Short News in English
Location: | Kelwa |
Headline: | Paryushan Time Is Best For Spiritual Activity ►Acharya Mahashraman |
News: | Acharya Mahashraman told that time of Paryushan is good time for Aradhana. it will start by Food Sanaym day. |
News in Hindi
आराधना का समय पर्युषण' आचार्य महाश्रमण
केलवा 27 Aug 2011 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
केलवा। आचार्य महाश्रमण ने कहा कि पर्युषण का समय धर्म आराधना करने के लिए श्रेष्ठ है। इन आठ दिनों के दरम्यान श्रावक समाज विशेष रूप से साधना करने में तल्लीन रहें, ताकि विकृतियों को नाश हो सके। श्रावण-भादो में विशेष रूप से धर्म की साधना करने की आवश्यकता है। इन दो माह में होने वाली धार्मिक क्रिया से मन के साथ शरीर को भी शुद्ध किया जा सकता है।
पहला दिन खाद्य संयम दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। हमें अपनी काया को शुद्ध रखने के लिए आहार पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता है। आचार्य यहां तेरापंथ समवसरण में शुक्रवार को शुरू हुए पर्युषण महापर्व के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि हमारी धर्म आराधना का क्रम व्यवस्थित बने रहें। एकागचित्त होकर की गई साधना का फल प्राप्त करने के लिए हमें इसके प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है। संवत्सरी मूल पर्व है। इससे पहले सात दिन जोडे गए है। आचार्य ने पर्युषण के दौरान प्रात:कालीन सत्र में शुरू हुए विभिन्न उपRमों की जानकारी देते हुए भगवान महावीर के चरणों में पुष्प गीत का संगान किया।
उन्होंने कहा कि भगवान महावीर नाम नहीं अपितु एक आत्मा है। उन्हें परमात्मा बनने के लिए न जाने कितने वषोंü तक धर्म की साधना की और मोक्ष को प्राप्त हुए और तीथंüकर बन गए। उनका चरित्र हमें यह शिक्षा देता है कि व्यक्ति आत्मा की साधना करते करते परमात्मा को प्राप्त कर सकता है। आत्मा कभी एक शरीर में नहीं टिकती। वह एक योनि का शरीर समाप्त होने पर दूसरे शरीर में समाहित हो जाती है।
सम्यक की प्राप्ति महत्वपूर्णआचार्य ने आत्मा में सम्यक की प्राप्ति को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि हमारा जीवन यहीं तक सीमित होकर रहने वाला नहीं है। इसके आगे भी मोक्ष का मार्ग है। उसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को अपना अधिकांश समय संयम और साधना में लगाने की आवश्यकता है। जीवन को अच्छा बनाने के लिए सम्यक का ज्ञान होना आवश्यक है। यह हमारी आत्मा का शास्वश्त है। इससे आत्मज्ञान की प्राप्ति संभव होती है।
खाद्य संयम दिवस के साथ पर्युषण शुरू
जैन धर्म का प्रमुख आराधना का पर्व पर्युषण शुक्रवार को तेरापंथ सभा भवन नया बाजार कांकरोली में खाद्य संयम दिवस के साथ शुरू हुआ। तेरापंथ सभा उपाध्यक्ष डॉ. सुखलाल वागरेचा ने बताया कि खाद्य संयम दिवस के तहत 26 शुक्रवार से आचार्य महाश्रमण अमृत महोत्सव के उपलक्ष में पचरंगी व सामूहिक चंदन बाला के तेले तप शुरू हुए। पर्व के पहले दिन जैन तेरापंथ समाज के लोगों ने अंशकालीन प्रतिष्ठान बन्द रखे तथा सभा भवन में आराध की। सुबह छह बजे से अखण्ड नमस्कार महामंत्री, जप अनुष्ठान शुरू होने के साथ जैन धर्म के 24वें तीर्थकर भगवान महावीर के 27 भव पर प्रवचन हुए।
केलवा 27 Aug 2011 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
