Jhini Charcha was written by Acharya Jeetmal. It contains macro things of metaphysics. Jain Terms like Leshya, Bhav, Gunsthan, Yog, Upyog have been discussed on basis of different Agam. He composed it in the form of poetry in an easy Rajasthani language.
Noted Singer Babita Gunecha has presented it in a melodious voice.
Jhini Charcha book contains 22 Dhal (Collection of 22 Poems) .
Dhal--2 Stanza 25 to 36
ढाल 2 पद्य 25 से 36
२५. मोहणी रो उपशम छ-माहि पुद्गल, नव-तत्त्व मांहि तीन अवलोय।
अजीव पाप बन्ध ए त्रिहुं जाणो, अदट्ठावीसूंइ प्रकृति उपशम होय।।
मोहनीय कर्म के उपशम का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्वों में अजीव, पाप और बन्ध -इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है। मोहनीय कर्म की सभी (अट्ठावीस) प्रकृतियों का उपशम होता है।
सोरठा
२६. आख्यो उपशम ताहि, हिव निरणो खायक तणो।
खायक छ-द्रव्य मांहि, बलि नव-तत्त्व में कवण छे?
उपशम का स्वरूप मैंने बतलाया। अब कर्मो के क्षय का निर्णय बतलाता हूं। उसका छह द्रव्यों में किस द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में किस तत्त्व में समावेश होता है?
क्षय का द्रव्यों और तत्त्वों में समावेश
२७. ✽ज्ञानावरणी -खायक छ-माहि पुद्गल, नव मांहि तीन अजीव पाप बंध।
दर्शणावरणी -खायक छ-मांहि पुद्गल, नव में अजीव पाप बंध हे मंद।।
ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में अजीव, पाप और बन्ध-इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है। दर्शनावरणीय कर्म के क्षय का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में अजीव, पाप और बंध-इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है।
२८. वेदनी-खायक छ-मांहि पुद्गल, नव में च्यार अजीव पुन पाप बंध।
मोहणी-खायक छ-मांहि पुद्गल, अजीव पाप बंध नव में त्रि मंद।।
वेदनीय कर्म के क्षय का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में अजीव, पुण्य, पाप और बन्ध -इन चार तत्त्वों में समावेश होता है। मोहनीय कर्म के क्षय का छह द्रव्यों में पुद्गल तथा नव तत्त्वों में अजीव, पाप और बंध - इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है।
२९. आउखो-खायक छ-माहि पुद्गल, नव में अजीव पुन्य बंध कहाय।
चवदमा गुणठाणे थी सिद्ध होवे, त्यारै आयु -खायक तिण सुं शुभजणाय।।
आयुष्य कर्म के क्षय का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में अजीव, पुण्य और बन्ध -इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है। चौदहवें गुणस्थान के अनन्तर आयुष्य कर्म का क्षय होने पर जीव सिद्ध होता है। सिद्ध होने वाले जीव का आयुष्य कर्म शुभ ही होता है, इस दृष्टि से उसे पुण्य कहा गया है।
३०. नाम गोत कर्म खायक छ-माहि पुद्गल, नव में च्यार अजीव पुन पाप बंध।
अंतराय-रखायक छ-मांहि पुद्गल, नव में अजीव पाप बंध है मंद।।
नाम और गोत्र कर्म के क्षय का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों मं अजीव, पुण्य, पाप और बन्ध -इन चार तत्त्वों में समावेश होता है। अन्तराय कर्म के क्षय का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में अजीव, पाप और बंध-इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है।
सोरठा
३१. आख्यो खायक एम, खयोपशम कहं हिवे।
परख करो धर पेम, चिउं कर्म घातिया नों हुवे।।
कर्मो के क्षय का स्वरूप मेने बतलाया। अब क्षयोपशम का स्वरूप बतलाता हूं प्रीति के साथ उसकी परख करो। क्षयोपशम चारों घात्य१ कमं का होता है।
क्षयोपशम का द्रव्यों और तत्त्वों में समावेश
३२. ✽ज्ञानावरणी-खयोपशम छ-मांहि पुद्गल,
नव मांहे तीन अजीव पाप बंध।
दर्शणावरणी-खयोपशम छ-मांहि पुद्गल,
नव में अजीव पाप बंध हे मंद।।
ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयापेशम का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में अजीव, पाप और बन्ध-इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है। दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में अजीव, पाप और बंध -इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है।
३३. मोहणी-खयोपशम छ-मांहि पुद्गल, नव में तीन अजीव पाप ने बंध।
अतंराय-खयोपशम छ-मांहि पुद्गल, नव में अजीव पाप बंध है मंद।।
मोहनीय कर्म के क्षयोपशम का छह द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में अजीव, पाप और बन्ध -इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है। अन्तराय कर्म के क्षयोपशम का छह द्रव्यो में पुद्गल द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में अजीव, पाप और बंध -इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है।
३४. ज्ञानावरणी दर्शनावरणी मोहणी अंतराय,
ए च्यार कर्म नो खयोपशम होय।
वेदनी आउखो नाम ने गोत,
यां च्यारां रो खयोपशम नहिं कोय।।
ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय -इन चारों कर्मो का क्षयोपशम होता है। वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र-इन चारों का क्षयोपशम नहीं होता।
सोरठा
३५. आख्यो उदे अधिकार, उपशम खायक पिण कह्यो।
बले खयोपशम धार, निप्पन तीजी ढाल में।
कमों के उदय, उपशम, क्षय और क्षयोपशम का अधिकार मैंने बतलाया। उदय, उपशम, क्षय और क्षयोपशम के निष्पन्न का वर्णन तीसरी गीतिका में होगा।
३६. ✽दूजी ढाल माहि भिन-भिन दाख्या,
उदै उपशम खायक खयोपशम ताय।
भिक्खू भारीमाल ऋषिराय प्रतापे,
'जय-जश' आणंद हरष सवाय।।
दूसरी गीतिका में कमों के उदय, उपशम, क्षय और क्षयोपशम का विस्तार से निरूपण किया है। भिक्षु, भारीमाल और ऋषिराय के प्रसाद से 'जय-जश गणपति' को अधिक आनन्द और हर्ष का अनुभव हो रहा है।