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पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में चतुर्दशी के अवसर पर आज हाजरी का वाचन हुआ। विहार एवं प्रवचनकालीन मनोरम दृश्य।
09.01.2016
प्रस्तुति > तेरापंथ मीडिया सेंटर
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🌍 आज की प्रेरणा 🌍प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण
विषय - प्रभुता का द्वार सरलता
प्रस्तुति - अमृतवाणी
संप्रसारण - संस्कार चैनल के माध्यम से --आदमी के भीतर राग व द्वेष के भाव रहते हैं, और राग-द्वेष ही का अंश है - माया, अर्थात दुसरे को ठगना| दुसरे को ठगते समय आदमी को यह भी सोचना चाहिए कि इससे कहीं मैं अपने आत्म गुणों का नाश तो नहीं कर रहा, अपने मित्रों का नाश तो नहीं कर रहा? माया एक भय का स्थान है| जो एक बार माया कर लेता है, तो वह उसके उद्घाटन के लिए सदा डरता रहता है | माया नैतिकता की वाधा और सच्चाई की दुश्मन होती है | सरल व ऋजु पवित्र मन वाला होता है व निश्छलता पवित्रता की साधना | जैन वाड्मय के अनुसार माया तिर्यंच अर्थात पशु गति में ले लाने वाली होती है, इसलिए हमें मायाचार से बचना चाहिए | मरने से पहले अगली गति का निर्धारण हो जाता है | धर्म उसके जीवन में ठहरता है - जो खुद शुद्ध होता है और शुद्ध वह होता है जिसका मन सरल होता है | सुजानगढ़ के एक खास श्रावक हुए थे - रूपचंदजी सेठिया | उनके जीवन का एक प्रसंग - उनके कपड़े की दूकान में एक ग्राहक आया| मुनीम से वह मूल्य कम करने का आग्रह करने लगा | मुनीमजी ने मूल्य तो कम कर दिया पर उतना कपड़ा भी कम दे दिया | जब यह बात रूपचंदजी को उसने बत-लाइ तो उन्होंने उस ग्राहक को बुलाकर कम मापे गए कपड़े का मूल्य वापिस कर दिया और उस मुनीनजी की छुट्टी भी कर दी | यह घटना बड़ी प्रेरणास्पद है व नैतिकता को प्रोत्साहित करने वाली है | माया के साथ झूठ भी जुड़ जाता है | झूठ आदमी - गुस्सा, अभाव, भय व लोभ के कारण बोलता है | हम माया से बचें, यह काम्य है |
दिनांक - ९ जनवरी २०१६, शनिवार
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