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Location: | Udaipur |
Headline: | Inspire Followers To Be Moral, It Is Duty Of Religious Head◄ Acharya Mahashraman |
News: | All religion sect conference was held. Theme of conference was „Contribution of Religious Head to Spread Morality". |
News in Hindi:
धर्मगुरुओं का यह काम है कि वह अपने अनुयायियों को नैतिकता की शिक्षा दें- आचार्य महाश्रमण
उदयपुर 30 मई 2011 (जैन तेरापंथ न्यूज)
समाज में पापाचार, अत्याचार, भ्रष्टाचार, हिंसा जैसी बुराइयों की जड़ अनैतिकता का लगातार पतन है। आज हर क्षेत्र में नैतिकता का क्षरण हो रहा है। बुराइयों निरंतर पैर पसारती जा रही हैं। ऐसे हालात में तमाम संतों, धर्मगुरुओं का दायित्व है कि वो समाज को इस बुराई से मुक्त करे। इंसान कई तरह के होते हैं, लेकिन सभी के खून का रंग लाल ही होता है। उसी तरह दुनिया में विभिन्न धर्म और संप्रदाय हैं, उनके अनुयायी हैं लेकिन सभी का आदर्श एक ही है नैतिकता।
सर्वधर्म सम्मेलन
ये विचार हैं विभिन्न धर्म, संप्रदाय के धर्मगुरुओं के जो रविवार को सर्वधर्म सम्मेलन के माध्यम से यहां एक मंच पर आए। फतह सीनियर सैकंडरी स्कूल में आयोजित इस सम्मेलन का विषय ‘नैतिकता की प्रतिष्ठा में धर्मगुरुओं का योगदान’ था। धर्मगुरुओं ने नैतिकता के ह्वास पर चिंता जताते हुए अपने अपने विचार रखे।
सारे सगुण नैतिकता के प्रतीक: तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने कहा कि प्रेम, अहिंसा,भाईचारा, ईमानदारी और सच्चाई नैतिकता के प्रतीक हैं। गृहस्थ समाज में नैतिकता और अहिंसा होनी चाहिए। धर्मगुरुओं का यह काम है कि वह अपने अनुयायियों को नैतिकता की शिक्षा दें। अहिंसा, अनुकंपा की शिक्षा दें तो निश्चित रूप से इसका भारी असर होगा।
मच्छर छान लेते हैं, ऊंट निगल जाते हैं : एमानुल ईसाई समाज से जुड़े फादर एमानुल ने कहा कि दुनिया में नैतिकता का लगातार पतन हुआ है। ऐसे में धर्मगुरुओं का दायित्व और जिम्मेदारी बढ़ जाती है। सामाजिक क्षेत्र हो या राजनैतिक, व्यापारिक क्षेत्र हो या शैक्षिक हर जगह पर नैतिकता का पतन हुआ है। इसके जिम्मेदार हम स्वयं हैं क्योंकि हम मच्छर को तो छान लेते हैं लेकिन ऊंट को निगल जाते हैं।
धर्म वही जो दूसरों के प्रति उत्तरदायी हो: सिख समाज के सरदार जोधसिंह ने कहा कि कर्मकांड को समझ लेना ही धर्म नहीं है। हमारा धर्म वह होता है जो हमें दूसरों के प्रति उत्तरदायी बनाए। धर्म इस लोक के लिए है और मोक्ष परलोक के लिए होता है। नैतिकता यही है कि हम दूसरों के प्रति भी हमारा उत्तरदायित्व निभाएं। नैतिकता की व्यापकता प्रदान करने में धर्मगुरुओं की भूमिका ही सबसे अहम हो सकती है।
स्कूल से ही पढ़ाया जाए नैतिकता का पाठ: मेवाड़ महामंडलेश्वर महंत रासबिहारी शरण ने कहा कि गुरु वही होता है तो अज्ञान के अंधकार को दूर करे। गुरु ही समाज को नैतिकता की दिशा में अग्रसर कर सकता है। स्कूली शिक्षा के प्रारंभिक दौर में ही नैतिकता का पाठ पढ़ाने की जरूरत है।
