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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#चिंतन का #परिणाम *: #श्रंखला ४*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
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🌻 #संघ #संवाद 🌻
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🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २४२* - *चित्त शुद्धि और लेश्या ध्यान ११*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
⏯ *अणुमहासमिति के निर्देशानुसार विभिन्न क्षेत्रों में अणुव्रत चेतना दिवस का आयोजन.............*
☢ कोलकाता
♊ फरीदाबाद
💹 हिसार
☢ हुबली
♊ भवानीपुर (कोलकाता)
💹 औरंगाबाद
☢ शाहीबाग (अहमदाबाद)
♊ विजयवाड़ा
👉 वापी
⏯ *अभातेयुप के निर्देशानुसार विभिन्न क्षेत्रों में अभिनव सामायिक का आयोजन.........*
✴ कोयंबटूर
✳ दक्षिण मुंबई
🌀 सचिन, सूरत - हैप्पी एन्ड हॉर्मोनियस फेमिली सेमिनार का आयोजन
💦 रांची ~ जैन प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन
💧 कोकराझार ~ ज्ञानशाला दिवस का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
⏯ *अभातेयुप के निर्देशानुसार विभिन्न क्षेत्रों में अभिनव सामायिक का आयोजन.........*
✴ जयपुर
✳ जलगांव
✡ चित्रदुर्गा
✴ होसपेट
⏯ *अणुमहासमिति के निर्देशानुसार विभिन्न क्षेत्रों में अणुव्रत चेतना दिवस का आयोजन*
☢ सादुलपुर
♊ बल्लारी
🌀 विरार ~ "नशामुक्ति कार्यशाला का आयोजन"
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 27* 📜
*अध्याय~~2*
*॥सुख-दुःख मीमांसा॥*
💠 *मेघः प्राह*
*21. कानि स्रोतांसि के वा स्युः, विषयाश्च प्रियाप्रियाः?*
*कथ तेषां निरोधः स्याद्, इति श्रोतुं समुत्सुकः।।*
मेघ बोला— स्रोत कौन से हैं? प्रिय और अप्रिय विषय क्या हैं? उनका निरोध कैसे हो सकता है? मेरे मन में इन्हें जानने की उत्कंठा है।
💠 *भगवान् प्राह*
*22 स्पर्श रसास्तथा गन्धा, रूपाणि निनदा इमे।*
*विषया ग्राहकाण्येषां, इन्द्रियाणी यथाक्रमम्।।*
*23. स्पर्शनं रसनं घ्राणं, चक्षुः श्रोतञ्च पञ्चमम्।*
*एषां प्रवर्तकं प्राहुः, सर्वार्थग्रहणं मनः।।*
*(युग्मम्)*
भगवान ने कहा— स्पर्श, रस, गंध, रूप और शब्द— ये पांच हैं और इन को ग्रहण करनेवाली क्रमशः ये पांच इंद्रियां हैं— स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत। इन पांच इंद्रियों का प्रवर्तक और सब विषयों को ग्रहण करने वाला मन होता है।
*24. न रोद्धुं विषयाः शक्याः, विशन्तो विषयिव्रजे।*
*सङ्गो व्यक्तोऽथवाऽव्यक्तो, रोद्धुं शक्योस्ति तद्गतः।।*
इंद्रिय-स्रोतों में आने वाले शब्द, रूप, गंध, रस, स्पर्श आदि विषयों को नहीं रोका जा सकता, किंतु उनमें होने वाले व्यक्त या अव्यक्त संग— मूर्च्छा अथवा आसक्ति को रोका जा सकता है।
*मन की अशांति के तीन हेतु... एक मूढ़ता से दूसरी मूढ़ता... उत्पाद-नाश, संग्रह-व्यय, क्रिया-प्रतिक्रिया— तीन युगल...* इत्यादि के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... आगे के श्लोकों में... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 117* 📖
*रक्षाकवच*
गतांक से आगे...
