Terapanth Dharm Sangh is like a beautiful garden where all the members are nurtured in the most beautiful way through the the skillful leadership, effective training, holy inspiration, and continuous spiritual guidance of their chief/leader Acharya Mahashramanji.
On occasion of 51st Deeksha Day of Acharya Mahashraman Surya Prakash Samsukha has highlighted his personlity.
बागवानी के महारथी
आचार्य महाश्रमण
सूर्यप्रकाश सामसुखा
किसी भी उपवन की सुंदरता एवं समरसता उसके बागवान की
कुशलता पर निर्भर करती है। कुशल बागवान जहाँ एक ओर अपनी
बगिया के पौधों की कुशलता से सार-सम्हाल करता है वहीं दूसरी ओर
बगिया के विस्तार के लिए नये पौधों का बीजारोपण करता है। वह यह
जानता है कि कौनसे पौधे को कब और कितना सिंचन देना है। कौन-से
पौधे को किसके साथ लगाना है। कौनसे पौधे की कितनी, कब और
कैसे कटाई-छंटाई करनी है।
गण भी एक बगिया है और गण के अधिपति एक कुशल
गणमाली हैं। वे सदैव प्रयासरत रहते हैं कि गण का प्रत्येक सदस्य
चित्तसमाधि में रहे एवं उनकी साधना निर्बाध गति से चलती रहे।
तेरापंथ धर्मसंघ साधना के सौंदर्य से भरपूर एक हरा-भरा महकता उपवन है। इस धर्मसंघ के सदस्य जहाँ एक ओर अपने सौंदर्य एवं सुगंध से लोगों को आकर्षित करते हैं वहीं दूसरी ओर अपने औषधीय गुणों से जन-जन में व्याप्त मानसिक और भावात्मक रोगों का हरण करते हैं।
गण के सदस्यों में ये गुण गणमाली के कुशल नेतृत्व, प्रभावी प्रशिक्षण, पावन प्रेरणा एवं सतत आध्यात्मिक सार-सम्हाल से प्राप्त होते हैं। तेरापंथ रूपी इस बगिया का प्रत्येक सदस्य अपने आप को गौरवान्वित मानता है कि उन्हें कुशल बागवान के रूप में आचार्य श्री महाश्रमण का सक्षम नेतृत्व प्राप्त हुआ है। ऐसे गण उपवन के कुशल बागवान की अगणित विशेषताओं को शब्दों में बांधना तो असम्भव-सा है फिर भी क्षमतानुसार एक विनम्र प्रयास तो किया ही जा सकता है-
* जिस प्रकार एक बागवान सूर्य की तरह बिना भेदभाव किए सभी वृक्षों की समान रूप से देखभाल करता है, उसी प्रकार गणमाली भी गण के प्रत्येक सदस्यों को समान रूप से वात्सल्य प्रदान करते हैं।
आचार्य प्रवर इस बात का सदैव
ध्यान रखते हैं कि किसी भी
सदस्य के मन में असमाधि न रहे।
वे अपने शिष्यों के गुणों को सबके
सम्मुख प्रस्तुत करते हैं और भूलों
का शोधन एकांत में। इससे गण
के सदस्यों का आत्मविश्वास व
स्वाभिमान उन्नत बना रहता है।
* जिस प्रकार एक कुशल माली समय-समय पर पौधों का सिंचन
करता है, ठीक उसी प्रकार गुरुदेव अपने प्रवचनों के माध्यम से अमृत-
वाणी का ऐसा सिंचन करते है कि गण-सदस्यों की संयम, समता और
साधना की फसल लहलहा उठती है।
जिस प्रकार एक कुशल माली मुरझाते हुए पौधे का उचित
संरक्षण कर उसे फिर से हरा-भरा कर देता है, ठीक उसी प्रकार
आचार्य प्रवर साधना में शिथिल हो रहे सदस्य को वात्सल्यमय
सानिध्य, अनुशासन एवं शिक्षा प्रदान कर उसे फिर से साधना में स्थिर
कर देते हैं।
* जिस प्रकार एक कुशल माली उपवन का सौंदर्य बढ़ाने के लिए
यह ध्यान रखता है कि कौनसे पौधे को कहाँ और किसके साथ लगाया
