29.09.2015 ►Jahaj Mandir ►4th Dada Gurudev Achary Jinchandrasuri

Published: 29.09.2015
Updated: 27.10.2015

Jahaj Mandir Mandawala


News in Hindi:

चौथे दादा गुरुदेव अकबर प्रतिबोधक श्री जिन चंद्रसूरिजी म. की जयंती पर विशेष आलेख
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जन-जन के ह्रदय में बसी हुई अहिंसा, करुणा और मैत्रीभाव को मानव ही नहीं पशु-पक्षीयो तक साकार रूप देने वाले, शिथीलाचार से व्यथित होकर शास्त्रविहित साध्वाचार परंपरा को क्रियोद्धार के द्वारा विकसित करने वाले, सम्राट अकबर को प्रतिबोध देकर धार्मिक दिवसों में सर्वत्र हिंसा निषेध के आदेश प्राप्त करने वाले गच्छनायक युगप्रधान श्री जिनचंद्रसुरीजी म. जैन धर्म के आकाश में भानु के समान हुए है। दादा गुरुदेवो में ये चौथे दादागुरु माने जाते है।
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आप 17वीं शताब्दी के अप्रतिम और असाधारण जैनाचार्य हुए। आपने चारित्रिक तपोबल और साधना से सम्राट अकबर से शत्रुंजय गिरनार तीर्थो की रक्षा का फरमान, जीवो की रक्षा के अमारी घोषणा, स्तम्भ तीर्थ के जलचर जीवो की अमारी घोषणा और सम्राट जहांगीर ने जैन साधुओ के सर्वत विचरण पर जो प्रतिबन्ध लगाया था उसको जहांगीर के हाथो ही निरस्त कराया।
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आपके विशिष्ट कार्य जैन शासन के लिए अत्यंत उद्योतकारी हुए है। तत्कालिन आचार्य, उपाध्याय और साधू वृन्दो ने आपकी उज्जवल कीर्ति का गुणगान करते हुए गीत स्तवन आदि लिखे है जो कि उनके कार्यकलाप यश को वृध्दि करने में समर्थ है।
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आपका जन्म राजस्थान में जोधपुर के निकट स्थित खेतसर गाँव में हुआ। आपका जन्म नाम सुल्तान कुमार था। संवत १६०४ में जिनमाणिक्य सूरी जी के पास आपने दीक्षा ग्रहण की। इन्होंने  ९ वर्ष की उम्र में दीक्षा ली।
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आपका दीक्षा नाम सुमतिधीर था गुरुदेव श्री जिन माणिक्यसुरीजी के अकस्तमात देवलोक हो जाने पर सभी ने मिल कर जैसलमेर में आपको आचार्य पद दिया और परंपरा अनुसार आपका नाम जिनचंद्रसूरिजी रखा गया।
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आपके विशेष प्रभाव से प्रभावित होकर सम्राट अकबर ने बीकानेर में आपको युगप्रधान पद से अलंकृत किया। सम्राट जहांगीर के दरबार में विद्वान् भट्ट को शास्त्रार्थ में पराजित करने पर आपको भट्टारक पद से अलंकृत किया गया।
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आपका अंतिम चातुर्मास बिलाड़ा में था। पर्युषण के पश्चात एकाएक शारीरिक अस्वस्थता बढ़ गयी। अपना अंतिम समय जानकर संघ को हितशिक्षा देते हुए गच्छ का भार आचार्य जिनसिंहसूरिजी को सौंप आश्विन कृष्णा दूज को इस देह का विसर्जन कर स्वर्गधाम की और प्रयाण किया।
ऐसे महोपकारी जैन धर्म की कीर्ति फहराने वाले पूज्य गुरुदेव के चरणों में वंदन।
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प्रेषक 📎-गौतम संकलेचा चेन्नई

Sources
jahajmandir.org

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