Jhini Charcha was written by Acharya Jeetmal. It contains macro things of metaphysics. Jain Terms like Leshya, Bhav, Gunsthan, Yog, Upyog have been discussed on basis of different Agam. He composed it in the form of poetry in an easy Rajasthani language.
Noted Singer Babita Gunecha has presented it in a melodious voice.
Jhini Charcha book contains 22 Dhal (Collection of 22 Poems) .
Dhal 5 Stanza 1 to 15
ढाल : ५
दूहा
१. हिव गुणठाणां ऊपरे, कहूं जू-जुआ भाव।
ढाल पंचमी ने विषे, निर्मल नीका न्याव।।
अब में गुणस्थानों में होने वाले भिन्न-भिन्न भावों का पांचवीं गीतिका में सहेतुक निरूपण कर रहा हूं।
गुणस्थानों में भाव
✽गुणठाणां ऊपर चरचा पांच भावा री।। (ध्रुपद)
गुणस्थानों पर पांच भावों की चर्चा सुनो।
२. पहिला गुणठाणां में भाव किता छे? तीन भाव कहिवायो रे।
उदे खयोपशम परिणामिक छै, इमहिज बीजा तीजा मांझ्यो रे।।
प्रथम गुणस्थान में कितने भाव होते हैं? तीन भाव होते हें-औदयिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक। दूसरे और तीसरे गुणस्थान में भी ये ही तीन भाव होते हैं।
३. समचै चौथा गुणठाणां में भाव पांच छे, इमहिज ग्यारम तांई रे।
हिवै इक-इक जीव में जघन्य उत्कृष्टा, भाव किता तिण मांही रे।।
चौथे गुणस्थान में समुच्चय१ रूप में पांचों भाव होते हें। पांचवें से म्यारहवें गुणस्थान तक यही नियम लागू होता है। चतुर्थ गुणस्थानवर्ती प्रत्येक जीव में जघन्यतः और उत्कृष्टतः कितने भाव होते हैं? यह अब बताया जा रहा है।
४. चौथे गुणठाणे एक जीव में, जघन्य तीन चित धारो रे।
उदै खयोपशम परिणामिक छे, उत्कृष्ट पावे च्यारो रे।।
चतुर्थ गुणस्थानवर्ती एक जीव में जघन्यतः तीन भाव होते हैं-आओदयिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक तथा उत्कृष्टत: चार भाव होते हैं।
५. उपशम-सम्यक्त्व लहे जो किण में, तो उपशम चोथे कहिये रे।
खायक-सम्यक्त लहे जो किण में, तो खायक चोथे लहिये रे।
यदि उसमें औपशमिक सम्यक्त्व हो तो औपशमिक भाव और जुड़ जाता है। यदि उसमें क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त होता है तो क्षायिक भाव जुड़ जाता है।
६. इमहिज पांचमें छठे सातमें, जघन्य-उत्कृष्टा जाणी रे।
आठमा थी दोय श्रेण चढ़ै छै, उपशम खपक पिछाणी रे।
इसी प्रकार पांचवें, छठे और सातवें गुणस्थान में जघन्य और उत्कृष्ट भाव जान लेने चाहिए। आठवें गुणस्थान से दो श्रेणियों -उपशम श्रेणी और क्षपक श्रेणी का आरोहण शुरू होता है।
उपशम-श्रेणी क्षपक -श्रेणी
७. उपशम-खायक-सम्यक्त वालो, श्रेण चढ़े तिण वारी रे।
चारित्र-मोह दबाव खपावे, दर्शणमोह उदो पहिली वारी रे।।
ओपशमिक तथा क्षायिक सम्यक्त्व वाला व्यक्ति जब श्रेणी का आरोहण करता है, उस समय वह चारित्र मोहनीय कर्म को क्रमश: उपशान्त तथा क्षीण करता है। दर्शन मोहनीय कर्म का उपशम या क्षय वह पहले ही कर चुका होता है।
८. उपशम-सम्यक्त वालो आठमें, जो उपशम श्रेणे आवे रे।
अजघन्य-उत्कृष्टा च्यार भाव छे, खायक-भाव न पावे र।।
यदि औपशमिक सम्यक्त्व वाला व्यक्ति आठवें गुणस्थान से उपशम श्रेणी का आरोहण करता है तो उसमें अन्यूनाधिक (न कम और न अधिक) रूप में चार ही भाव होते हैं, क्षायिक भाव नहीं होता।
€. उपशम-सम्यक्त वालो आठमें, खपक-श्रेण नहिं भावे रे।
खखपक-श्रेण चारित्र -मोह खपावे, पिण दर्शणमोह दव्यो किहां जावे रे?
