणुव्रत कार्यकर्ता कार्यशाला उन्मेष का आयोजन
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 22* 📜
*अध्याय~~2*
*॥सुख-दुःख मीमांसा॥*
💠 *भगवान् प्राह*
*2. सुखासक्तो मनुष्यो हि, कर्त्तव्याद् विमुखो भवेत्।*
*धर्मे न रुचिमाधत्ते, विलासाबद्धमानसः।।*
भगवान ने कहा— जो मनुष्य सुख में आसक्ति रखता है और विलास में रचा-पचा रहता है, उसकी धर्म में रुचि नहीं होती, वह कर्तव्य से भी विमुख हो जाता है।
*3. कर्त्तव्यञ्चाप्यकर्त्तव्यं, भोगसक्तो न शोचति।*
*कार्याकार्यमजानानो, लोकश्चान्ते विषीदति।।*
भोग में आसक्त रहने वाला व्यक्ति कर्तव्य और अकर्तव्य के बारे में सोच नहीं पाता। कर्तव्य और अकर्तव्य को नहीं जाननेवाला व्यक्ति अंत में— परिणाम काल में विषाद को प्राप्त होता है।
💠 *मेघः प्राह*
*4. सुखं स्वाभाविकं भाति, दुःखमप्रियमङ्गिनाम्।*
*तत् किं दुःख हि सोढव्यं, विहाय सुखमात्मनः।।*
मेघ बोला— प्राणियों को सुख स्वाभाविक लगता है, प्रिय लगता है और दुःख अप्रिय। तब सुख को ठुकराकर दुःख क्यों सहा जाए?
💠 *भगवान् प्राह*
*5. यत् सौख्यं पुद्गलैः सृष्टं, दुःखं तद् वस्तुतो भवेत्।*
*मोहाविष्टो मनुष्यो हि, सत् तत्त्वं नहि विदन्ति।।*
भगवान ने कहा— जो सुख पुद्गलजनित है, वह वस्तुतः दुःख है, किंतु मोह से घिरा हुआ मनुष्य इस सही तत्त्व तक पहुंच नहीं पाता।
*मोह क्या है उसका मूल और विपाक क्या है...? मेघ द्वारा यह पूछना... इन तीनों प्रश्नों के उत्तर में भगवान द्वारा दृष्टिमूढ़ और चारित्रमूढ़ व्यक्ति का भवभ्रमण बतलाना…* पढ़ेंगे आगे के श्लोकों में... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 112* 📖
*नाम में छिपी है नागदमनी*
गतांक से आगे...
गौतम बुद्ध ध्यान में खड़े थे। आल्वक यक्ष आया, पूछा— बोलो, कौन सा धन है, जो सबसे श्रेष्ठ है? कौन सा रस है, जो सबसे श्रेष्ठ है? यदि सही उत्तर नहीं दिया तो मार दूंगा। बुद्ध ने कहा— उत्तर न दूं तो भी तुम मार नहीं सकोगे। फिर भी मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर अवश्य दूंगा। बुद्ध बोले— श्रेष्ठ धन है श्रद्धा का धन।
जिसमें श्रद्धा नहीं होती, वह सचमुच दरिद्र होता है। जिनके पास धन बहुत है, किंतु श्रद्धा और आत्म-विश्वास नहीं है, वे लोग बहुत दुःख भोगते हैं। हमने ऐसे संपन्न लोगों को बच्चों की तरह रोते हुए देखा है। वे लोग कभी सुख और शांति का जीवन नहीं जी सकते, जिनके पास श्रद्धा का धन नहीं है, आत्मविश्वास नहीं है। जिसके पास श्रद्धा का बल है, प्रकृष्ट आत्मविश्वास है, वह कभी भी, किसी भी स्थिति में घबराता नहीं है।
दूसरा प्रश्न था— सबसे श्रेष्ठ रस कौन सा है? रस शब्द सुनते ही व्यक्ति का ध्यान मनोज्ञ पदार्थों पर अटक जाता है। मुंह से लार टपकने लग जाती है। बुद्ध ने कहा— श्रेष्ठ रस है सत्य का रस।
सत्य दुनिया का सबसे बड़ा रस है। जिसकी सत्य के प्रति निष्ठा जाग गई, वह इन बाहरी भौतिक रसों में कभी नहीं उलझेगा। उसके लिए सारे रस नीरस बन जाएंगे। जिस व्यक्ति में सत्य के प्रति आकर्षण पैदा हो गया, वह हजारों कष्टों और कठिनाइयों को सह लेगा, किंतु एक क्षण के लिए भी दुःखी नहीं होगा। जीवन को रसमय बनाने वाला, भावनाओं को पवित्र बनाने वाला तत्व है— सत्य।
बुद्ध के उत्तर से यक्ष शांत और संतुष्ट हो गया।
श्रद्धा का बल बहुत बड़ा बल होता है। श्रद्धा के आवेश में यह कह दें— ऐसा हो सकता है तो वह हो भी सकता है, किंतु मानतुंग सूरि ने जो कहा है, उसकी कसौटी भी करें। क्या केवल यह श्रद्धा का स्वर है अथवा इसमें सच्चाई भी है? इस काव्य में दोनों प्रतीत होते हैं— श्रद्धा भी है, श्रद्धा के साथ सच्चाई भी है। सच्चाई यह है— बुद्धिबल के द्वारा बड़े युद्ध को टाला जा सकता है, तो श्रद्धा के द्वारा क्यों नहीं टाला जा सकता?