सभी धर्मगुरुओं को एक मंच पर आना होगा : बालोतरा के महामंडलेश्वर स्वामी आत्मानंदजी ने कहा कि हमारे नैतिक मूल्य शब्द प्रधान नहीं होने चाहिए। नैतिकता की पुनस्र्थापना के लिए सभी धर्म गुरुओं को एक मंच पर आने का आग्रह करते हुए उन्होंने कहा कि इससे विचारों का आदान-प्रदान होगा। नए विचार निकलेंगे और नैतिकता को व्यापकता मिल सकेगी।
प्रवचन से नैतिकता को प्रतिष्ठापित करें: ईसाई समाज के फादर एंड्रयू रोड्रिक्स ने कहा कि आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ आमजन के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। नैतिकता की प्रतिष्ठापना के लिए गुरु और संतों की दायित्व बढ़ गया है।
धर्म गुरु नैतिकता को व्यापकता दें पारसी समाज के होमी ढल्ला ने देश में व्याप्त भ्रष्टाचार,आतंकवाद और राजनीति में व्याप्त अपराधीकरण पर प्रहार किया। उन्होंने कहा कि कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां नैतिकता का पतन न हुआ हो। अब धर्मगुरुओं का यह दायित्व है कि वे नैतिकता को व्यापकता प्रदान करें।
अनैतिकता से अशांति बढ़ती है: लियाकत अली राजस्थान वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष लियाकत अली ने कहा कि हर धर्म में नैतिकता का महत्व है। जहां अनैतिकता बढ़ती है वहां अशांति बढ़ती है। जब-जब भी ऐसा होता है हमारे धर्मगुरु ही हमें सही रास्ता दिखाते हैं।
स्वयं को समझनी होगी नैतिकता : बौद्धधर्म के भदंत डॉ. ज्ञानरतन महाफेरा ने कहा कि सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि नैतिकता आखिर है क्या? नैतिकता वह है जिसमें मन, वचन और काया से स्वयं की तरह दूसरों को भी समझें। हर अच्छे कार्य की शुरुआत स्वयं से होनी चाहिए।
समाज की तरक्की के लिए नैतिकता जरूरी: दाउदी बोहरा समाज के जोएब भाई ने सैयदना साहब द्वारा प्रेषित संदेश का पढ़कर सुनाया। उन्होंने कहा कि आचार्य समाज में तरक्की, शां&52द्भ;ति और नैतिकता का पैगाम देते हैं। नैतिकता के बल पर ही सही मायने में तरक्की हो सकती है।
अभी भी पूजनीय हैं संत: आचार्य महाश्रमण ने इस बात पर संतोष जताया कि आज भी जनता धर्म गुरुओं, संतों के आगे अपना मस्तक झुकाती है। संत त्याग और संयम की मूर्ति है। जो शांत है वह संत है। जिसके कषाय शांत है वह संत है।
अनुकंपा की चेतना विकास के चार सूत्र: 1. -सांप्रदायिक सौहार्द, 2. नशामुक्ति, 3. कन्या भ्रूण हत्या न करना, 4. ईमानदारी का पालन करना।
धर्मगुरुओं को साहित्य भेंट: समारोह में डालचंद डागलिया, संपत नाहटा, भंवरलाल डागलिया, शांतिलाल सिंघवी, राजकुमार फत्तावत, विनोद मांडोत, दीपक सिंघवी, रमेश सतूरिया, अविनाश नाहर ने धर्मगुरुओं को साहित्य भेंट किया। इससे पूर्व सम्मेलन में स्वागत भाषण शांतिलाल सिंघवी ने दिया। संचालन मर्यादा कोठारी ने किया। आभार राजकुमार फत्तावत ने ज्ञापित किया।