Jhini Charcha was written by Acharya Jeetmal. It contains macro things of metaphysics. Jain Terms like Leshya, Bhav, Gunsthan, Yog, Upyog have been discussed on basis of different Agam. He composed it in the form of poetry in an easy Rajasthani language.
Noted Singer Babita Gunecha has presented it in a melodious voice.
Jhini Charcha book contains 22 Dhal (Collection of 22 Poems) .
Dhal 5 Stanza 16 to 27
ढाल 5 पद्य 16 से 27
१६. खायक-सम्यक्त्व वालो नवमें, खपक-श्रेण जो भावे रे।
अजघन्य-उत्कृष्टा च्यार भाव छे, उपशम भाव न पावे रे।।
क्षायिक सम्यक्त्व वाला व्यक्ति यदि नौवें गुणस्थान में क्षपक श्रेणी में होता है तो उसमें अन्यूनाधिक रूप में चार भाव प्राप्त होते हैं, औपशमिक भाव प्राप्त नहीं होता।
१७. उपशम-सम्यक्त्व वालो दशमें, उपशम-श्रेण जो भावे रे।
अजघन्य-उत्कृष्टा च्यार भाव छै, खायक-भाव न पावै रे।।
औपशमिक सम्यक्त्व वाला व्यक्ति यदि दसवें गुणस्थान में उपशम श्रेणी में होता है तो उसमें अन्यूनाधिक रूप में चार भाव प्राप्त होते हैं, क्षायिक भाव प्राप्त नहीं होता।
१८. खायक-सम्यक्त्व वालो दशमें, उपशम-श्रेण जो भावै रे।
अजघन्य-उत्कृष्टा पांच भाव छे, देश चारित्र-मोह दबावे रे।।
क्षायिक सम्यक्त्व वाला व्यक्ति यदि दसवें गुणस्थान में उपशम श्रेणी में होता है तो उसमें अन्यूनाधिक रूप में पांच भाव प्राप्त होते हैं। क्योंकि वह देश चारित्र मोह कर्म का उपशम करता है।
१९. उदे-भाव गति, खायक सम्यक्त, खयोपशम इन्क्र्यां ताह्यो रे।
उपशम-श्रेण नवमें दशमें तिण सूं, उपशम क्रोध मान मायो रे।।
वहां मनुष्य गति औदयिक भाव, सम्यक्त्व क्षायिक भाव, इन्द्रियां क्षायोपशमिक भाव तथा नौवें और दसवें गुणस्थान में होने वाली उपशम श्रेणी में क्रोध, मान और माया को उपशान्त किया जाता है, इसलिए वह औपशमिक भाव है।
२०. आठ बोल उपशम रा अनुयोगदुवारे,
उपशम क्रोध मान माया लोभो रे।
उपशम राग-द्रेष उपशम सम्यक्त- चारित्र,
ए आठूं उपशम भाव अखोभो रे।।
अनुयोग द्वार सूत्र में ओऔपशमिक भाव के आठ बोल बतलाए गए हैं— ओपशमिक क्रोध, मान, माया और लोभ, ओपशमिक राग और द्वेष, औपशमिक सम्यक्त्व और चारित्र। ये आठों औपशमिक भाव हैं।
आठों औपशमिक भाव हैं।
२१. यां आठूं बोलां ने उपशम-भाव कहीजे,
उदै क्षायक खयोपशम न कहिये रे।
इण न्याय उपशम-भाव कह्यो छै,
बलि केवली कहे ते सदहिये रे।।
इन आठ बोलों को औपशमिक भाव कहा गया है। इन्हें औदयिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक भाव नहीं कहा गया। इस न्याय से ये औपशमिक भाव हैं। फिर जो केवली कहे, उस पर श्रद्धा की जाए।
२२. खायक-सम्यक्त वालो दशमें, खपक-श्रेणी जो भावै रे।
अजघन्य-उत्कृष्टा च्यार भाव छै, उपशम-भाव न पावे रे।।
क्षायिक सम्यक्त्व वाला व्यक्ति दसवें गुणस्थान में क्षपक श्रेणी में होता है तब उसमें अन्यूनाधिक रूप में चार भाव प्राप्त होते हैं, औपशमिक भाव प्राप्त नहीं होता।
२३. उपशम-सम्यक्त वालो इग्यारमें, उपशम-श्रेण जो भावै रे।
अजघन्य-उत्कृष्टा च्यार भाव छे, खायक-भाव न पावे रे।।
औपशमिक सम्यक्त्व वाला व्यक्ति ग्यारहवें गुणस्थान में उपशम श्रेणी में होता है, तब उसमें अन्यूनाधिक रूप में चार भाव प्राप्त होते हैं, क्षायिक भाव प्राप्त नहीं होता।
२४. खायक -सम्यक्त वालो इग्यारमें, उपशम -श्रेण जो भावे रे।
अजघन्य-उत्कृष्टा पांच भाव छे, सर्व चारित्र-मोह दबावे र।।
क्षायिक सम्यक्त्व वाला व्यक्ति ग्यारहवें गुणस्थान में उपशम श्रेणी में होता है तब उसमें अन्यूनाधिक रूप में पांच भाव होते हैं। क्योंकि वह सर्व चारित्र मोहकर्म को उपशान्त करता है।
२५. बारमें गुणठाणे च्यार भाव छे, उपशम-भाव न पावे रे।
प्रथम समय मोहकर्म खपावै, दशमां थी बारमें आवे रे।।
बारहवें गुणस्थान में चार भाव होते हैं, वहां औपशमिक भाव नहीं होता। बारहवें गुणस्थान में जाने वाला व्यक्ति उसके प्रथम समय में मोहनीय कर्म को क्षीण करता है। वह दसवें गुणस्थान से सीधा बारहवें गुणस्थान में आता है।
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२६. तेरमें चवदमें तीन भाव छे, उदे खायक परिणामीको रे।
सिद्धां में दोय भाव पावे छे, खायक परिणामी नीको रे।।
तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में तीन भाव होते हैं-औदयिक, क्षायिक और पारिणामिक। सिद्धां में दो भाव होते हैं- क्षायिक और पारिणामिक।
२७. चवदेइ गुणठाणां निरवद्य, कर्म-विशुद्ध आश्री जीवठाणां रे।
सूत्र समवायंग मांहि कह्यो छे, न्याय विचारे स्याणां रे।
कर्म विशुद्धि की दृष्टि से जीवां के चौदह स्थान होते हैं। ये सभी निरवद्य हैं और गुणस्थान कहलाते हैं। यह समवायांग सूत्र में बतलाया गया है। विचारशील इस युक्ति को समझ लेते हैं।