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Asadha: 21.01.2013
Acharya Mahashraman told people to follow path of Non-violence.
News in Hindi
अहिंसा की साधना जरूरी: महाश्रमण
आसाडा 21 2013जनवरी जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
महातपस्वी युवामनिषी आचार्य महाश्रमण ने असाडा में वर्धमान समवसरण में उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि मन को मंदिर बनाने के लिए अहिंसा की साधना की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जब मन पवित्र होता है तो उसमें आराध्य का वास होता है। आचार्य ने बाह्य आडम्बरों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि मन मंदिर में विराजित आराध्य की आराधना के लिए स्तुति की आवश्यकता है, न कि दीप, फूल आदि की। मन की मलिनता का कारण है राग, द्वेष और चंचलता। यह सब कोई जानते हैं।
अत: कुछ समय आराध्य की आराधना करने से मन में इनका आवेग कम होता है। मन को पवित्र बनाने के लिए पराक्रम की आवश्यकता होती है।
साधना के विकास के लिए शरीर व वाणी की अपेक्षा मन पर अधिक ध्यान देना चाहिए। मन के भाव ही बंधन और मोक्ष के कारण है। विषय युक्त भाव बंधन की ओर ले जाने वाला, विषय मुक्त भाव मुक्ति की ओर ले जाने वाला है।
आचार्य ने सन्यासियों के लिए कहा कि जो साधु साध्वियां बनते हैं, जिन्होंने साधना के लिए अभिनिष्क्रमण किया है उन्हें साधना में अपना पराक्रम करना चाहिए। भाव को पत्रि बनाना चाहिए जिससे वे आगे बढ़ सकें। जिस व्यक्ति के जीवन में ईमानदारी, नैतिकता, कर्तव्यनिष्ठा, मैत्री ओर संयम के भाव होते हंै। उनका मन आराध्य की आराधना का पवित्र मंदिर होता है। मुनिश्री शांतिप्रिय ने अपने भावों की प्रस्तुति दी।
आसाडा धर्मसभा में उपस्थित श्रावक-श्राविकाएं (इनसेट) संबोधित करते आचार्य महाश्रमण।