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गोरे रंग पे न् इतना गुमान कर......
चक्रवर्ती सनत्कुमार -
चक्रवर्ती सनत्कुमार बहुत सुन्दर थे |
उनके सौंदर्य की महिमा पुरे संसार में फ़ैल गयी |
महिमा सुनकर एक देव बूढ़े ब्राह्मण का रूप बनाकर आया |
उसने चौकीदार से कहा - चक्रवर्ती के दर्शन करने हैं |
चौकीदार ने जवाब दिया - अभी उनका व्यक्तिगत समय है, कल राज्यसभा में दर्शन करना |
ब्राह्मण बोला - तुम चक्रवर्ती को इतना कह दो - आपके दर्शन के लिए एक ब्राह्मण जवानी में दूर देश से चला था और चलते-चलते अब बूढा हो गया है |
पाता नहीं, वह जियेगा या नहीं |
ब्राह्मण की प्रार्थना सुनकर चक्रवर्ती ने ब्राह्मण को अपने महल में बुला लिया |
ब्राह्मण चक्रवर्ती को देखकर स्तब्ध रह गया |
जबकि वह देवलोक से आया था,
फिर भी इतना अप्रतिम सौंदर्य उसने कभी नहीं देखा था |
सनत्कुमार ने कहा - अरे! तुम मेरे सौंदर्य को अभी क्या देखते हो? कल मैं जब स्नान कर,
राजसी वस्त्र और अलंकार पहनकर राज्यसभा में रत्नजटित सिंहासन पर बैठूं तब मेरा सौंदर्य देखना, तुम्हारा मन तृप्त हो जाएगा |
दुसरे दिन चक्रवर्ती ने अतिरिक्त तैयारी की, विशेष ध्यान देकर तैयार हुआ |
अनेक बार शीशे में अपने-आप को देखा |
" आदमी जब-जब शीशे के सामने जाता है,
तब-तब आधा पागल बन जाता है | "
चक्रवर्ती ने राज-सिंहासन पर बैठकर ब्राह्मण को बुलवाया |
ब्राह्मण चक्रवर्ती को देखते ही घृणा से भर उठा |
चक्रवर्ती भी समझ गया और बोला - क्या तुम्हे आज मेरा सौंदर्य अच्छा नहीं लग रहा?
ब्राह्मण बोला - राजन! कल वाला सौंदर्य चला गया, आज सौंदर्य गायब हो गया है |
चक्रवर्ती ने सोचा - बुढापे के साथ-साथ बुद्धि भी सठिया जाती है, कल मैं सामान्य था तो इसे सुन्दर लग रहा था और आज...
चक्रवर्ती बोला - गौर से देखो, ब्राह्मण |
ब्राह्मण बोला - पीकदान मंगवाएं और उसमें थूक कर देखें |
सनत्कुमार ने पीकदान में थूका और देखा कि लट और कीड़े किलबिला रहे हैं |
सनत्कुमार बोला - यह क्या हो गया?
ब्राह्मण बोला - महाराज! जिन १६ बीमारियों को भयंकर माना जाता है,
वे सारी की सारी एक साथ आपके शरीर में हो गयी है |
इसका कारण है आपका ' अहंकार ' |
सनत्कुमार सन्न रह गए |
उनका अहंकार चूर-चूर हो गया |
मन वैराग्य से भर गया |
वे राज-पाट छोड़कर मुनि बन गए |
वही बूढा ब्राह्मण वैद्द्य बन कर मुनि के पास आया
और बोला - मुनिप्रवर! आप कुष्ठ-रोग से पीड़ित हैं,
मैं चिकित्सा कर के आपकी काया को कंचन बना सकता हूं |
तब मुनिवर ने कहा - " मुझे तो जनम-मरण का भयंकर रोग है, यदि तुम् उपचार कर सकते हो तो कर दो |
मुनि के इनकार करने पर भी ब्राह्मण जिद करता रहा |
तब मुनि ने अपने मुंह में अंगुली डाली और
जहां कुष्ठ झर रहा था,
उस पर थूक के कुछ छींटे डाले |
देखते ही देखते वहां का रूप कंचन जैसा हो गया |
मुनि कष्टों को सहते जा रहे थे,
उनके अशुभ कर्मों का विपाक हुआ,
पर वे दु:खी नहीं हुए |
यह है धर्म की कला |
~ आचार्य श्री महाप्रज्ञजी की पुस्तक " समयसार: निश्चय और व्यवहार की यात्रा " से
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धर्मं में मर्म या फालूत time waste??? | जिन की वाणी का रहस्य....श्रुत पंचमी special
Generally हम लोग सोचते है की धर्मं तो धर्मात्मा लोगो का काम है, फालतू लोगो का काम है, जो निठल्ले है संसार में जिनको कुछ करना नहीं आता वे लोग पंडित धर्मात्मा बन जाते है और मुनि आदि बन जाते है, और यही सबसे बड़ी दिक्कत है की हमने धर्म के लिए मन में जो बात बिठा ली है उसे उपर हम सोच ही नहीं पाते, हम बोलते तो अपने आप को 'Liberal + Educated + Well Standard + Super Minded Human been' लेकिन धर्मं के मामले में हम जीरो ही है और अन्धविश्वासी है लेकिन क्यों??? इसका Answer शायद ही किसी के पास हो?
जिनवाणी मैय्या तू सभी की है प्यारी, भक्तजनों की राज दुलारी...
गुरु धरसेन मुख से फुलवा खीरे है, मुनि द्वय जिसकी माला बुने है...
