Jhini Charcha was written by Acharya Jeetmal. It contains macro things of metaphysics. Jain Terms like Leshya, Bhav, Gunsthan, Yog, Upyog have been discussed on basis of different Agam. He composed it in the form of poetry in an easy Rajasthani language.
Noted Singer Babita Gunecha has presented it in a melodious voice.
Jhini Charcha book contains 22 Dhal (Collection of 22 Poems) .
Dhal.. 3 Stanza 1 to 10
ढाल : ३
पद्य 1 से 10
दूहा
१. उदे-निपन, उपशम -निपन, खायक-निपन पिछाण।
बले खयोपशम-निपन तणो, निर्णय तीजी ढाले जाण।।
तीसरी गीतिका में उदय-निष्पन्न, उपशम-निष्पन्न, क्षय-निष्पन्न और क्षयोपशम-निष्पन्न का निर्णय किया जा रहा है।
उदय-निष्पन्न-भाव
२. ✽उदय-निपन कर्म आठ नो, उपशम-निपन एक सार।
खायक-निपन आठां तणो, खयोपशम-निपन च्यार।।
उदय-निष्पन्न भाव आठों कमों का, उपशम-निष्पन्न भाव एक मोहनीय कर्म का, क्षय-निष्पन्न भाव आठों कमो का और क्षयोपशम-निष्पन्न भाव चार घात्य कर्मो का होता है।
३. छ कर्म उदै-निपन सुणो, छ द्रव्य में जीव ताहि।
नव तत्त्व में पिण जीव इक, सावद्य निरवद्य नांहि।।
छह-कमो१ के उदय-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यो में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में भी केवल जीव तत्त्व में समावेश होता है। इनका औदयिक भाव न सावद्य होता है और न निरवद्य।
४. मोहकर्म उदे-निपन ते, छ द्रव्य मांहि जीव।
नव में जीव आसव अशुभ छे, सावद्य कह्यो सदीव।।
मोहकर्म के उदय-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यों में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव और आश्रव-इन दो तत्त्वां में समावेश होता है। इसका औदयिक भाव अशुभ आश्रव होता है, इसलिए इसे सदा सावद्य कहा गया है।
५. नामकर्म उदे-निपन ते, छ द्रव्य मांहि जीव।
नव में जीव आसव कह्यो, शुभ जोग आश्रव कहीव।।
नामकर्म के उदय-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यों में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव और आश्रव-इन दो तत्त्वों में समावेश होता है। यह आश्रव शुभ योग आश्रव. .१ होता है।
उपशम-निष्पन्न भाव
६. मोहकर्म उपशम-निपन ते, छ द्रव्य माहि जीव।
नव में जीव संवर कह्यो, उत्तम गुण हे अतीव।।
मोहकर्म के उपशम-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यों में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव और संवर -इन दो तत्त्वां में समावेश होता है। यह अत्यन्त उत्तम गुण है।
७. उदै-निपन उपशम-निपन, दाख्यो दिल पाक।
खायक-निपन कहं हिवे, निसुणो तज छाक।।
उदय-निष्पन्न और उपशम-निष्पन्न भाव शुद्ध दृष्टि से बतलाए गए हैं। अब क्षय-निष्पन्न भाव कहता हूं, उसे अप्रमत्त होकर सुनें।
क्षय-निष्पन्न भाव
८. ज्ञानावरणी खायक-निपन ते, छमें जीव पिछाण।
नव में जीव ने निर्जरा, केवलज्ञान सुजाण
ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यों में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव और निर्जरा -इन दो तत्त्वों में समावेश होता है। ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से केवलज्ञान उपलब्ध होता है।
€. दर्शनावरणी खायक-निपन ते, छमें जीव पिछाण।
नव में दोय जीव निर्जरा, केवलदर्शण जाण।।
दर्शनावरणीय कर्म के क्षय-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यं में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव और निर्जरा - इन दो तत्त्वों में समावेश होता है। दर्शनावरणीय कर्म के क्षय से केवलदर्शन उपलब्ध होता है।
१०. वेदनी खायक-निपन ते, छमें जीव पिछाण।
नव में दोय जीव मोक्ष छे, ते खय सहु खय जाण।।
वेदनीय कर्म के क्षय-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यो में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव और मोक्ष -इन दो तत्त्वों में समावेश होता है। वेदनीय कर्म का क्षय होता है तब सभी कमों का क्षय हो जाता है।