Jhini Charcha was written by Acharya Jeetmal. It contains macro things of metaphysics. Jain Terms like Leshya, Bhav, Gunsthan, Yog, Upyog have been discussed on basis of different Agam. He composed it in the form of poetry in an easy Rajasthani language.
Noted Singer Babita Gunecha has presented it in a melodious voice.
Jhini Charcha book contains 22 Dhal (Collection of 22 Poems) .
Dhal. 2 Stanza 13 to 24
ढाल 2 पद्य 13 से 24
१३. खयोपशम निपन छमें जीव छे, नव-तत्त्व मांहि कहीजै तीन।
जीव संवर निर्जरा ए तीनूई, ए पिण निरवद गुण है सुचीन।।
क्षयोपशम -निष्पन्न (क्षायोपशमिक) भाव का छह द्रव्यों में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव, संवर और निर्जरा -इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है। ये भी निरवद्य गुण हैं। (क्षायोपशमिक भाव घाति कमों के क्षयोपशम से निष्पन्न होने के कारण क्षयोपशम-निष्पन्न कहलाता है।)
उदय का द्रव्यों ओर तत्त्वों में समावेश
१४. ज्ञानावरणी-उदै छ मांहि पुद्गल, नव-तत्त्व मांहि तीन कहिवाय।
अजीव पाप बंध ए् त्रिहं जाणो, पांच प्रकृति कही श्री जिनराय।।
ज्ञानावरणीय कर्म के उदय का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वो में अजीव, पाप और बन्ध-इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है। भगवान् ने ज्ञानावरणीय कर्म की पांच१ प्रकृतियां बतलाई हैं।
१५. दर्शणावरणी-उदे छ मांहि पुद्गल, नव-तत्त्व मांहि तीन कहिवाय।
अजीव पाप बंध ए त्रिहुं जाणो, प्रकृति नव कही श्री जिनराय।।
दर्शनावरणीय कर्म के उदय का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में अजीव, पाप और बन्ध-इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है। भगवान् ने दर्शनावरणीय कर्म की नौ२ प्रकृतियां बतलाई हैं।
१६. वेदनी -उदे छ-द्रव्य मांहि पुद्गल, नव-तत्त्व मांहि कहीजै च्यार।
अजीव पुन पाप बंध ए च्यारूइ, प्रकृति दोय कही जगतार।।
वेदनीय कर्म के उदय का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में अजीव, पुण्य, पाप और बन्ध -इन चार तत्त्वां में समावेश होता है। भगवान् ने वेदनीय कर्म की दो३ प्रकृतियां बतलाई हैं।
१७. मोहणी-उदय छ-द्रव्य में पुद्गल, नव-तत्त्व मांहि तीन कहिवाय।
अजीव पाप बन्ध ए त्रिहुं जाणो, प्रकृति अठावीस कही दुखदाय।।
मोहनीय कर्म के उदय का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में अजीव, पाप और बन्ध - इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है। भगवान् ने मोहनीय कर्म की अठावीस४ प्रकृतियां बतलाई हैं। वे दु:खद हैं।
१८. आउखो-उदै छ-द्रव्य में पुद्गल, नव-तत्त्व मांहि च्यार कहिवाय।
अजीव पुन पाप बन्ध ए च्यारू, प्रकृति च्यार कही जिनराय।।
आयुष्य कर्म के उदय का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में अजीव, पुण्य, पाप और बन्ध -इन चार तत्त्वां में समावेश होता है। भगवान् ने आयुष्य कर्म की चार' प्रकृतियां बतलाई हैं।
१९. नामकर्म-उदे छ-मांहि पुद्गल, नव-तत्त्व मांहि च्यार पहिछाण।
अजीव पुन पाप बन्ध ए च्यारू, प्रकृति त्राणू जुइ-जुइ जाण।।
नामकर्म के उदय का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्वों में अजीव, पुण्य, पाप और बन्ध -इन चार तत्त्वां में समावेश होता है। भगवान् ने नामकर्म की भिन्न-भिन्न तिरानवे२ प्रकृतियां बतलाई हैं।
२०. गोत कर्म उदै छ-मांहि पुदूगल, नव-तत्त्व मांहि च्यार चित छाण।
अजीव पुण्य पाप बन्ध ए च्यारू, प्रकृति दोय कही जगभाण।।
गोत्रकर्म के उदय का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में अजीव, पुण्य, पाप और बन्ध -इन चार तत्त्वों में समावेश होता है। भगवान् ने गोत्र कर्म की दो प्रकृतियां बतलाई हैं।
२१. अंतराय कर्म उदे छ-मांहि पुद्गल, नव-तत्त्व मांहि तीन कहिवाय।
अजीव पाप बन्ध ए त्रिहुं जाणी, प्रकृति पांच कही जिनराय।
अन्तराय कर्म के उदय का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्वों में अजीव, पाप और बन्ध -इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है। भगवान् ने अन्तराय कर्म की पांच१ प्रकृतियां बतलाई हैं।
२२. ज्ञानावरणी दर्शनावरणी मोहणी अन्तराय, ए च्यारूई कर्म छे एकंत पाप।
वेदनी आउखो नाम गोत्र ए, पुन पाप बिहु जिन वच थाप।।
ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय -ये चारों कर्म एकान्ततः पाप हें-अशुभ विपाक वाले हैं। वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र-ये चार कर्म पुण्य और पाप दोनों हैं-ये शुभ विपाकी और अशुभ विपाकी दोनों हैं। यह जिनवचन की स्थापना है।
सोरठा
२३. आख्यो उदे सरूप, छ-द्रव्य नें नव-तत्त्व में।
उपशम आदि अनूप, श्रोता चित दे सांभलो।।
छह द्रव्या और नव तत्त्वों में समाविष्ट होने वाले कमों के उदय का स्वरूप मैंने बतलाया। अब उपशम आदि का स्वरूप बतलाता हूं। श्रोता ध्यान देकर सुनें।
उपशम का द्रव्यों और तत्त्वों में समावेश
२४. ✽सात कर्म रो तो उपशम न होवे, उपशम मोहकर्म रो होय।
मोहणी रो उपशम छ-द्रव्य में कुण, नव-तत्त्व मांहि कवण अवलोय ?
सात कर्मो का उपशम नहीं होता। केवल मोहनीय कर्म का उपशम होता है। वह मोहनीय कर्म का उपशम छह द्रव्यों में किस द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में किस तत्त्व में समाविष्ट होता है?