गुंथी माला 'षट्खण्डागम' रूप में हमने पैहनी, लागे प्यारी प्यारी...
पुष्पदंत और भुतबली ने जिन की वाणी का श्रुत में अमृत प्याला...
षट्खण्डागम ग्रन्थ की रचना कर, हम पर कितना उपकार कर डाला...
पिला दो प्याला हमको, कटे कर्म सारा...मनोहर वाणी तुम्हारी...
जग से निराली, सभी की है प्यारी...जिनवाणी मैय्या तू सभी की है प्यारी |
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जिनवाणी के उदगम स्थान - अनंतानंत जीवो की मोक्ष स्थली सम्मेद शिखर की रक्षा का प्रण... जिन धर्मं के नाम |
जिन धर्म का मानस्तंभ और शाश्वत निर्वाण भूमि श्री सम्मेद शिखर जी....इस पर्वत के बारे में कहा गया है 'एक बार बंदे जो कोई, काही नरक पशु गति नाही होई' मतलब अगर आपने एक बार इस पर्वत के भाव से वंदना कर ली तो next birth में आपको नरक या पशु गति नहीं हो सकती मतलब आप देव/मनुष्य बनेंगे...और ग्रन्थ में ऐसा वर्णन भी मिलता है जिसको सुनकर आप आश्चर्य करेंगे 'भाव सहित सम्मेद शिखर पर्वत की वंदना करने वाले को 48 जन्मो के अन्दर अन्दर मोक्ष होना निश्चित हो जाता है | ' अब आप सोच सकते है की सम्मेद शिखर जी क्या स्थान है...भैया मोक्ष का ticket place है वो!!
लेकिन अफ़सोस है हम थोडा जीभ के taste और Comfortable होने के चक्कर में सम्मेद शिखर जी की पवित्रता ख़तम करते जा रहे है, जो स्थान अपनी पवित्रता के कारन हमें नरक/पशु गति से बचाने वाला है और मोक्ष का होना निश्चित होना confirm कराने वाला है हम लोग उस स्थान की पवित्रता ख़तम करते जा रहे है, हम वहा जाते है और खूब chines food, fast food, रात को खाना खूब खाते है जैसे कोई भगवान् के दर्शन करने नहीं कही पिकनिक बनाने के लिए आये है, और तो और नया ड्रामा 'बिना अन्न की थाली' भी अब शिखर जी में मिलने लगी है और लोग खूब खाने लगे..भाई लोगो ये क्या है...धर्मं को ड्रामा बना लिया हमने और कुछ नहीं....क्या हम जब शिखर जी जाए तो 3-4 दिन भी बिना chines food, fast food के नहीं रह सकते? क्या हम मर जायेंगे अगर 3-4 दिन chines food, fast food नहीं खायेंगे [माफ़ करना अगर मेरा ये शब्द प्रयोग करना गलत लगा तो पर क्या करे हम taste चक्कर में पागल जैसे ही होगये है]
और शिखर जी के पहाड़ को तो हमने picnic spot और safari hill Place बना दिया और लगता है हम कोई discovery करने जा रहे है....boys Jeans, paint, Tees [t-shirts], Shirt में और Girls also in Jeans, Top, Kapri, Shorts और साथ में Shoes with stocking. उनके पास Mobile, कैमरा, Apple shuffle, Digital mp3 player और भी पता नि क्या क्या लेकर पर्वत पर जाते है और उनका Trendy Attire से तो लगता है जैसे क्या यही बस Mount Everest पर जा रहे है...और तो और साथ में Backpack [पीठ पर लटकाया जाने वाला थैला] भी लटका लेते है हा भैया बस उनको ही भूख लगती है...5 घंटे में बस यही कमजोर हो जायेंगे और यही लगता है की कभी खाना खाया ही नहीं...पहाड़ पर ही First time खायेंगे Life में...ये वो पर्वत है जहा से अनंत जीवो ने कर्म रूपी पर्वतो को चूर चूर कर और निर्वाण को प्राप्त किया...आपको पता है ये पर्वत अनादीकाल से है और अनंतकाल तक रहेंगा...तीर्थंकर हमेशा इसी पर्वत से मोक्ष गए और जायेंगे...
हमें पर्वत पर white dress में जाना चाहिए जैसे boys [men community] को white कुरता-पजामा या धोती-दुपट्टा में और वो भी सोला [शुद्ध] होना चाहिए...और female community को भी शालीन और शुद्ध वस्त्र पहन कर जाए, हो सके तो मोबाइल/camera ना लेकर जाए, नियम लेकर जाए पहाड़ पर कुछ नहीं खाऊंगा/खाऊंगा, पैरो में जूते/चप्पल नहीं पहनना चाहिए, जुराब भी नहीं, और पहाड़ पर कुछ नहीं खाना, पीना भी नहीं [Except some specific cases]...कुछ खरीदना नहीं...मस्ती/मजाक नहीं करना...'आत्मा को कुंदन बनाने वाली जिनवाणी के स्त्रोत तीर्थंकर भगवान् के मोक्ष स्थल पर हम जारहे है...जिस पथ पर चलकर हम भी जरुर एक दिन कुंदन हो सकेंगे...और उनके सामान सिद्धशिला पर विराजेंगे...'
आओ आज हम श्रुत पंचमी के महान अवसर पर प्रण करे की अब से हम शाश्वत तीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी पवित्रता बनाने में पूर्ण सहयोगी होंगे....