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कथित तौर पर चंद्रगुप्त के पैरों के निशान गुफा से पास जैन मान्यताओं के अनुसार कर्नाटक, भारत
श्रवणबेलगोला से मिले शिलालेखों के अनुसार, चंद्रगुप्त अपने अंतिम दिनों में जैन-मुनि हो गए| चन्द्र-गुप्त अंतिम मुकुट-धारी मुनि हुए, अतः चन्द्र-गुप्त का जैन धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है |
स्वामी भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोल चले गए। वहीं उन्होंने उपवास द्वारा शरीर त्याग किया। श्रवणबेलगोल में जिस पहाड़ी पर वे रहते थे, उसका नाम चंद्रगिरि है और वहीं उनका बनवाया हुआ 'चंद्रगुप्तबस्ति' नामक मंदिर भी है।
(Purportedly the mark of Chandragupta's footprints in Karnataka, India, not far from the cave where he observed fasts in accordance with Jain beliefs)
article with picture copied from *Gautam Buddha Ashok Samrat Page
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❖ चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज का अन्तिम उपदेश - ये नहीं पढ़ा तो क्या पढ़ा!! ❖
परमपूज्य आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज ने कुंथाल्गिरी में आमरण अनशन के २६ वे दिन तारीख ८ सितम्बर को शाम के ५ बजे मराठी में मानव कल्याण के लिए जो उपदेश किया,उन्होंने कहा:
"ॐ नमः सिद्धेभ्य!पञ्च भारत,पञ्च ऐरावत के भूत भविष्यत् काल सम्बन्धी भगवानों को नमस्कार हो!३० चौबीसी भगवानों को,श्री सीमंधर आदि तीर्थंकर भगवानों को नमस्कार हो!रिषभ आदि महावीर पर्यंत तीर्थंकरों के १४५२ गंधार देवों को नमस्कार,चारंरिद्धिधारी मुनियों को नमस्कार,चौसठ रिद्धिधारी मुनीश्वरों को नमस्कार!अन्त्कृतकेवलिभ्यो नमोनमः!प्रत्येक तीर्थंकर के तीर्थ में होने वाले १०-१० घोरोप्सर्ग विजेता मुनीश्वरों को नमस्कार हो!
ग्यारह अंग चौदह पूर्व प्रमाण शास्त्र महासमुद्र है,उसका वर्णन करने वाले श्रुत-केवली नहीं हैं,उसके ज्ञाता केवली-श्रुत-केवली भी अब नहीं हैं!उसका वर्णन हमारे सदृश क्षुद्र मनुष्य क्या कर सकते हैं?जिनवाणी,सरस्वती,"श्रुत देवी" अनंत समुद्र तुल्य है!उसमे कहे गए जिनधर्म को जो धारण करता है उसका कल्याण होता है!उसको अनंत सुख मिलता है,उससे मोक्ष की प्राप्ति होती है,ऐसा नियम है!एक अक्षर "ॐ" है!उस एक "ॐ" अक्षर को धारण करके जीवों का कल्याण हुआ है!दो बन्दर लड़ते लड़ते सम्मेदशिखर से स्वर्ग गए!सेठ सुदर्शन ने उच्चपद पाया!सप्त-व्यसन धारी अंजन चोर स्वर्ग गया है!कुत्ता महानीच जाति का जीव जीवंधरकुमार के णमोकार मंत्र के उपदेश से देव हुआ!इतनी महिमा जैनधर्म की है,किन्तु (श्वास लेते हुए) जैनियों की अपने धर्म में श्रद्धा नहीं है!
" जीव और पुद्गल पृथक हैं "
अनंतकाल से जीव पुद्गल से भिन्न है,यह सब लोग जानते हैं पर विश्वास नहीं करते हैं!पुद्गल भिन्न है,जीव अलग है!तुम जीव हो,पुद्गल जड़ है,इसमें ज्ञान नहीं है,ज्ञान-दर्शन-चैतन्य जीव में है!स्पर्श,रस,गंध,वर्ण,पुद्गल में है,दोनों के गुण-धर्म अलग अलग हैं!पुद्गल के पीछे पड़ने से जीव को हानि होती है!तुम जीव हो,मोहनीय कर्म जीव का घात करता है!जीव के पक्ष से जीव का अहित है!पुद्गल से जीव का घात होता है!अनंत सुख स्वरुप मोक्ष जीव को ही होता है,पुद्गल को नहीं,सब जग इसको भूला है!जीव पञ्च पापों में पड़ा है,दर्शन मोहनीय के उदय ने सम्यक्त्व का घात किया है!क्या करना चाहिए?सुख प्राप्ति की इच्छा है,तो दर्शन मोहनीय का घात करो,सम्यक्त्व धारण करो!चारित्रमोह का नाश करो!संयम धारण करो!दोनों मोहनीय का नाश करो!आत्मा का कल्याण करो!यह हमारा आदेश व उपदेश है!मिथ्यात्व कर्म के उदय से जीव संसार में फिरता है!मिथ्यात्व का नाश करो!सम्यक्त्व को प्राप्त करो!सम्यक्त्व क्या है?सम्यक्त्व का वर्णन समयसार,नियमसार,पंचास्तिकाय,अश्तपाहुड,गोम्मटसार आदि बड़े-बड़े ग्रंथों में है,पर इन पर श्रद्धा कौन करता है?आत्म-कल्याण वाला ही श्रद्धा करता है!मिथ्यात्व को धारण मत करो,यह हमारा आदेश व उपदेश है!ॐ सिद्धाय नमः!
