06.09.2014 ►Jahaj Mandir ►Ichalkaranji News

Published: 06.09.2014
Updated: 08.01.2018

Jahaj Mandir Mandawala


Ichalkaranji

News in Hindi:

मुंबई में महाचमत्कारी दादा गुरुदेव महापूजन का आयोजन
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चातुर्मास कालिन दिव्य देशना में सैकड़ो श्रद्धालु हो रहे लाभान्वित
<http://www.jahajmandir.org/2014/08/blog-post.html>
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मोक्ष प्राप्त करने का पुरूषार्थ खुद को ही करना होगा
-उपाध्याय मणिप्रभसागर
श्री मणिध्ाारी जिनचन्द्रसूरि जैन श्वेताम्बर संघ के तत्वावध्ाान में
पूज्य गुरुदेव उपाध्याय श्री मणिप्रभसागर, मुनि मयंकप्रभसागर, मुनि
मनितप्रभसागर, मुनि मेहुलप्रभसागर, मुनि समयप्रभसागर, विरक्तप्रभसागर,
श्रेयांसप्रभसागर आदि मुनि मंडल एवं साध्वी डाँ. श्री नीलांजना, साध्वी
विभांजना, साध्वी निष्ठांजना, साध्वी आज्ञांजना आदि साध्वी मंडल की पावन
निश्रा में आज तपस्वियों की अनुमोदनार्थ भव्य शोभायात्रा का आयोजन किया
गया।
शोभायात्रा का प्रारंभ श्री मणिधारी जिनचन्द्रसूरि दादावाडी से हुआ जो
अवाडे होती हुई श्री वासुपूज्य मंदिर पहुँची जहाँ पूजा अर्चना के उपरान्त
राजस्थान भवन होती हुई वासुपूज्य जुना मंदिर पहुँची। वहाँ की पूजा के
पश्चात् मुख्य मार्गों से होती हुई सुमतिनाथ मंदिर के दर्शन कर पुन:
दादावाडी पहुँची।
इससे पूर्व पूज्य उपाध्यायश्री ने आगम वांचना के अन्तर्गत पांचवें भगवती
सूत्र की वांचना को आगे बढाते हुए कहा- जीव, अजीव और जीव-कर्म संयोग
अनादि है। क्योंकि जीव का निर्माण नहीं होता। निर्माण करने वाला कोई नहीं
है।
उन्होंने कहा- सनातन धर्म ने ईश्वर को अनादि कहा है। जैन धर्म ने जीव,
अजीव और जीव-कर्म संयोग को अनादि कहा है।
उन्होंने कहा- एक समय ऐसा हुआ था जब लिखने के लिये ताडपत्र उपलब्ध नहीं
हो पा रहे थे। तब कुमारपाल महाराजा ने अनशन करके देव-आराधना की। परिणाम
स्वरूप उन वृक्षों पर ताड पत्र उपस्थित हो गये, जिन पर वे पैदा हो ही
नहीं सकते थे। यह आगम के प्रति श्रद्धा का परिणाम था। हुबली से आये हितेश
तेजराज कांकरिया का चातुर्मास कमिटि की ओर से स्वागत किया गया।
आज बैंगलोर से 100 से अधिक श्रावक श्राविकाओं का संघ पूज्यश्री की सेवा
में पहुँचा। उन्होंने आगामी चातुर्मास बैंगलोर में करने की भावभरी विनंती
की। साथ ही चित्तौड से पधारे भगवतीलाल नाहटा, जीवराज खटोड, नवसारी से आये
मांगीलाल छाजेड आदि का बहुमान किया गयज्ञं
आज दोपहर में वर्धमान शक्रस्तव महापूजन पढाया गया। इस विशिष्ट महापूजन की
चर्चा करते हुए पूज्यश्री ने कहा- आचार्य सिद्धसेनदिवाकर सूरि ने आज से
2100 वर्ष पूर्व इस महान् स्तोत्र की रचना की थी। प्रतिदिन यदि इस
चमत्कारी स्तोत्र का पाठ किया जाता है तो जीवन अपने आप में परम शांति को
प्राप्त करता है।
मुंबई से पधारे ख्यातनाम साधक श्री विमलभाई शाह ने यह महापूजन शास्त्रीय
संगीत के साथ पढाया। महापूजन का लाभ श्री मांगीलालजी खीमराजजी छाजेड
परिवार ने लिया। रात्रि में संगीतकार विनीत गेमावत ने भक्ति भावना का
अनूठा वातावरण निर्मित किया। सभा का संचालन संघ के सचिव रमेश लूंकड ने
किया।

प्रेषक
रमेश लूंकड
महामंत्री
-

Sources
Jahaj Mandir.com
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