औपशमिक सम्यक्त्व वाला व्यक्ति क्षपक श्रेणी नहीं ले सकता। क्योंकि क्षपक श्रेणी लेने वाला व्यक्ति चारित्र मोह को क्षीण करता है, पर पहले दर्शन मोहनीय कर्म का उपशमन किया हुआ है, उसका क्षय कैसे किया जायेगा?
१०. खायक-सम्यक्त वालो आठमें, उपशम-श्रेण जो भावे रे।
अजघन्य-उत्कृष्टा पांच भाव छे, बहुश्रुत न्याय मिलावे रे।।
यदि क्षायिक सम्यक्त्व वाला व्यक्ति आठवें गुणस्थान से उपशम श्रेणी का आरोहण करता है तो उसमें अन्यूनाधिक रूप में पांचों भाव होते हैं। बहुश्रुतं के अनुसार इसकी संगति इस प्रकार बेठती है—
११. उदे-भाव गति, खायक सम्यक्त, खयोपशम इन्द्र्यां ताह्यो रे।
उपशम -श्रेणे चारित्र-मोह- प्रकृति उपशम्यां, उपशम -भाव जणायो रे।
मनुष्य गति औदयिक भाव है, क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिक भाव है, पांच इन्द्रियां क्षायोपशमिक भाव हैं और उपशम श्रेणी में चारित्र मोहनीय कर्म की प्रकृतियों का उपशमन किया जाता है, वह औपशमिक भाव है।
१२. कोई कहे खायक -सम्यकत वालो, सर्व चारित्र-मोह न उपशमायो रे।
त्यां लग उपशम-भाव न कहिये, ज्ञानी जाणे दोयां रो न्यायो रे।
कुछ लोग कहते हैं- क्षायिक सक्यक्त्व वाला व्यक्ति जब तक सम्पूर्ण चारित्र मोह कर्म का उपशमन नहीं कर देता, तब तक औपशमिक भाव की प्राप्ति नहीं कहनी चाहिए। इन दोनों में कौन-सा मत न्याय संगत है? यह केवलज्ञानी ही जानते हैं।१
१३. खायक-सम्यक्त वालो आठमें, खपक-श्रेणी जो भावे रे।
अजघन्य-उत्कृष्टा च्यार भाव छे, उपशम-भाव न पावे रे।।
क्षायिक सम्यक्त्व वाला व्यक्ति यदि आठवें गुणस्थान से क्षपक श्रेणी का आरोहण करता है तो उसमें अन्यूनाधिक रूप में चार भाव प्राप्त होते हैं, औपशमिक भाव प्राप्त नहीं होता।
१४. उपशम-सम्यक्त वालो नवमें, उपशम-श्रेण जो भावे रे।
अजघन्य-उत्कृष्टा च्यार भाव छे, खायक भाव न पावे रे।
औपशमिक सम्यक्त्व वाला व्यक्ति यदि नौवें गुणस्थान से उपशम श्रेणी में होता है तो उसमें अन्यूनाधिक रूप में चार भाव प्राप्त होते हैं, क्षायिक भाव नहीं होता।
१५. खायक-सम्यक्त वालो नवमें, उपशम-श्रेण जो भावे रे।
अजघन्य-उत्कृष्टा पांच भाव छे, (देश) चारित्र-मोह दबावे रे।।
क्षायिक सम्यक्त्व वाला व्यक्ति नौंवें गुणस्थान से उपशम श्रेणी में होता है तो उसमें अन्यूनाधिक रूप में पांच भाव प्राप्त होते हैं। क्योंकि वह देश चारित्र मोह कर्म का उपशम करता है।