*बुद्धि बल से सेना को भगाने की जैन इतिहास की एक घटना...* पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 124* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*8. आचार-निष्ठ व्यक्तित्व*
*पूर्ण जागरूक*
स्वामीजी एक परिपूर्ण आचारनिष्ठ व्यक्ति थे। इसीलिए वे आजीवन आचार की शिथिलता के विरुद्ध अपनी सारी शक्ति लगाकर जूझते रहे। वे जानते थे कि ऐसा करने पर वे लोग उनके विरुद्ध हो जाएंगे, जो आचार-पालन में ढिलाई रखते हैं। वे यह भी जानते थे कि कुछ लोग चिढ़कर अपने सुधार की अपेक्षा उनको कोसने में ही अधिक तत्पर हो जाएंगे तथा उनकी हर छोटी से छोटी क्रिया पर ध्यान रखकर उसमें त्रुटि खोजने का प्रयास करेंगे। परंतु उन्हें उन सब स्थितियों का कोई भय नहीं था। वे स्वयं परिपूर्ण जागरूक थे।
दूसरे की आलोचना करने वाला या त्रुटि बतलाने वाला यदि स्वयं अपनी सावधानी नहीं रखता हो, तो उसके कथन का दूसरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता। स्वामीजी इतने सावधान रहते थे कि जहां थोड़ी सी भी शंका का स्थान होता, वहां वे आवश्यक होने पर भी उस काम को नहीं करते। इसीलिए वे दूसरों को बेधड़क सावधान किया करते थे और दूसरे उनकी ओर कहीं अंगुली उठाने का भी अवसर नहीं पाते थे।
*व्यक्तिगत भी नहीं लेंगे*
रियां के सेठ हजारीमलजी धनाढ्य व्यक्ति थे। विभिन्न संप्रदायों के साधुओं को उन्होंने अनेक बार कपड़े का दान दिया था। एक बार स्वामीजी से भी उन्होंने कपड़े की प्रार्थना की।
स्वामीजी ने कहा— 'तुम संतो के लिए कपड़ा मोल लेते हो, अतः हमें वह नहीं कल्पता।'
सेठ— 'दूसरे संत तो ले लेते हैं। इसमें क्या कोई दोष लगता है?'
स्वामीजी— 'यह तो उन लेने वालों से ही पूछना।'
सेठ— 'तो आप मेरे व्यक्तिगत कपड़े में से कुछ ले लें।'
स्वामीजी— 'हां, वह हमें कल्पता है, किंतु हम उसमें से भी नहीं लेंगे, क्योंकि लोग तो यही समझेंगे कि तुम्हारे यहां से दूसरे साधु भी कपड़ा ले गए थे और भीखणजी भी ले गए। यह तार कौन निकालेगा की भीखणजी उनके व्यक्तिगत कपड़ों में से ले गए, जो कि साधुओं के लिए खरीदा नहीं गया था।'
*एक अन्य संप्रदाय के मुनि को स्वामी भीखणजी की आचार-निष्ठा में त्रुटि होने की आशंका का एक रोचक प्रसंग...* पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*
💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_
📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*
🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*
⌚ _दिनांक_: *_26 अगस्त 2019_*
🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
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आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
चेतना सेवा केन्द्र,
कुम्बलगुड़ु,
बेंगलुरु,
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महाश्रमण चरणों में
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: दिनांक:
26 अगस्त 2019
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: प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २३६* - *चित्त शुद्धि और लेश्या ध्यान ५*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
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🌻 *संघ संवाद* 🌻