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132 दिनों के पश्चात अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी का धवल सेना के साथ भारत की धरा पर आगमन हुआ। स्वागत की भावनाओं में विशाल जनसमूह ने गुरुवर का अभिनंदन किया। प्रवेश की अनुपम झलकियाँ।
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🌍 आज की प्रेरणा 🌏प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण
विषय - करें परिष्कार
प्रस्तुति - अमृतवाणी
संप्रसारण - संस्कार चैनल के माध्यम से --
आर्हत वाड्मय में कहा गया है - अपने आप को देखो| दूसरों को हम देखते हैं, पर उनको भी पूरा नहीं देख पाते | अनन्त पर्याय होते हैं, एक सामान्य व्यक्ति उनको कहाँ देख पाता है | उनको तो सर्वज्ञ ही देख सकते हैं| ये आँखें जिस शरीर में है, उसके चहरे को सही देख पाना कठिन है | दुसरे की कमियों व विशेषताओं को भी जान लेना चाहिए ताकि आदमी धोखा न खाये | अध्यात्म की साधना में अपने आपको देखना ज्यादा जरूरी है | परिष्कार के लिए अपनी गलतियों को देखे | हमारे जीवन में परिष्कार का बड़ा महत्व होता है | जैसे कवि अपनी कविता को बार बार पढ़कर उसे ओर सुन्दर बना सकता, वैसे ही हम जीवन को बार बार देखकर उसे ओर अच्छा बना सकते हैं| पत्थर में से अनपेक्षित भाग को हटाया कि मूर्ति बन गई| स्वयं को देखकर या बड़ों से जानकार कमियों को कम किया जा सकता है| राग व द्वेष की तरंगों से जिसका मन तरंगित नहीं होता वही धर्म कर सकता है | आत्मा को न देखा जा सकता है, न छुआ जा सकता है न ही चखा जा सकता है| उसका तो साक्षात्कार ही किया जा सकता है | पानी तरंगित हो तो उसमें तालाब के अन्तःस्थल को नहीं देखा जा सकता| दर्पण में चेहरा देखने के लिए जरूरी है - दर्पण साफ़ हो, अचंचल हो, अनावृत हो व देखने वाला चक्षुमान हो| हम स्वयं की प्रज्ञा जागृत करें, ध्यान का प्रयोग करें व भीतर में रहने का प्रयास करें| अशुभ से मन को हटाना गुप्ति है, अतः अशुभ से बचें |
दिनांक - १ दिसम्बर, २०१५
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