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Pachpadra: 27.06.2012
Samayik is Sadhana of Equanimity. Acharya Mahashraman told people of Pachpadra and he inspired to do Samayik. He compared that Samayik of Sadhu and Samayik of Shrawak. Samayik of Sadhu is lifelong and Samayik of Shrawak is for 48 minutes.
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सामायिक समता की विशिष्ट साधनाञ्ज
पचपदरा २७ जून २०१२ जून तेरापंथ न्यूज ब्योरो
आचार्य महाश्रमण ने सामायिक को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि जैन साधना पद्धति में सामायिक का महत्वपूर्ण स्थान है। सामायिक आत्मा के आसपास रहने की साधना है। सामायिक समता भाव की विशिष्ट साधना करने का उपक्रम है। आचार्य मंगलवार को पचपदरा में धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि साधु के भी सामायिक होती है। साधु सर्व सावध योग का त्याग कर देता है। उसके लिए जीवन भर सामाजिक उच्च कोटि की बारह व्रतों को स्वीकार कर लेता है। उन्होंने कहा कि साधु व श्रावक की सामायिक में अंतर है सामायिक ले लेने पर श्रावक भी श्रमण जैसा बन जाता है। इसलिए बहुत सामायिक का अभ्यास करना चाहिए। श्रावक सामायिक में मुखवस्त्रिका बांधता है, चद्दर ओढ़ता है तो वेशभूषा प्राय: साधु जैसी हो जाती है। यह बाह्य समानता है। आंतरिक समानता में साधु के सावद्य योग का त्याग होता है और श्रावक के सामायिक में सावद्य योग का त्याग होता है। श्रावक के तीन प्रकार छह, आठ, नौ कोटि की सामायिक हो सकती है। छह कोटी की सामायिक छोटी, आठ कोटि की मध्यम व नौ कोटि की उत्तम सामायिक है। सामायिक में व्यक्ति राग-द्वेष से मुक्त रहने की साधना करें। सामायिक में झूठ बोलने, हिंसा से, चोरी से बचने का प्रयास करें। आचार्य ने प्रेरणा देते हुए कहा कि गृहस्थ जीवन में काफी समय सांसारिक खातों में बीत जाता है। कुछ समय व्यक्ति को साधना में लगाने का प्रयास करना चाहिए। 58 घड़ी काम की 2 घड़ी राम की, 58 घड़ी हार की 2 हर की, 58 घड़ी कर्म की 2 घड़ी धर्म की, 58 घड़ी पाप की 2 घड़ी आप की, 58 घड़ी जीव की 2 घड़ी शिव की। इससे हमारी जीवन शैली ही अच्छी नहीं बनती है, हम आत्माराधना की दृष्टि से कुछ करने वाले बन जाते हैं। गृहस्थ को सामायिक का अभ्यास करना चाहिए। साधना की तत्वज्ञान आदि की बातें, स्वाध्याय, व्याख्यान श्रवण आदि हो सकता है। साधु के सामायिक की साधना बहुत ही उच्च कोटि की होती है। श्रावक भी सामायिक के आंशिक काल की साधना कर सकता है। व्यक्ति का शुभ योग व त्याग में समय बीते। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि विवेक पूर्वक कार्य करने का जीवन एक मात्र मनुष्य जीवन ही है। इसलिए मनुष्य जीवन बंधन मुक्ति का द्वार है। व्यक्ति थोड़े से प्रयास से इस चौरासी के घेरे से पार हो सकता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति कृत संकल्प रहे और कर्मों को क्षीण करते हुए आगे बढ़ता रहे।
कार्यक्रम के प्रारंभ में मदन कुमार ने ओ मानव सोच जरा ये जीवन संध्या सी लाली है गीत प्रस्तुत किया। दिलीप मदानी व आनंद डी चौपड़ा ने महाश्रमण दरबार प्यारो-प्यारो लागे गीत गाया। विजयराज संकलेचा संकलेचा ने साध्वी प्रमुखा की रचित कविता का पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि पुलकित कुमार ने किया।