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Balotara: 10.05.2012
Acharya Mahashraman said fill life with light of knowledge and conduct.
News in Hindi
Published on 10 May-2012
अध्यात्म की दिशा में प्रस्थान
अध्यात्म की दिशा में प्रस्थान
बालोतरा १० मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
गति का दूसरा अर्थ है, जीवन में विकास करना। यह भी एक प्रकार की गति है। भारतीय संस्कृति 'चरैवेति' को बहुत महत्व देती है। उसके अनुसार जो चलता है उसका भाग्य भी उसके साथ चलता है और जो ठहरता है उसका भाग्य भी ठहर जाता है। यहां चलने का अर्थ है कि अध्यात्म की दिशा में प्रस्थान करना। इस प्रस्थान के लिए जरूरी है जीवन को ज्ञान के प्रकाश और आचरण के सौरभ से भरा जाए।
एक राजा को अपने तीन राजकुमारों में से एक को उत्तराधिकार के लिए चयनित करना था। वह चयन उम्र के आधार पर नहीं, योग्यता के आधार पर करना चाहता था। उसने तीनों राजकुमारों को बुलाकर एक-एक रुपया हाथ में थमाया और आदेश दिया कि कल शाम आठ बजे तक इस रुपए से तीनों के महल मुझे भरे हुए मिलने चाहिए। बड़े राजकुमार ने सोचा कि एक रुपए से महल भरना संभव नहीं है। उसने जुआ खेला। पासा उल्टा पड़ा और वह एक रुपया भी गंवा बैठा। दूसरे राजकुमार ने सोचा कि एक रुपए में महल भरने के लिए अच्छी चीज तो मिलेगी नहीं गांव का कूड़ा-कचरा अवश्य मिल सकता है। उसने सफाई-कर्मचारी को वह रुपया दिया और पूरे महल में कचरा, गंदगी भरवा ली। तीसरा राजकुमार बाजार गया। उस एक रुपए से कुछ मोमबत्तियां, कुछ अगरबत्तियां और कुछ फूलमालाएं खरीद लाया। महल के हर कोने में एवं द्वार पर उन्हें स्थापित कर दिया। ठीक समय पर राजा महलों का निरीक्षण करने निकला। बड़े पुत्र का महल खाली था। पुत्र उदास था। पूछने पर उसने अपनी राम कहानी सुना दी। मझले पुत्र के महल के पास जाते ही राजा को बदबू आने लगी। पूछने पर उसने बताया कि पिताजी आपके एक रुपए में गंदगी एवं कचरे के सिवाय और मिल भी क्या सकता था और आपके आदेशानुसार महल को भरना जरूरी था। इसलिए मैंने महल को कचरे से भर दिया। राजा छोटे राजकुमार के महल की ओर ज्योंही बढ़ा उसे दूर से ही प्रकाश दिखाई दिया। मन को आह्लादित करने वाली भीनी-भीनी महक आने लगी। छोटे राजकुमार का महल सौरभ और प्रकाश से भरा देख राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने छोटे राजकुमार की बुद्धि की प्रशंसा की और उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
कहने का तात्पर्य यही है कि जीवन को मंजिल की ओर गतिमान करने के लिए ज्ञान का प्रकाश और आचरण की सौरभ चाहिए। ज्ञान के आलोक में व्यक्ति अपना आत्मनिरीक्षण करता रहे और सदाचरण की सौरभ से जीवन को महकाता रहे। जो व्यक्ति उदार, ईमानदार, नशामुक्ति जीवन जीने वाला, शांत स्वाभावी, बड़ों का आदर करने वाला, औरों के कल्याण की भावना रखता है उसका जीवन सद्गुणों की सौरभ से भरा होता है। अपनी प्रज्ञा के प्रकाश में व्यक्ति स्वयं झांके और देखें उसके जीवन में इन सद्गुणों की सौरभ है या नहीं? यदि है तो निश्चित ही उसकी गति प्रशस्त है।
आचार्य महाश्रमण