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Balotara: 10.05.2012
Acharya Mahashraman said that body is not eternal but it is source of our Sadhana.
News in Hindi
शरीर धर्म की साधना का साधन: आचार्य
आचार्य ने किया महाश्रमण मार्ग का लोकार्पण
बालोतरा १० मई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
आचार्य महाश्रमण ने कहा कि शरीर अनित्य है। आदमी जीवन जीता है और उसकी मृत्यु भी हो जाती है। शरीर अनित्य तो है पर यह कब समाप्त हो जाएगा, यह भी बताना मुश्किल है। आचार्य ने कहा कि यह शरीर अशुचि है। यह शरीर अशुचि में ही पैदा होता है। यह शरीर अशाश्वत आवास वाला है। यह शरीर दुखों का भाजन है। इस शरीर में कई कष्ट हो जाते हैं। यह शरीर तो व्याधियों का घर है। उन्होंने मानव मात्र को इस अशुचि शरीर से सार लेने की प्रेरणा देते हुए कहा कि व्यक्ति को साधना करके इस शरीर का सद उपयोग करना चाहिए। आचार्य बुधवार को नया तेरापंथ भवन में धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि चेतना के कारण ही इतना अशुचि पूर्ण होते हुए भी यह शरीर अच्छा लगता है। शरीर धर्म की साधना का साधन है। व्यक्ति को शरीर के रूप पर अहंकार नहीं करना चाहिए। व्यक्ति शरीर की अशुचि पर ध्यान दे तो विरक्ति का भाव पैदा हो सकता है। आचार्य ने कहा कि शरीर एक नौका है। जीव एक नाविक है, संसार समुद्र है और महर्षि लोग इससे तर सकते हैं। व्यक्ति रोज आत्मा की सफाई करे। प्रतिक्रमण से आत्मा का स्नान हो जाता है। प्रतिक्रमण से स्वाध्याय होने के साथ कर्म निर्जरा भी होती है। आचार्य ने 'पकड़ आंगुली अपने घर में' गीत प्रस्तुत किया।मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि हर आस्तिक व्यक्ति स्वयं में परम का दर्शन करना चाहता है और इसलिए वह धर्म की शरण में आता है। किंतु यह तभी हो सकता है जब हमारा हृदय पवित्र बने। कार्यक्रम के प्रारंभ में मुनि राजकुमार ने 'म्हारो हीरा जडिय़ों आंगणियों' गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के अंत में प्रज्ञाचक्षु दीपक शर्मा ने 'अमृत जैसी वाणी जिनकी' गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।