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Amet: 19.01.2012Self Assessment is Ideal for Monks And Nuns: Acharya Mahashraman
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आमेट १९ जनवरी २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
आचार्य महाश्रमण ने साधु साध्वियों को अपनी छवि नहीं देखने की सीख दी।
आमेट १९ जनवरी २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
आचार्य महाश्रमण ने साधु साध्वियों को अपनी छवि नहीं देखने की सीख दी।उन्होंने कहा कि संत पानी या दर्पण में खुद को निहारने से दूरी बनाए रखें। मैं कैसा हूं, इसकी जानकारी कांच से मिल जाती है, लेकिन आत्म मूल्यांकन कर खुद को देखना आदर्श है।
आचार्य श्री यहां अमृत महोत्सव के तहत प्रवचनमाला को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आदर्श वही है जो अपने से ऊंचा हो। जो नीचा है, उससे आदर्श की अपेक्षा नहीं की जा सकती। जहां पहुंचना अभीष्ट है, उसे आदर्श माना जा सकता है। देखती दुनिया में भी यही हमारे आदर्श हैं। अर्हत में भौतिकता और आध्यात्मिकता का समावेश देखने को मिलता है। चक्रवर्ती भी बड़ा आदमी होता है। उसमें भौतिक संपदा तो खूब होती है, लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से उसमें कमी रहती है। आचार्यश्री ने महापुरुषों की जीवनियों के अध्ययन की सीख देते हुए कहा कि कई मर्तबा इनमें व्याख्यान की सामग्री भी मिल सकती है। इसे आदर्श के रूप में काम में लेने की प्रवृत्ति विकसित की जानी चाहिए। हमें यह मनन करने की आवश्यकता है कि मैं क्यों नहीं महापुरुषों की भांति बन सकता। वे भी मेरी तरह से ही इंसान थे।
लघु नाटिका में मनमोहक प्रस्तुतियां
अमृत महोत्सव में लघु नाटिका के तहत ज्ञानशाला के नन्हें बच्चों ने मनमोहक प्रस्तुतियां दी। लघु नाटिका में बच्चों ने आचार्य महाश्रमण के बाल्यावस्था से लेकर उनकी दीक्षा तक के प्रसंगों की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में आचार्यश्री के बचपन का रोल भव्य छाजेड़, बच्चे का वैभव पितलिया, मां का रोल भावना लोढा, पिता इंद्रजीत चूंडावत, बड़े भाई सुजान का रोल दिव्यांश बाफना, मुनि सुमेरमल का रोल अंकित दुग्गड़ ने निभाया।