Jhini Charcha was written by Acharya Jeetmal. It contains macro things of metaphysics. Jain Terms like Leshya, Bhav, Gunsthan, Yog, Upyog have been discussed on basis of different Agam. He composed it in the form of poetry in an easy Rajasthani language.
Noted Singer Babita Gunecha has presented it in a melodious voice.
Jhini Charcha book contains 22 Dhal (Collection of 22 Poems) .
Dhal 8 stanza 1 to 11
ढाल : 8 पद्य 1 to 11
दूहा
१. ढाल आठमीं ने विषे, धर्म आदि बहु बोल।
किस्यो भाव कुण आतमा? धर चित अंतर खोल।।
आठवीं गीतिका में धर्म आदि अनेक तत्त्वों से सम्बन्धित भाव और आत्मा की चचां की गई है। अन्तर्चक्षु को खोल उसे आपने चित्त में धारण करो।
धर्म-अधर्म : भाव और आत्मा
✽सुगण जन! ज्ञान विचारो
ज्ञान विचारो, झीणी चरचा थे धारो
आलस अंग निवारो हो, (ध्रुपद)
सुगणजनो ! ज्ञान की विचारणा करो, सूक्ष्म चर्चा को धारण करो और आलस्य का निवारण करो।
२. धर्म किसो भाव किसी आतमा? च्यार भाव कहिबाय हो।
उदै-भाव बिना च्यार भाव छे, संवर निर्जरा सुभाय हो।।
धर्म कोन-सा भाव और कौन-सी आत्मा है? वह चार भावमय है। उसका स्वरूप संवर और निर्जरा है, इसलिए वह औदयिक भाव को छोड़ शेष चार भावमय१ है।
३. धर्म अमोलक तीन आतमा, जोग भला सुखदाय हो।
चारित्र सावज-जोग त्याग्या ते, दर्शण सम्यक्त पाय हो।।
धर्म अमूल्य है। बह तीन आत्मा है - शुभयोग रूप योग आत्मा, सावद्ययोग के त्याग रूप चारित्र आत्मा और सम्यक्त्व रूप दर्शन आत्मा।
४. अधर्म भाव उदे परिणामिक, आत्मा दोय जणाय हो।
दर्शण आत्मा ऊंधी सरधा, जोग अशुभ दुखदाय हो।।
अधर्म द्विभावात्मक होता है-औदयिक और पारिणामिक। वह दो आत्मा हे - मिथ्यादृष्टिमय होने के कारण दर्शन आत्मा तथा अशुभयोग रूप होने के कारण योग आत्मा।
५. कषाय ने उनमारग कहीजे, तिण रा त्याग किया नहिं जाय हो।
तिण कारण न गिणी अधर्म माहि, बले ग्यानी वदे ते सत्य वाय हो।।
कषाय को उन्मार्ग कहा जाता है। उसका त्याग (प्रत्याख्यान) नहीं किया जा सकता, इसलिए उसे अधर्म में नहीं गिना गया - अधर्म का कषाय आत्मा नहीं कहा गया। यह हमारी विवक्षा है। इसके उपरान्त जो ज्ञानी कहे, वह सत्य है।
६. असुभ-जोगां ने उनमारग कह्यो छे, ते पेटो अधर्म नो गिणाय हो।
असुभ-जोगां नो प्रबलपणां, तिण ने पिण उनमारग कह्यो ताय हो।।
अशुभ योगों को उन्मार्ग कहा गया है। वह अधर्म की सीमा में है। अशुभ योगों की प्रबलता को भी उन्मार्ग कहा जाता है।
७. सुभ-जोगां ने मारग कह्यो छे, निर्जरा धर्म रै मांय हो।
असुभ-जोगां ने उनमारग कह्यो छै, ते अधर्म उनमारग जणाय हो।।
शुभ योगों को मार्ग कहा गया है, वह निर्जरा धर्म की सौमा में है। अशुभ योगों को उन्मार्ग कहा जाता है, इससे जाना जाता है कि अधर्म उन्मार्ग है।
८. धर्म अधर्म दोनू सामान्यवाची, असुभजोग अव्रत अधर्म मांय हो।
सुभ-जोग निर्जरा ने व्रत-संवर, ए धर्म में दोनूं गिणाय हो।।
धर्म और अधर्म ये दोनों सामान्यवाची (अभेदवाचक) पद हैं। अशुभ योग और अब्रत ये दोनों अधर्म हैं। शुभयोग से होने वाली निर्जरा और व्रत संवर, ये दोनों धर्म हैं।
९. धर्म ते व्रत-संवर अधर्म अव्रत, असुभ जोग उनमारग असार हो।
सुभ जोग निर्जरा ने मारग कहिये, ए विशेषवाची पद च्यार हो।।
जो धर्म है, वह व्रत संवर है तथा शुभ-योग-जनित निर्जरा होने के कारण वह मार्ग है। इसी प्रकार जो अधर्म है, वह अव्रत आश्रव है तथा अशुभ योग होने के कारण उन्मार्ग है। ये चार पद विशेषवाची हैं-व्रत और मार्ग, ये दो धर्म के विशेषवाची पद हैं तथा अव्रत और उन्मार्ग, ये दो अधर्म के विशेषवाची पद हैं।
१०. अप्रमाद अकषाय अजोग संवर ने, जिन धर्म में न गिण्या ताहि हो।
तिम प्रमाद आस्रव कघाय आसव, ए अधर्म में गिण्या नाहि हो।।
अप्रमाद, अकषाय और अयोग संवर को धर्म में नहीं गिना गया है। इसी प्रकार प्रमाद आश्रव और कषाय आश्रव को अधर्म में नहीं गिना गया है।
११. अप्रमाद अकषाय अजोग संवर ते, ए अनेरी आतमा जणाय हो।
तिण कारण चारित्र धर्म न दीसे, ते पिण ग्यानी वदे ते सत्य वाय हो।।
अप्रमाद, अकषाय और अयोग संवर ये अन्य आत्माएं प्रतीत होती हैं। इस दृष्टि से ये चारित्र धर्म के रूप में विवक्षित नहीं हैं। यह हमारी विवक्षा है, फिर जो ज्ञानी कहे वह सत्य है।