29.08.2015 ►Jahaj Mandir ►Rakhi Punam Speech of Jinkantisagarsuri

Published: 26.08.2015
Updated: 08.01.2018

Jahaj Mandir Mandawala


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पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री जिनकांतिसागरसूरिजी म.सा. का राखडी पूनम विषय पर दिया गया अनमोल प्रवचन

बहुत से जैनी यह समझते हैं कि जैन धर्म की दृष्टि से रक्षाबंधन का कोई महत्व नहीं है किन्तु वे भूल जाते हैं कि स्नात्रा पूजा में हम प्रतिदिन क्या बोलते हैं?

‘वर राखड़ी जिन पाणि बांधी दिये इम आशीष।
युग कोड़ा-कोड़ी चिरंजीवो धर्मदायक ईश।।’

भगवान के भी राखड़ी बांधी जाती है- राखड़ी का अर्थ होता है- रक्षा करना।
इस रक्षा-पर्व का महत्व क्या है? यह पर्व राखी के धागों का बंधन नहीं है, यह तो हृदय का बंधन है, आत्मा का बंधन है, प्राणों का बंधन है। धागा तो धागा ही है, धागे के रूप में उसका कोई मूल्य नहीं है परन्तु राखी के रूप में बंधवाने के बाद वह धागा, धागा नहीं रहा। एक स्नेहसूत्र बन गया। अर्थात् आप धागे से नहीं, स्नेह के तार से बंध गये। राखी बांधने वाले के जीवन से बंध गये। उसके जीवन का दायित्व आप पर आ जाए।

राखी कौन बांधती है? बहिन! इसका अर्थ हुआ राखी बंधाने के बाद उस बहिन की जीवन रक्षा का नैतिक दायित्व भाई पर आ जाता है। दायित्व निभाने का अर्थ है आप बहिन के प्रति अपनी सद्भावना रखें। उसके दु:ख-दर्द में सहयोगी बनें।

गुरुदेव के प्रवचन भाग-1 पुस्तक से साभार

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