भाई का एक हेतु है— समुद्र-यात्रा। आज से दो-ढाई हजार वर्ष पहले सामुद्रिक यात्री लंका, जावा, सुमात्रा, उत्तर-दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया आदि-आदि द्वीपों में व्यापार के लिए जाते थे। जैन श्रावक भी बहुत यात्रा करते थे। इस विषय पर एक सुंदर पुस्तक मोतीचंद शाह ने लिखी है— सार्थवाह। उसमें विस्तार से यह वर्णन है कि किस प्रकार जैन श्रावक समुद्र की यात्रा पर बाहर जाते थे, व्यापार करते थे, धन का अर्जन करते थे और वहां वास कर लेते थे। आजकल अनेक लोग जहां भी जाते हैं, वहां के निवासी बन जाते हैं। एक व्यक्ति अमेरिका गया, उसने ग्रीन कार्ड खरीदा, अमेरिकन बन गया। ऐसा पहले भी होता था। यहां चंपानगरी है। वियतनाम में भी एक नगर का नाम है चम्पा। पुरातत्व की बहुत साधन-सामग्री मिलती है, जिससे यह पता चलता है कि भारत का इन द्वीपों से कितना संपर्क रहा है। इंडोनेशिया में रामायण का बहुत प्रचलन है। वहां के निवासी मुसलमान बन गए हैं, फिर भी रामायण चलती है। बहुत सारे चिह्न भी मिलते हैं, जिससे यह प्रमाणित होता है कि प्राचीनकाल में वे द्वीप भारतीय संस्कृति से बहुत संपृक्त रहे हैं।
आज समुद्री-यात्रा उतनी भयंकर नहीं है, जितनी पहले थी। आज बड़े-बड़े जलपोत बन गए हैं। उस समय इतने विशाल जलपोत नहीं थे। उस युग में यात्रा में कठिनाइयां भी बहुत आती थीं। तूफान और बवंडर के समय नौकाएं समस्याओं से किस प्रकार घिर जाती हैं, यह समुद्री यात्रा करने वाला ही जानता है। आचार्य मानतुंग इस विघ्न की भयंकरता का चित्रण करते हुए निवारण का उपाय सुझा रहे हैं। मानतुंग ने कहा— ऐसा समुद्र जिसमें भयंकर मगरमच्छ हैं, ह्वेल जैसी विशालकाय मछलियां हैं। ऐसी भयंकर मछलियां जिनके उदर में पूरा जलपोत समा जाए। मगरमच्छों का समूह क्षुभित बना हुआ है। उस समुद्र में भी भीषण वडवाग्नि लगी हुई है। जल में भी अग्नि होती है। वन की आग का नाम है— दावानल और जल की अग्नि का नाम है— वड़वानल। ऐसे समुद्र में जलपोत चल रहा है और वह उछलती-मचलती तरंगों के शिखर पर चल रहा है। पहले जलपोत जल की सतह पर चल रहा था, किंतु एक बवंडर आया और वह उछलती हुई तरंगों के शिखर पर चलने लगा। पानी का ज्वार जलपोत को आकाश की ओर उछाल रहा है। आज भी जब समुद्र में तीव्र ज्वार अथवा तूफान आता है, नौकाएं आकाश की ओर उछल जाती हैं, समुद्र में उलट जाती हैं। यात्री समुद्र की गोद में समा जाते हैं। जो तैरना जानता है, वही बच पाता है। मानतुंग कह रहे हैं— ऐसी स्थिति में जब व्यक्ति जीवन और मौत के बीच झूलता है, आपका स्तवन बिना त्रास के उसे सकुशल गंतव्य तक पहुंचा देता है—
*अंभोनिधौ क्षुभितभीषणनक्रचक्र-*
*पाठीनपीठभयदोल्वणवाडवाग्नौ,*
*रंगत्तरंगशिखरस्थितयानपात्रा-*
*स्त्रासं विहाय भवतः स्मरणाद् व्रजन्ति।।*
यह स्तुति समझ में आने वाली स्तुति है। विघ्न आया, स्तुति की और विघ्न टल गया। इस स्तुति के आलोक में युद्ध के संदर्भ को देखें— आपकी स्तुति करने वाला युद्ध के खतरे को पार कर गया। जो व्यक्ति आक्रमण की बात सोचता है, मेरे पास मंत्र का बल है, स्तुति और भक्ति का बल है, मैं जो चाहूं कर सकता हूं, वह स्वयं अपना अनिष्ट कर लेता है। जैन तीर्थंकर के समवसरण में, उनके परिपार्श्व में ऐसी चिंतनधारा उभरती ही नहीं है। दूसरे का अनिष्ट करे, आक्रांता बने और विजय की आकांक्षा करे, यह अहिंसाधर्म के सर्वथा प्रतिकूल आचरण है। वांछनीय आचरण यह है— जो विघ्न आ गया, किसी ने युद्ध थोप दिया तो व्यक्ति उससे अपनी रक्षा करे, आक्रमणकारी को सफल न होने दे। स्तुति इस कार्य में योगभूत बनती है, उससे विघ्न का निवारण सहज-साध्य हो जाता है।
