News in English:
Location: | Koshiwara |
Headline: | Killing Of Female Foetus Is Uncivilised |
News: | Daughters are well-wisher of any family and society. Daughters has qualities of compassion and love. To kill female foetus is bringing curse on society. A civilized society never can do so. We cannot imagine society and family without women. |
News in Hindi:
कोशीवाड़ा में भ्रूण हत्या के विषय में बोले आचार्य महाश्रमण, धवल सेना सहित आज गांवगुड़ा में प्रवेश करेंगे
कोशीवाड़ा 13 JUNE 2011 जैन तेरापंथ समाचार ब्योरो
आचार्य महाश्रमण ने कहा कि बेटियां किसी भी समाज, परिवार की चिंतक होती हैं। उनके मन में दया का भाव, ममता और अपनत्व छिपा होता है। इसके बाद भी प्राचीन काल से बेटियों को जन्म से पहले मृत्यु के मुंह में धकेलने का घिनौना कृत्य आज भी बदस्तूर चल रहा है। पृथ्वी पर अन्य जीवों के बीच मानव के सभ्य समाज में यह असभ्यता दंश है।
आचार्य सोमवार को कोशीवाड़ा गांव में अपने प्रवास के दूसरे दिन आयोजित ‘पारिवारिक जीवन और भ्रूण हत्या मुक्ति’ विषयक कार्यक्रम में को संबोधित कर रहे थे। आचार्य ने कहा कि ईश्वर ने धरती पर सबसे अधिक प्रेम और करुणा की सुंदर कृति के रूप में औरत की रचना की। औरत ने कई रिश्तों को निभाया। वह किसी की बेटी, तो किसी की मां है। औरत को पत्नी के रूप में पुरुष का आधा जीवन (अद्र्धांगिनी) कहा गया है। उसके महत्व को कहीं कम करके नहीं आंका जा सकता। औरत के बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती, लेकिन उसके प्रति प्राचीन काल से ही एक संकुचित विचारधारा अपनाई गई।
बेटे को परिवार में बेटी से अधिक ऊंचा, अधिक सहज स्थान दिया गया। परिवार में बेटी का जन्म हेय दृष्टि से देखा गया। आज देश-दुनिया के लोग खुद को पढ़ा-लिखा मानते हैं। वे इक्कीसवीं सदी में जीने की बात करते हैं, लेकिन एक बेटी के प्रति उनकी अवधारणा में कोई खास परिवर्तन देखने को नहीं मिला। कई माता-पिता बेटी को जन्म से पहले ही मौत के हवाले कर देते हैं। मां की कोख में ही बेटी की हत्या कर दी जाती है। यह सामाजिक अभिशाप तो है ही, धरती का सबसे बड़ा अपराध भी है। आचार्य ने कहा कि देश में प्रति एक हजार बेटों की संख्या की तुलना में बेटियों की संख्या लगभग 940 ही हैं। इससे प्रकृति की दी गई व्यवस्थाओं का ताना-बाना बिखरता नजर आता है। मानव समाज की सेहत के लिए पुरुषों में नारी के प्रति समान अवसर व सम्मान का भाव होना जरूरी है।
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा
कोख में हत्या पशुता का सूचक: कनकप्रभा कोशीवाड़ा 13 JUNE 2011 जैन तेरापंथ समाचार ब्योरो
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने भ्रूण हत्या के विषय पर कहा कि भ्रूण हत्या करने वालों को ये सोचना चाहिए कि आज देश की शिक्षा और होने वाले इम्तिहानों में बेटियों की अव्वल संख्या होती हैं। उसे पढऩे का मौका मिले, तो वे बेटों से मुकाबले में कहीं कम नहीं हैं। शिक्षित मानव समाज की स्थापना में बेटियों का योगदान अनिवार्य है। देश की कई बेटियों ने खेल, विज्ञान, अर्थशास्त्र व आध्यात्मिक क्षेत्रों में समाज की सेवा की और कर रही हैं। किसी भी सूरत में बेटी का स्थान कमतर नहीं है। उन्होंने कहा कि आज भले ही देश के संविधान की सर्वोच्च संस्था से लेकर गांव की पंचायत तक में फेरबदल कर महिलाओं की संख्या को पुरुषों के समानांतर कर दिया गया हो, लेकिन महिलाओं को अवसरों के आंकड़े पुरुष प्रधान समाज उसी की सोच को दर्शाते हैं। साध्वी ने भ्रूण हत्या करने वालों को अमानवीय दृष्टिकोण का सूचक बताया। कार्यक्रम में साध्वी सुभ्रयशा ने कहा कि प्रत्येक परिवार में कम से कम एक बेटी जरूर होनी चाहिए। कार्यक्रम में मुनि जयंत कुमार, कोशीवाड़ा आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष किशनलाल डागलिया व अन्य वक्ताओं ने भी विचार व्यक्त किए। संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया। - 700 अभिभावकों ने लिया संकल्प कोशीवाड़ा 13 JUNE 2011 जैन तेरापंथ समाचार ब्योरो कोशीवाड़ा में भ्रूण हत्या मुक्ति पर आचार्य के प्रवचनों से प्रभावित जैन समाज के करीब सात सौ माता-पिता व परिजनों ने भविष्य में भ्रूण हत्या का ख्याल भी मन में न लाने का संकल्प व्यक्त किया। |