जाए, उसी प्रकार हमारे गणमाली भी इस बात का सदैव ध्यान रखते हैं
कि गण के कौन-से सदस्य को कहाँ और किसके साथ नियोजित
किया जाए ताकि आपसी सौहार्द, सद्भाव और साध्वाचार का सौंदर्य
निखरता रहे।
जिस प्रकार एक बागवान बाग के विस्तार के लिए नये-नये पौधे
लगाता है, ठीक उसी प्रकार आचार्य प्रवर संघ के आध्यात्मिक विकास
एवं विस्तार के लिए योग्य व्यक्तियों में संयम- संस्कारों का
बीजारोपण करते हैं और उन संस्कारों के पल्लवन और पोषण के लिए
उन्हे समुचित सानिध्य, प्रेरणा, वात्सल्य, शिक्षण-प्रशिक्षण एवं दीक्षा
प्रदान करते हैं।
एक बागवान को पौधों के संरक्षण एवं विकास के लिए
अनुपयोगी पत्तियों एवं टहनियों की काँट-छाँट करनी पड़ती है, उसी
प्रकार हमारे गणमाली गण के सदस्यों के विकास के लिए उनके दोषों
की कुशलता से अनुशासनात्मक चिकित्सा कर उनका वात्सल्यमय
पथदर्शन करते हैं एवं साधना के मार्ग पर अग्रसर करते हैं।
* एक कुशल माली पौधे की आवश्यकता अनुरूप सिंचन देता है,
* वह जानता है कि किस पौधे को
कब और कितना सिंचन देना है,
उसी प्रकार हमारे गणमाली गण
के सदस्यों की आवश्यकता
अनुरूप शिक्षा प्रदान करते हैं, वे
जानते हैं कि किस सदस्य को
कब, कितनी, क्या और कैसे
शिक्षा प्रदान करनी है।
*एक बागवान का कार्य होता है- उपवन की सार सम्हाल करना, उसका सौंदर्य बढ़ाना,पुष्पों की महक बढ़ाना और अच्छे फलों की प्राप्ति करना किंतु गण रूपी उपवन के बागवान का कार्य यहीं तक सीमित नहीं होता, वे गण-उपवन की सार-सम्हाल एवं विकास के साथ-साथ स्वयं का आध्यात्मिक विकास करते हैं।*
उनका आदर्श व्यक्तित्व लाखों लोगों
की श्रद्धा का केन्द्र बिंदु होता है। आचार्य महाश्रमण भी इसी राह पर
आगे बढ़ने वाले एक महान साधक हैं। वे कोई सामान्य बागवान नही
बल्कि बागवानी के महारथी है क्योंकि
▪️आचार्य महाश्रमण की साधना की सौरभ उत्कृष्ट है।
▪️ आचार्य महाश्रमण का विनय भाव विलक्षण है।
▪️ आचार्य महाश्रमण के
आचार-विचार की एकता असाधारण है।
▪️आचार्य महाश्रमण का खाद्य संयम एवं आंतरिक तप अनुत्तर है।
▪️आचार्य महाश्रमण की श्रद्धा एवं तर्क शक्ति का संगम बेजोड़ है।
▪️आचार्य महाश्रमण की पापभीरूता अनुकरणीय है।
▪️आचार्य महाश्रमण की अप्रमत्त चेतना अकल्पनीय है।
▪️आचार्य महाश्रमण की श्रमशीलता श्रेष्ठ है।
▪️आचार्य महाश्रमण की आज्ञा निष्ठा आदरणीय है।
▪️आचार्य महाश्रमण की ज्ञान सम्पदा अनिर्वचनीय है ।
▪️आचार्य महाश्रमण की संघ संचालन क्षमता अद्भुत है ।
▪️आचार्य महाश्रमण का आभामंडल अनुपम है।
▪️आचार्य महाश्रमण की प्राण ऊर्जा परम विशिष्ट है।
▪️आचार्य महाश्रमण की अनुशासन प्रियता अतुलनीय है।
एक ही व्यक्ति में इतने गुणों का समावेश होना वास्तव में दुर्लभ
है। हम सौभाग्यशाली है कि हमें परम आचार कुशल, धर्मोपदेशक,
धर्मधुरंधर, बहुश्रुत, मेधावी, सत्यनिष्ठ, श्रद्धा-धृति-शक्ति-शांति
सम्पन्न, अष्ट गणी-सम्पदा से सुशोभित, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव
के ज्ञाता, चतुर्विध धर्मसंघ के शास्ता, तीर्थंकर के प्रतिनिधि के रूप में
ऐसे महातपस्वी, परम यशस्वी एवं अतिशय सम्पन्न गणमाली मिले
हैं। ऐसे व्यक्तित्व ही तो होते है-बागवानी के महारथी ।