Updated on 22.08.2022 23:09
आज आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त कार्यक्रम में आचार्यश्री के हुए केश और मुखारविंद के लुंचन के संदर्भ में प्रवचन पंडाल में उपस्थित चारित्रात्माओं सहित समस्त श्रावक-श्राविकाओं ने अपने स्थान पर करबद्ध खड़े हुए और अपने आराध्य को सविनय वंदन कर लुंचन की निर्जरा में सहभागी बनाने की प्रार्थना की तो मानों एक अनूठा नजारा दृश्यमान होने लगा। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पट्ट से निचे विराजकर अपने से रत्नाधिक संत को वंदन करने के उपरान्त चतुर्विध धर्मसंघ को मंगल प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि हमारे साधु परंपरा में लोच की परंपरा है। इसके तहत हमारे भी वर्ष में दो बार मस्तक का लोच होता है और कुल करीब पांच बार मुख के बालों का लोच होता है। केश को शृंगार भी माना गया है तो भला साधु को शृंगार की क्या आवश्यकता है। प्रायः संवत्सरी से पहले-पहले केश लोच हो जाता है। मैं इस संदर्भ में साधु-साध्वियों व समणियों को एक-एक घंटा आगम स्वाध्याय व श्रावक-श्राविकाओं को सात-सात सामायिक करने का प्रयास करें।Posted on 22.08.2022 13:45
🌸 साधुओं की उपासना करने वाला होता है श्रमणोपासक : आचार्यश्री महाश्रमण 🌸-आचार्य भिक्षु ने की नए पंथ की स्थापना, जो तेरापंथ के नाम से है विख्यात
-आचार्यश्री के लुंचन की निर्जरा में सहभागी बना चतुर्विध धर्मसंघ
-पर्युषण महापर्व के दौरान विशेष साधना करने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
22.08.2022, सोमवार, छापर, चूरू (राजस्थान) :
छापर चतुर्मास के दौरान भगवती सूत्र के माध्यम से ज्ञान की गंगा बहा रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को भगवती सूत्र के माध्यम से भगवान महावीर के काल के एक नगरी तुंगिका का वर्णन करते हुए वहां रहने वाले श्रमणोपासकों का वर्णन किया। वहीं छापर चतुर्मास के दौरान पहली बार आचार्यश्री का केश लुंचन के साथ मुखरविंद का भी लुंचन हुआ तो मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में चतुर्विध धर्मसंघ ने अपने आराध्य के समक्ष करबद्ध सविनय वंदन करते हुए निर्जरा में सहभागी बनाने की प्रार्थना की तो जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने साधु-साध्वियों व समणियों को एक-एक घंटा आगम स्वाध्याय तथा श्रावक-श्राविकाओं को सात-सात अतिरिक्त सामायिक करने की प्रेरणा प्रदान की। अपने आराध्य से ऐसी प्रेरणा प्राप्त कर चतुर्विध धर्मसंघ आह्लादित नजर आ रहा था।
सोमवार को चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ को आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवी सूत्र के आधार पर मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि भगवान महावीर ने साधना की, केवलज्ञान को प्राप्त किया और उन्होंने तीर्थ की स्थापना की और तीर्थंकर बने। उस समय साधु-साध्वियों का बहुत विकास हुआ तो श्रावक-श्राविकाओं का विकास हुआ। उनके समय में तुंगिका नाम की नगरी थी। जहां बहुत से श्रमणोपासक रहते थे। वे सुविधा सम्पन्न थे और प्रभावशाली थे। साधुओं की उपासना करने वालों को श्रमणोपासक कहा जाता है। उन्हें कोई पराजित नहीं किया था। वे ज्ञान से भी सम्पन्न थे। उसी प्रकार आचार्य भिक्षु ने भी एक नए पंथ की स्थापना की जो आज तेरापंथ के नाम से विख्यात है। यूं देखा जाए तो परम पूज्य आचार्य भिक्षु द्वारा रचित साहित्य की तेरापंथ के मुख्य शास्त्र हैं। तेरापंथ के श्रावक-श्राविकाओं का भी विस्तार हुआ है। देश के विभिन्न हिस्सों सहित विदेशों में भी तेरापंथी श्रावक रहते हैं। उसी प्रकार हमारे साधु-साध्वियां भी विभिन्न क्षेत्रों में फैले हुए हैं। कई ऐसे भी क्षेत्र हैं जहां साधु-साध्वियों का नहीं जाना होता है तो वहां हमारे उपासक-उपासिकाएं जाते हैं।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त कार्यक्रम में आचार्यश्री के हुए केश और मुखारविंद के लुंचन के संदर्भ में प्रवचन पंडाल में उपस्थित चारित्रात्माओं सहित समस्त श्रावक-श्राविकाओं ने अपने स्थान पर करबद्ध खड़े हुए और अपने आराध्य को सविनय वंदन कर लुंचन की निर्जरा में सहभागी बनाने की प्रार्थना की तो मानों एक अनूठा नजारा दृश्यमान होने लगा। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पट्ट से निचे विराजकर अपने से रत्नाधिक संत को वंदन करने के उपरान्त चतुर्विध धर्मसंघ को मंगल प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि हमारे साधु परंपरा में लोच की परंपरा है। इसके तहत हमारे भी वर्ष में दो बार मस्तक का लोच होता है और कुल करीब पांच बार मुख के बालों का लोच होता है। केश को शृंगार भी माना गया है तो भला साधु को शृंगार की क्या आवश्यकता है। प्रायः संवत्सरी से पहले-पहले केश लोच हो जाता है। मैं इस संदर्भ में साधु-साध्वियों व समणियों को एक-एक घंटा आगम स्वाध्याय व श्रावक-श्राविकाओं को सात-सात सामायिक करने का प्रयास करें।
आचार्यश्री 24 अगस्त से प्रारम्भ होने वाले पर्युषण महापर्व के संदर्भ में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की रूप-रेखा का वर्णन करते हुए चतुर्विध धर्मसंघ को धर्माराधना में समय का नियोजन करने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री ने भगवती सूत्र और कालूयशोविलास के आख्यान पर कुछ समय के लिए विराम की घोषणा भी की। कार्यक्रम में सुश्री प्रज्ञा दुधोड़िया ने गीत का संगान किया।
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