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★ सुविचार ★
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🌍 आज की प्रेरणा 🌍प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण
विषय - कैसे बने वाणी कलात्मक
प्रस्तुति - अमृतवाणी
संप्रसारण - संस्कार चैनल के माध्यम से --
आर्हत वाड्मय में कहा गया है - हमारे जीवन में शरीर, वाणी और मन ये तीन प्रवृति के साधन हैं | शरीर से चलना-फिरना, खाना-पीना आदि, मन से चिंतन कल्पना व वाणी से बोलना | बोलना हमारे जीवन में अनिवार्य जैसा है क्योकि व्यवहार के सारे कार्य उसी से संचालित होते हैं| इसके साथ ही मौन भी एक साधना है| मौन दो प्रकार का - पहला बोलना नहीं और दूसरा संकेत भी नहीं करना | मौन विश्राम का साधन भी है व एकाग्रता की विशेष साधना का माध्यम भी| मौन मूर्खों का एक आभूषण है| कलात्मक वाणी के ये चार सूत्र हैं - पहला सूत्र - मित्तभाषिता: अर्थात कम बोलना चाहिए, अधिक बोलकर अपना व सामने वाले के समय को क्यों गंवाया जाय? वाणी की दो विष बतलाये गए हैं - बात को लम्बाना व सारहीन बोलना | उसी प्रकार वाणी के दो गुण भी - बात का संक्षिप्तिकरण व सारपूर्ण बात करना| कलात्मक वाणी का दूसरा सूत्र- मिष्टभाषिता,अर्थात जो भी बोलो मीठा बोलो| मृदुभाषिता एक प्रकार का वशीकरण मंत्र है| तीसरा सूत्र - यथार्थभाषिता, अर्थात जो जैसा है उसको वैसा ही बतलाना, सही रूप में बतलाना | चौथा - परीक्ष्यभाषिता, अर्थात सोच विचार कर बोलना| पहले सोचो फिर बोलो| जितना संभव हो उतना मौन भी करें व वाणी के प्रयोग में पाप से बचाव का प्रयास करें | झूठ बोलना, कटु बोलना व गुस्से में बोलना पाप कर्म बंध के कारण हैं| ॐ की ध्वनि का प्रयोग, मंत्रोच्चारण, जप व स्वाध्याय के द्वारा हम ऊर्जा प्राप्त करने का प्रयास करते रहें |
दिनांक - १८ दिसम्बर २०१५, शुक्रवार
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