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🚩🚩🚩आचार्य देशना🚩🚩🚩
🇮🇳"राष्ट्रहितचिंतक"जैन आचार्य 🇮🇳
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
तिथि: माघ शुक्ल एकादशी, २५४२
माघ माह के दसलक्षण पर्व
उत्तम तप धर्म की जय
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देखा ध्यान में
कोलाहल मन का
नींद ले रहा
भावार्थ: मन में कोलाहल न होना ही ध्यान है । जितनी जितनी निर्विकल्पता, उतना अच्छा ध्यान । मन का कोलाहल, शोर, उद्वेग, विकल्प आदि जब सो जाते हैं उसे ही ध्यान कहते हैं । कर्म सिद्धांत को समझकर हम सभी संकल्प विकल्पों से दूर होकर ध्यान की ओर अग्रसर हो सकते हैं और स्वस्थ बनने का (स्व में स्थित होने का) प्रयास कर सकते हैं । मुनियों जैसी निर्विकल्पता सामान्य गृहस्थ के पास नहीं इसलिए मुनियों जैसा शुद्ध ध्यान यदि गृहस्थ न भी कर पाये तो कम से कम उसकी आराधना तो कर ही सकता है एवं अपने जीवन में ज़्यादा कोलाहल, भागम भाग आदि से बचकर कुछ समय के लिए सद ध्यान तो कर ही सकता है । ऐसे ध्यान के माध्यम से वह कुछ सुख का अनुभव कर सकता है ।
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"राष्ट्र हित चिंतक"आचार्य श्री के सूत्र
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आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
तिथि: माघ शुक्ल दशमी, २५४२
माघ माह के दसलक्षण पर्व
उत्तम संयम धर्म की जय
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गंध सुहाती
नीम पुष्पों की, स्वाद
उल्टी कराता
भावार्थ: ग्रीष्म ऋतू में नीम के पेड़ के ऊपर लगने वाले पुष्पों की गंध तो अच्छी लगती है किन्तु उन पुष्पों का स्वाद अत्यंत कड़वा होता है और उनका स्वाद वमन का कारण भी बन सकता है । कुछ लोग जो ऊपर से तो बहुत सुन्दर, सुगन्धित होते हैं किन्तु उनके अंतरंग में कड़वाहट भरी होती है। न हमे स्वयं ऐसा दिखावटी होना चाहिए और ऐसे दिखावटी लोगों के संपर्क से भी बचना चाहिए ।
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आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
तिथि: माघ शुक्ल नवमी, २५४२
माघ माह के दसलक्षण पर्व
उत्तम सत्य धर्म की जय
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आत्मा की नहीं
आत्मा से बात करो
तो बात बने
भावार्थ: प्रायः लोग आत्मा की बात तो बहुत करते हैं किन्तु अपनी आत्मा से बात नहीं करते । ये ज्ञान तो सामान्य से कोई भी दे देता है कि आत्मा अलग है और शरीर अलग किन्तु इस बात पर हमेशा श्रद्धान करने वाले व्यक्ति बिरले होते हैं और श्रद्धान करके स्वयं से बात करने वाले आत्मा की गहराईयों में डुबकी लगाने वाले, निज स्वरुप में लीन रहने वाले तो अत्यंत दुर्लभ हैं । यहाँ गुरु जी आत्मा की बात नहीं अपितु आत्मा से बात करने पर जोर दे रहे हैं ।
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आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
तिथि: माघ शुक्ल अष्टमी, २५४२
माघ माह के दसलक्षण पर्व
उत्तम शौच धर्म की जय
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शुभ कार्यों में
अनादर करना
ही प्रमाद है
भावार्थ: शुभ कार्यों को नहीं करना, अथवा मन से नहीं करना, अथवा अनादर करना प्रमाद कहा । श्रावक को देव पूजा, गुरु उपास्ति, स्वाध्याय, संयम, तप और दान ये षट कर्त्तव्य नित्य करने योग्य हैं । इन सभी कार्यों अथवा और भी शुभ कार्यों में अनादर प्रमाद ही है । दसलक्षण पर्व चल रहे हैं, क्या हम लोग जिन अभिषेक पूजन आदि षट कर्तव्यों से इस दिन को सफल बनाएंगे अथवा प्रमाद करके गँवा देंगे ।
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