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।। बिहार में गतिमान अहिंसा यात्रा ।।
पूज्य प्रवर आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य से विहार एवं प्रवचन के मंगल दृश्य।
10.01.2016
प्रस्तुति > तेरापंथ मीडिया सेंटर
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🌍 आज की प्रेरणा 🌍प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण
विषय - संतोष, असंतोष दोनों का महत्व
प्रस्तुति - अमृतवाणी
संप्रसारण - संस्कार चैनल के माध्यम से --आर्हत वाड्मय में कहा गया है - आदमी के भीतर लोभ की वृति होती है और लोभ को पाप का बाप कहा गया है | जैसे सम्यक ज्ञान, दर्शन और चारित्र मोक्ष के कारण होते है, वैसे ही लोभ पाप का कारण | लोभ के कारण आदमी कितने कितने पाप कर लेता है | मूढ़ व मोह ग्रस्त आदमी असंतोषी व ज्ञानी संतोष को धारण करने वाले होते हैं | भोग से आत्मा का शोषण व त्याग से आत्मा का पोषण होता है | संतोष आत्म-पोषण का हेतु है | लेकिन कहीं कहीं असंतोष का भी अपना महत्व होता है | तीन चीजों में संतोष करो - स्वदार में, भोजन में व अर्थार्जन में | आदमी स्वावलम्बी तो रहे लेकिन लालसा से मुक्त रहे | न्याय से अर्जित धन - अर्थ और अन्याय से अर्जित धन - अर्थाभाष| तीन चीजों में असंतोष करो - ज्ञानार्जन में, दान देने में व विकास में | हम संतोष व असंतोष की सीमाओं को समझें | हमारे अर्थ के अर्जन की सीमाएं तो भले सीमित हो लेकिन विकास का क्षेत्र असीमित रहे |
दिनांक - १० जनवरी २०१६, रविवार
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