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🌞☀🌇नवप्रभात🌋🌄🌅
पूज्य गुरुदेव खरतरगच्छाधिपति श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. की मंगल वाणी
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दृश्य तो जैसा है,वैसा ही रहता है | दृश्य नहीं बदला करता | दृष्टि को बदलना होता है |
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और हमारी मुसीबत यह है की हम सदैव दृश्य बदलने की कामना करते है | हमारा भी दृश्य बदलने के लिए होता है |
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यदि में ना बदला तो दृश्य बदल भी जाएगा तो क्या हो जाएगा?
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क्योंकि दृश्य वैसा दिखाई नहीं देता, जैसा वह होता है बल्कि दृश्य वैसा दिखाई देता है,जैसे हम होते है | हम अपनी आँखों पर चढ़े चश्मे के रंग को दृश्य पर स्थापित करते है | संसार हमारी ही दृष्टि का हस्ताक्षर है |
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सुखी घास को खाने से इंकार करने वाले घोड़े की आँखों पर जब गहरे हरे रंग का चश्मा बिठा दिया जाता है | तो वह उसी सुखी घास को हरी मान कर बड़े चाव और स्वाद से खा जाता है | यह दृष्टिकोण का अंतर है |
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इसी संसार में ज्ञानी भी रहता है और इसी संसार में अज्ञानी भी रहता है | दृश्य वही है, लोग वही है,पेड़ पौधे वही है, घटनाये वही है, शब्द वही है, प्रेम-मोह का जाल वही है! सब कुछ एक-सा है | अंतर दृष्टिकोण का है |
संसार काजल का घर है | जो भी छुएगा, काला हो जाएगा पर हर व्यक्ति नहीं | जो अज्ञानी है, वही उससे लिप्त होगा | जो ज्ञानी है,ज्ञानसिद्द है,वह लिप्त नहीं होता |
यह संसार काजल का ही घर है, पर उसके लीये, जो लिप्त है, जो आसक्त है,जिसकी आँखों पर पट्टी चढ़ी है |
संसार उसके लिए मुक्ति का मंगल द्वार है, जो निर्लिप्त है, जो अनासक्त है, जिसने दृश्य की यथार्थता को समझकर अपनी दृष्टि यथार्थ बना ली है |
अपने दृष्टिकोण को बदलना ही अँधेरे से उजाले की और गति करना है |
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प्रेषक 📎-गौतम संकलेचा चेन्नई
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