Jhini Charcha was written by Acharya Jeetmal. It contains macro things of metaphysics. Jain Terms like Leshya, Bhav, Gunsthan, Yog, Upyog have been discussed on basis of different Agam. He composed it in the form of poetry in an easy Rajasthani language.
Noted Singer Babita Gunecha has presented it in a melodious voice.
Jhini Charcha book contains 22 Dhal (Collection of 22 Poems) .
Dhal 8 Stanza 23 to 33
ढाल 8 पद्य 23 से 33
२३. केवलदर्शन किसो भाव किसी आतमा? दोय भाव दीपाय हो।
खायक भाव ने परिणामीक छे, आतम उपयोग थाय हो।।
केवलदर्शन कौन-सा भाव और कौन-सी आत्मा है? वह द्विभावात्मक है— क्षायिक और पारिणामिक। वह उपयोग आत्मा है।
२४. चक्षु अचक्षु अवधि दर्शण किसो भाव छे? दोय भाव देखाय हो।
खयोपशम भाव ने परिणामीक छे, आतम उपयोग ताय हो।।
चक्षु, अचक्षु और अवधिदर्शन कौन-से भाव हैं और कौन-सी आत्मा है? वे द्विभावात्मक हैं - क्षायोपशमिक और पारिणामिक। वे उपयोग आत्मा हैं।
दृष्टि, भाव और आत्मा
२५. समदृष्टि किसो भाव किसी आतमा? उदे बरजी चिहुं पाय हो।
उपशम खायक खयोपशम सम्यक्त, आत्मा दर्शण थाय हो।।
सम्यक्-दृष्टि कौन-सा भाव और कौन-सी आत्मा है? वह औदयिक भाव छोड़कर शेष चतुर्भावात्मक है। औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक सम्यक्त्वमय होने के कारण वह दर्शन आत्मा है।
२६. समचे मिथ्यादृष्टि किसो भाव किसी आतमा? तीन भाव देखाय हो।
उदे खयोपशम परिणामीक छै, आत्मा दर्शण थाय हो।।
समुच्चय रूप में मिथ्यादृष्टि१ कौन-सा भाव और कौन-सी आत्मा है? वह त्रिभावात्मक हे- औदयिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक। वह दर्शन आत्मा है।
२७. उदै भाव-मिथ्यादृष्टि कुण भाव, आतमा? दोय भाव देखाय हो।
उदे भाव ने परिणामीक छे, आत्मा दर्शण थाय हो।।
औदयिक भाव वाली मिथ्यादृष्टि कौन-सा भाव और कौन-सी आत्मा है? बह द्विभावात्मक है-औदयिक और पारिणामिक। वह दर्शन आत्मा है।
२८. खयोपशम मिथ्यादृष्टि कुण भाव, आतमा? दोय भाव दीपाय हो।
खयोपशम भाव ने परिणामीक छे, आत्मा दर्शण थाय हो।।
क्षायोपशमिक मिथ्यादृष्टि कौन-सा भाव और कौन-सी आत्मा है? वह द्विभावात्मक है - क्षायोपशमिक और पारिणामिक। वह दर्शन आत्मा है।
२९. समामिथ्यादूष्टि कुण भाव ने आतमा? दोय भाव देखाय हो।
खयोपशम भाव ने परिणामीक छै, आत्मा दर्शण थाय हो।।
सम्यक्-मिथ्यादृष्टि कौन-सा भाव और कोन-सी आत्मा है? वह द्विभावात्मक है - क्षायोपशमिक और पारिणामिक। वह दर्शन आत्मा है।
सिद्ध एवं जीव : भाव और आत्मा
३०. सिद्ध किसो भाव किसी आतमा? दोय भाव दीपाय हो।
खायक भाव ने परिणामीक छे, आतम अनेरी सुहाय हो।।
सिद्ध कोन-सा भाव और कोन-सी आत्मा हे? वह द्रिभावात्मक हे - क्षायिक और पारिणामिक। वह अन्य आत्मा-सिद्ध आत्मा है।
३१. द्रव्य जीव किसो भाव किसी आतमा? एक भाव कहिवाय हो।
परिणामीक भाव कहीजे तेहने, आत्मा द्रव्य थाय हो।।
द्रव्य जीव कौन-सा भाव और कौन-सी आत्मा हे? वह एक-भावात्मक हैं— पारिणामिक। वह आत्मा द्रव्य ही है।
३२. भाव जीव किसो भाव किसी आतमा? पांच भाव कहिवाय हो।
आत्मा द्रव्य बिना सातूंइ, बुद्धिवंत जाणे न्याय हो।
भाव जीव कौन-सा भाव और कौन-सी आत्मा है? वह पंच-भावात्मक है। वह द्रव्य आत्मा को छोड़कर शेष सात आत्मा है। बुद्धिमान इसका न्याय जानें।
३३. आठमी ढाल मांही बहु दाख्या, निर्मल चरचा न्याय हो।
भिक्खू भारीमाल ऋषिराय प्रसादे, 'जय-जश' हरष सवाय हो।।
आठवीं गीतिका में बहुत निर्मल तत्त्व चर्चा के न्याय बतलाए गए। भिक्षु भारीमाल और ऋषिराय के प्रसाद से 'जय-जश गणपति' को हर्ष का अनुभव हो रहा है।