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Jasol: 10.11.2012
Acharya Mahashraman said that time management is key of successes. He also inspired people to give good Sanskar to children by sending them to Gyanshala.
News in Hindi
समय अमूल्य हैं, इसे व्यर्थ न गवाएं: आचार्य महाश्रमण
जसोल(बालोतरा) 10 नवम्बर 2012 जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
काल स्वभाव तो है बीतना। रात्रि बीतती है, दिन भी बीतते हैं और समय आगे से आगे चला जाता है। काल को रोका नहीं जा सकता। क्योंकि समय अविराम प्रवाह है। काल के बीत जाने के बाद उसकी ओर ध्यान जाने से मात्र पश्चाताप ही होता है। ये उद्गार तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण ने शुक्रवार को जसोल में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि समय परिवर्तनशील है। पहले बचपन फिर जवानी और बाद में बुढ़ापा इन सब दौरो से व्यक्ति को गुजरना पड़ता हैं मानव जीवन का समय तो बीत जाता है, इसका सदुपयोग किया जाना चाहिए अगर उसे खाने, पीने और सोने में ही व्यर्थ गंवा दिया तो इस जीवन का क्या औचित्य? अगर व्यक्ति समय को बर्बाद करता है तो निश्चित मान कर चलिए कि वक्त व्यक्ति को भी बर्बाद करके छोड़ देगा। क्योंकि समय देर सवेरे ही सही, बदला अवश्य लेता है। जो व्यक्ति जीवन में धर्म-ध्यान आदि की प्रवृत्ति, दुव्र्यसनों व लड़ाई-झगड़े में बीता देता है तो वह व्यक्ति की बहुत बड़ी गलती है। हम समय का उपयोग दूसरे की भलाई में व स्वयं के आत्म कल्याण में नियोजित करें, जिस तरह गली-मोहल्ले में पहरेदार मुस्तैदी व जागरूकता के साथ पहरेदारी करता है, ठीक उसी तरह हम समय के पहरेदार बने। एक मिनट का समय भी व्यर्थ नहीं जाने दें, समय का सदुपयोग करके उसे सफल, सुफल व सार्थक बनाएं अन्यथा जीवन में निष्फलता का मुंह देखना पड़ेगा। आचार्य ने ज्ञानशाला के माध्यम से बच्चों में संस्कार के बीज रोपण करने का आह्वान किया। अच्छे संस्कारों से ही महानता संभव है। आचार्य तुलसी ने तो महज 22 वर्ष की उम्र में आचार्य के पद का दायित्व संभाल लिया था। इस अवसर पर मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि धार्मिक व्यक्ति अगर पुद्गल का उपयोग करता है तो वो भटकता नहीं है। अगर पुद्गल के साथ आसक्ति लेकर आए तो सिवाय भटकाव के अलावा कुछ हासिल नहींहो पाएगा। श्रावक में गंभीरता होनी चाहिए, व्यक्ति के ज्ञान के साथ धैयर्ता आती है तो ज्ञान तारक बन जाता है अन्यथा वह मारक का काम करता है। इस अवसर पर साध्वी सरस्वती ने भी विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि हिमांशु कुमार ने किया।