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अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य से विहार एवं प्रवचनकालीन कार्यक्रम की झलकियाँ। 12.12.2015
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🌎 आज की प्रेरणा 🌍12 Dec, 2015
प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण
विषय - अच्छा हो धर्म के साथ कर्म
प्रस्तुति - अमृतवाणी
संप्रसारण - संस्कार चैनल के माध्यम से --
पुन्य व पाप प्रत्येक होता है, अपना अपना होता है| अपना किया हुआ कर्म प्राणी को खुद ही भोगना पड़ता है | इसलिए मैं पाप कर्म से बचूं | आचरण में धर्म का प्रभाव रहे तथा कर्म के साथ धर्म जुड़ जाय| अच्छा आचरण एक सम्पदा है| धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया और चारित्र गया तो सब कुछ गया| धर्म के दो रूप - उपासनात्मक धर्म और आचरणात्मक धर्म| विभिन्न लोग अपने अपने तरीकों से उपासना करते हैं| इसका भी अपना महत्व है, इसके द्वारा भी निर्जरा हो सकती है, लेकिन इसके लिए किसी को फुर्सत न भी मिले तो आदमी कम से कम आचरणात्मक धर्म को तो करे ही| व्यापार में नैतिकता, शिक्षण में पूर्ण मनोयोग से शिक्षण देना, न्यायाधीश में न्यायप्रियता, मजदूर में मजदूरी के अनुसार कार्य करने की भावना, बातचीत में गुस्सा न आना, किसी को समझाना हो तो प्रेम से समझाना व सोने में निर्विचारता का अभ्यास| जो यह सब कर लेता है, तो सहज ही कर्म के साथ धर्म जुड़ जाता है | हे वीतराग! आपकी पूजा की अपेक्षा आपकी आज्ञा का पालन ज्यादा बेहतर है| घृणा पापी से नहीं पाप से करें| गरीब के प्रति मैत्री भाव, सद्भाव व करुणा का भाव भी कर्म के साथ धर्म को जोड़ने जैसा है | हमें पाप से बचना चाहिए, क्योंकि पाप किसी का बाप नहीं होता | लोभ पाप का जनक होता है क्योंकि लोभ के कारण से कितने अकार्य भी हो जाते हैं| कार्य का जनक कारण होता है| हम निर्लोभता का अभ्यास करें |
दिनांक - १२ दिसम्बर २०१५, शनिवार
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