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उदयपुर: महिला मंडल द्वारा संघोष्ठी।
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अजमेर: साध्वी वृन्द का मंगल विहार।
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🌍 आज की प्रेरणा 🌍प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण
प्रस्तुति - अमृतवाणी
संप्रसारण - संस्कार चैनल के माध्यम से -आर्हत वाड्मय में दो शब्द का प्रयोग किया गया हैं - एक साधु और दूसरा असाधु| गुणों से आदमी साधु और अगुणों से असाधु बनता है, इसलिए अच्छे गुणों को, सद्गुणों को ग्रहण कर अगुणों को, दुर्गुणों को छोड़ देना चाहिए | आचार्य हेमचन्द्र ने सूक्त मुक्तावली में कहा है - इस जीवन में हमें आत्मिक व सात्विक सुख प्राप्त करने चाहिए और उसके लिए तुम अर्हत भगवान की पूजा करो, अर्हत सामने न हो तो साधुओं के सामने नत मस्तक बन जाओ, आगम का ज्ञान करो, अधार्मिकों, दुर्जनों की संगत से बचो, साधु जनों को दान दो, धन का सदुपयोग करो, जिस पथ पर महान लोग चलते हैं उस पथ पर चलो, कषाय रुपी क्षत्रुओं को जीतो और नमस्कार महामंत्र का स्मरण करो | इन सबके प्रयोग से तुम्हारे में सात्विक गुणों का विकास हो जायगा। दुर्जनता से सज्जनता की ओर प्रस्थान करो | दुर्जन का मिलन दुखदाई होता है तो सज्जन का बिछुड़न भी दुखदाई होता है| किसी की गलतियाँ भी हमारे लिए प्रेरक बन सकती है, यदि हम उसकी गलतियों से प्रेरणा प्राप्त करें| हर अक्षर मंत्र, हर रसायन औषधि और हर व्यक्ति प्रेरक हो सकता है, यदि उसकी सही जगह पर सही संयोजना की जाए | तो हम अपने जीवन में गुणों के विकास का प्रयास करते रहें|
दिनांक - १५ दिसम्बर,२०१५, मंगलवार
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