सम्यक् ज्ञान सबसे बडा रत्नः आचार्यश्री महाश्रमणतेरापंथ के 11वें अधिष्ठाता आचार्यश्री महाश्रमण ने सम्यक् ज्ञान को सभी रत्नों में सबसे बडा बताते हुए कहा कि पृथ्वी पर तीन रत्न माने गए है पानी, अन्न और संयमित वाणी, लेकिन सम्यक् हमें मोक्ष के मार्ग की ओर प्रशस्त करता है। सम्यक् दर्शन के सामने अन्य सभी रत्न तुच्छ है। हम जितनी धर्म की आराधना और उपासना करने में तल्लीन रहेंगे उतनी ही सम्यक् दर्शन की प्राप्ति होगी। अभी पर्युषण का समय चल रहा है। इन दिनों में जितनी साधना की जाए उतनी ही व्यक्ति के लिए अच्छी है। आचार्यश्री ने उक्त उद्गार शनिवार को यहां तेरापंथ समवसरण में पर्युषण महापर्व के दूसरे दिन स्वाध्याय दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से आए हजारों श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का वर्णन प्रस्तुत करते हुए कहा कि हम लागे जिस लोक में जीव का निर्वाह कर रहे है। वह जंबू द्वीप है। इस लोक में तीर्थंकर नहीं हो ऐसा नहीं हो सकता। 20 तीर्थंकर तो होंगे ही। इससे भी ज्यादा 170 तीर्थंकर हो सकते है। जैन वागडम में उल्ल्ेखित है कि जो व्यक्ति कर्माें से मुक्त होता है उसे निर्वाण की प्राप्ति हो सकती है।
आचार्यश्री ने कहा कि सम्यक् दर्शन है तो सम्यक् ज्ञान है। यर्थाथ दृष्टि ही हमें सम्यक् दर्शन का बोध कराती है। जिसे ज्ञान और दर्शन प्राप्त नहीं होता उसे कर्मों से मुक्ति नहीं मिल सकती है। जो इनमें युक्त नहीं होता उसे मोक्ष का मार्ग प्रशस्त नहीं हो पाता। नव तत्व को परिभाषित करते हुए श्रावक-श्राविकाओं से आहृान किया कि वे इसका ज्ञान अर्जित करने का प्रयास करें। आत्म साधना, तप और संयम करने से भी सम्यक् की प्राप्ति की जा सकती है। इसके अलावा किसी के माध्यम से मिलने वाले ज्ञान से भी इसे प्राप्त किया जा सकता है। सांसारिक जगत में यदा कदा मिलने वाले धोखे को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि इससे व्यक्ति को कठिनाई होती है। वह प्राणांत तक भी पहुंच सकता है। उन्होंने एक वृतांत प्रस्तुत करते हुए कहा कि मार्ग में मिलने वाले साधुओं की सेवा अपने हाथों से करने की प्रवृति से भी आत्मा की अनुभूति का अहसास होता है। नवसार को साधुओं ने धर्म की बातें बताई। इन बातों को सुनकर उन्हें सम्यक की प्राप्ति हो गई। हालांकि उन्हें इसका बोध अल्प समय तक ही रहा, लेकिन ज्ञान मिल गया। परिमाणित भाव है तो व्यक्ति साधु का वेश धारण कर सकता है। वह सभी साधु-साध्वियों का नेता बन सकता है।
विशेष स्वाध्याय करने की आवश्यकताआचार्यश्री ने स्वाध्याय दिवस की महत्ता को परिभाषित करते हुए कहा कि इसमें विशेष स्वाध्याय करने की आवश्यकता है। प्राचीन साहित्य में भी इस बात का उल्लेख मिलता है कि बारह प्रकार के तत्व उपदिष्ट है। स्वाध्याय करने से व्यक्ति को आलोक मिलता है। उसके अंधकारमय जीवन में प्रकाश फैलता है। इससे ज्ञान में अपेक्षाकृत वृद्धि होती है। उन्होंने कहा कि आचार्यश्री तुलसी ने अनेक साहित्यों को कंठस्थ कर अपने ज्ञान में आशातीत वृद्धि की थी। इसी क्रम में आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने भी साहित्यों को कंठस्थ किया। इसी परपंरा को आज साधु-साध्वी आगे बढाने में लगे हुए है। श्रावक-श्राविकाओं को भी चाहिए कि वे साहित्य को याद कर अपने ज्ञान की क्षमता को बढाएं। उत्तराध्यन का 29 वां अध्याय पठनीय है। प्रत्येक व्यक्ति को इसका पाठन करना चाहिए और हो सके तो
इसे याद करने का प्रयास करना चाहिए। पूरा होने के बाद इसका पुनरार्वतन करने की आवश्यकता है। उन्होंने 32 आगमों को पठनीय बताते हुए कहा कि स्वाध्याय करने से संयम और मन में निर्मलता का बोध होता है। जीवन में स्वाध्याय का प्रयास करने की आवश्यकता है। इस अवसर पर मंत्री मुनि सुमेरमल ने भी प्रवचन प्रस्तुत किया। आचार्यश्री के प्रवचन सुनने के लिए श्रावक-श्राविकाओं की भीड उमड रही है। पांडाल में सुबह स्थिति यह है कि लोगों को बैठने की जगह तक नहीं मिल रही है। मुनि किशनलाल ने संस्कार निर्माण प्रतियोगिता की जानकारी दी। संयोजन मुनि मोहजीत कुमार ने किया।