"कर्म निर्जरा का साधन"
तुम्हें क्या करना चाहिए?दर्शनमोहनीय कर्म का क्षय करो,आत्मचिंतन से दर्शंमोह्नीय कर्म का क्षय होता है,कर्मों की निर्जरा भी आत्मचिंतन से होती है!
दान से,पूजा से,तीर्थयात्रा से पुन्यबंध होता है!हर धर्म कार्य से पुण्य का बंध होता है;किन्तु कर्मनिर्जरा का साधन आत्मचिंतन है!केवलज्ञान का साधन आत्मचिंतन है!अनंत कर्मों की निर्जरा का साधन आत्मचिंतन है!आत्मचिंतन के सिवाय कर्मनिर्जरा नहीं होती है!कर्मनिर्जरा बिना केवलज्ञान नहीं होता है और केवलज्ञान बिना मोक्ष नहीं होता है!क्या करें?शास्त्रों में आत्मा का ध्यान उत्कृष्ट ६ घडी,माध्यम ४ घडी,और जघन्य २ घडी कहा है!कम-से-कम १०-१५ मिनट ध्यान करना चाहिए!हमारा कहना यह है की कम-से-कम ५ मिनट तो आत्मचिंतन करो!इसके बिना सम्यक्त्व नहीं होता!सम्यक्त्व के बिना संसार-भ्रमण नहीं छूटता,जन्म जरा मरण नहीं छूटते!सम्यक्त्व तथा संयम धारण करो!सम्यक्त्व होने पर ६६ सागर यहाँ रहोगे!चरित्रमोहनीय का क्षय करने के लिए संयम धारण करना चाहिए,इसके बिना चरित्रमोहनीय का क्षय नहीं होता!संयम धारण करने से दरो मत,संयम धारण किये बिना सातवाँ गुणस्थान नहीं होता और सातवें गुणस्थान के बिना उच्च आत्म अनुभव नहीं होता!वस्त्र धारण में सातवाँ गुणस्थान नहीं होता!
" सम्यक्त्व और संयम धारण के बिना समाधि संभव नहीं "
ॐ सिद्धाय नमः! समाधि दो प्रकार की है,एक निर्विकल्प समाधि और दूसरी सविकल्प समाधि! गृहस्थ सविकल्प समाधि धारण करता है! मुनि हुए बिना निर्विकल्प समाधि नहीं होगी, अतएव निर्विकल्प समाधि पाने के लिए मुनिपद पहले धारण करो!इसके बिना निर्विकल्प समाधि कभी नहीं होगी! निर्विकल्प समाधि हो, तो शुद्ध सम्यक्त्व होता है, ऐसा कुन्दकुन्द स्वामी ने कहा है! आत्म अनुभव के सिवाय सम्यक्त्व नहीं है! व्यवहार-सम्यक्त्व खरा (परमार्थ) नहीं है, फूल जैसे फल का कारण है, व्यवहार-सम्यक्त्व आत्म-अनुभव का कारण है!आत्म-अनुभव होने पर खरा (परमार्थ) सम्यक्त्व होता है! निर्विकल्प-समाधि मुनिपद धारण करने पर होती है!सातवाँ गुणस्थान से बारहवें गुणस्थान पर्यंत निर्विकल्प समाधि होती है!तेरहवें गुणस्थान में केवलज्ञान होता है,ऐसा शास्त्र में कहा है!यह विचार कर डरो मत की क्या करें! संयम धारण करो!सम्यक्त्व धारण करो!इसके सिवाय कल्याण नहीं है,संयम और सम्यक्त्व के बिना कल्याण नहीं है!पुद्गल और आत्मा भिन्न है,यह ठीक-ठाक समझो! तुम सामान्य रूप से जानते हो, भाई-बंधू,माता-पिता,पुदगल से सम्बंधित हैं,उनका जीव से कोई सम्बन्ध नहीं है! जीव अकेला है, बाबा (भाइयों)! जीव का कोई नहीं है! जीव भव-भव में अकेला जाएगा! देव-पूजन,गुरु-पास्ति,स्वाध्याय,संयम,तप,और दान,ये धर्म-कार्य हैं! असि,मसि,कृषि,शिल्प,विद्या,वाणिज्य,ये ६ कर्म कहे गए हैं! इनसे होने वाले पापों को क्षय करने को उक्त धर्म-क्रिया कही है, इनसे मोक्ष नहीं है! मोक्ष किसे मिलेगा? केवल आत्म-चिंतन से मोक्ष मिलेगा! और किसी क्रिया से मोक्ष नहीं होता!