*एक जैन श्रावक द्वारा स्वयं अहिंसा में दृढ़ रहना और बलि लेने वाली देवी को भी अहिंसक बना देने की एक घटना...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 129* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*9. अध्यात्म-प्रेरक*
*अमृतमय प्रेरणा*
आचार्य भिक्षु अध्यात्म-प्रेरणा के एक महान् स्रोत थे। उनका प्रत्येक कार्य व्यक्ति के अध्यात्म-भाव को जागरित करने वाला होता था। उनके मुख से निःसृत वाणी का निर्झर व्यक्ति के हृदय को विराग-भाव से सिंचित कर जाता था। जो उनके संपर्क में आता वह मोह से अमोह की ओर, प्रमाद से अप्रमाद की ओर तथा अज्ञान से ज्ञान की ओर बढ़ने की अमृतमय प्रेरणा प्राप्त करता था।
*रूपांजी की चिंता छोड़*
विक्रम संवत् 1855 का चातुर्मास स्वामीजी ने पाली में किया। वहां मुनि खेतसीजी अचानक रुग्ण हो गए। वमन और अतिसार ने उनके शरीर को शिथिल बना दिया। रात्रि में शारीरिक आवश्यकता से वे बाहर गए तो वापस आते समय मार्ग में ही मूर्च्छित होकर गिर पड़े। धमाका सुनकर स्वामीजी जाग पड़े। उन्होंने मुनि हेमराजजी को जगाया। दोनों ने मिलकर मार्ग में मूर्च्छित पड़े मुनि खेतसीजी को उठाया और बिछौने पर लाकर लिटाया। उनकी शारीरिक दशा देखकर स्वामीजी ने मुनि हेमराजजी से कहा— 'देख, संसार की माया कितनी कच्ची है! खेतसीजी जैसा सबल व्यक्ति एक ही दिन में इतना निर्बल हो गया।' वे उनके पास बैठकर शरण आदि दिलाने लगे। कुछ समय पश्चात् उनकी मूर्च्छा टूटी तब स्वामीजी से कहने लगे— 'आप रूपांजी को पढ़ाने की कृपा करना।'
स्वामीजी ने तत्क्षण टोकते हुए कहा— 'रूपांजी की चिंता छोड़ और अपनी चिंता कर। तेरे लिए यह समय समाधिपूर्वक आत्म-चिंतन में लगने का है। बहिन की चिंता करने का नहीं।' मुनि खेतसीजी ने स्वामीजी का कथन शिरोधार्य किया। कुछ दिन पश्चात् वे रोग-मुक्त हो गए।
*बहिन चली गई*
मुनि हेमराजजी गृहस्थ थे, उस समय का प्रसंग है। उनकी एक बहिन थी। मामा आए और उसे अपने साथ ले गए। हेमजी बहिन से बहुत प्यार करते थे, अतः उदास हो गए। स्वामीजी की सेवा में बैठे थे तो भी उनकी आकृति पर उदासी स्पष्ट लक्षित हो रही थी।
स्वामीजी ने पूछा— 'हेमड़ा! आज उदास कैसे हैं?'
हेमजी बोले— 'बहिन ननिहाल चली गई है। उसकी याद मन को मथ रही है। जी चाहता है कि असवार भेजकर उसे वापस बुला लूं।'
स्वामीजी ने कहा— 'संयोग के साथ वियोग जुड़ा रहता है। संयोग से जो सुख का अनुभव करता है, उसे वियोग से दुःखी भी होना पड़ता है। दोनों में सम रहने वाला ही सारी व्यथाओं से मुक्त होता है।'
स्वामीजी के उक्त शब्दों ने हेमजी के उत्तप्त मन को बड़ी शांति प्रदान की।
*भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न लोगों को स्वामीजी द्वारा दी गई आध्यात्मिक प्रेरणाओं...* के बारे में जानेंगे... कुछ प्रसंगों के माध्यम से और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*
💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_
📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*
🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*
🕎 _पर्युषण महापर्व_ ~ *_अणुव्रत चेतना दिवस_*
⌚ _दिनांक_: *_31 अगस्त 2019_*
🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*
https://www.facebook.com/SanghSamvad/
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*परम पूज्य आचार्य प्रवर*
के प्रातःकालीन *भ्रमण*
के *मनमोहक* दृश्य
*बेंगलुरु____*
⏰
*: दिनांक:*
31 अगस्त 2019
💠
*: प्रस्तुति:*
🌻 संघ संवाद 🌻
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👉 *#चिंतन का #परिणाम *: #श्रंखला ३*
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आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २४१* - *चित्त शुद्धि और लेश्या ध्यान १०*
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