" जिनवाणी का माहात्म्य "
भगवान् की वाणी पर पूर्ण विश्वास करो!इसके एक-एक शब्द से मोक्ष पा सकोगे!इस पर विश्वास करो! सत्य-वाणी यही है, एक आत्मचिंतन से सब साध्य है और कुछ नहीं है! बाबा (भाई) राज्य,सुख,संपत्ति,संतति,सब मिलते हैं,मोक्ष नहीं मिलता है! मोक्ष का कारण एक आत्म चिंतन है! इसके बिना सदगति नहीं होती है!
" सारांश "
"धर्मस्य मूलं दया" प्राणी का रक्षण दया है! जिनधर्म का मूल क्या है? सत्य और अहिंसा! मुख से सब सत्य अहिंसा बोलते हैं, मुख से भोजन, भोजन कहने से क्या पेट भरता है? भोजन किये बिना पेट नहीं भरता है, क्रिया करनी चाहिए! बाकी सब काम होंगे! सत्य-अहिंसा पालो! सत्य में सम्यक्त्व है! अहिंसा में दया है! किसी को कष्ट नहीं दो! यह व्यवहार की बात है! सम्यक्त्व धारण करो, संयम धारण करो! इसके बिना कल्याण नहीं होता!" (दिनांक ०८-०९-१९५५, समय ५:१० से ५:३२ संध्या).
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❖ कटंगी जबलपुर ❖
इस युग के साक्षात् भगवान् परम पूज्य आचर्य प्रवर विद्यासागर जी गुरुदेव ससंघ के सानिध्य मे आज आदिकुमार भगवान् आदिनाथ का जन्म हुआ! कल तप कल्याणक दिवस है। नोट-1-आप सभी पंचकल्याणक महोत्सव का सीधा प्रसारण पारस चैनल पर देख सकते है!
2. 23-03-2016 दिन बुधवार होली के दिन पंचकल्याणक महामहोत्सव की भव्य गजरथ फेरी रथयात्रा के साथ होगा इस महामहोत्सव का समापन!!
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|| राष्ट्रपति भवन में हुई अहारचर्या संपन्न ||
विश्व जैन समाज के महागौरव एलाचार्य प्रज्ञसागर जी मुनिराज अब बने जैन समाज के लिए ऐतिहासिक कीर्तिस्तम्भ.....
भारत के एतिहास में प्रथम बार
दिगम्बर जैन मुनि
देश का सर्वोच्च स्थान
राष्ट्रपति भवन
जहाँ स-सम्मान आतिथ्य स्वीकार करके
*राष्ट्रपति भवन*
का
अवलोकन किया,
जैन विधि से जैन श्रावको के द्वारा
*आहार चर्या*
सम्पन्न हुई।।।
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राष्ट्र पति भवन में एलाचार्य प्रज्ञसागर जी मुनिराज आहारचर्या के अमूल्य पल
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#कर्नाटक सरकार ने घोषित किया भगवान #महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव को राज्य स्तरीय पर्व..
#चित्र: अख़बार में प्रकाशित सम्बंधित खबर
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✍पंचकल्याणक महामहोत्सव का हुआ आगाज
कटंगी-{जबलपुर}-परम पूज्य गुरुदेव विद्यासागर जी महाराज ससंघ के सानिध्य मे हुआ महामहोत्सव का आगाज...... 18 मार्च से 23 मार्च तक नोट-पंचकल्याणक सीधा प्रसारण जिनवाणी व Paras Channel!!!
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आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज के शिष्ये क्षुल्लक श्री ध्यानसागरजी हस्तिनापुर में विराजमान हैं तथा वह भक्तामर स्तोत्र प्रवचन चल रहे हैं!!!