28.03.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 28.03.2016
Updated: 05.01.2017

Update

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27 साल बाद जबेरा पहुंचे आचार्यश्री, भक्तों ने बारिश से बचाया, 24 घंटे में 11.5 डिग्री लुढ़का दिन का तापमान, बेमौसम बारिश ने दी राहत

रविवार को सुबह से आसमान पर काले बादल छाए रहे। गरज के साथ हल्की बूंदाबांदी भी हुई। इसके बाद दोपहर से शाम तक आसमान पर काले बादल घुमड़ते रहे। उधर शाम करीब 5.30 बजे फिर बारिश होने लगी। हालांकि कुछ मिनटों की बूंदाबांदी के बाद बारिश थम गई।

अचानक हुई इस बेमौसम बारिश के कारण बढ़ते तापमान में कमी जरूर आई है। रविवार को दिन का अधिकतम तापमान 30.5 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड किया गया। जबकि शनिवार को दिन का अधिकतम तापमान 42.0 डिग्री रिकार्ड किया गया था। बूंदाबांदी के कारण दिन के तापमान में 11.5 डिग्री सेल्सियस की गिरावट दर्ज की गई है। रविवार को रात का न्यूनतम तापमान 23.4 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड किया गया। बूंदाबांदी और बादलों के कारण तापमान में जहां कमी आई है वहीं तेज तपन और गर्मी से राहत मिली है। शाम से ठंडी हवाओं ने गर्मी से राहत दी। लेकिन मौसम के बादले मिजाज से किसान चिंतित हैं। जिन किसानो के खेतों में फसलें खड़ी हैं और जिनकी कटाई चल रही है उन्हें मौसम बदलने और बेमौसम बारिश होने से नुकसान का डर सता रहा है।

बनवार में रविवार को जैनाचार्य विद्यासागर महाराज के ससंघ आगमन पर जैन समाज एवं नगरवासियों द्वारा आचार्य एवं मुनिसंघ की भव्य आगवानी की।नगर की सीमा पहुंचते ही पूरे उत्साह एवं गाजे बाजे के साथ सैकड़ों लोगों ने पहुंचकर आचार्यश्री के दर्शन किए। आचार्यश्री जब जबेरा पहुंचे तो भक्तों ने उन्हें बारिश से बचाया।

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Breaking News: आचार्य श्री विद्यासागर जी महा मुनिराज ससंघ का मंगल विहार सगरा की ओर हुआ । 30 या 31 मार्च को कर सकते हैं सिद्ध क्षेत्र श्री कुण्डलपुर में मंगल प्रवेश । chote baba.. Bade baba Ki or..:))

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गुरूदेव के कुंडलपुर आगवानी स्वरुप..
🌹कण-कण सारा महक उठा है,
पर्वत सारा चहक उठा है.

कुंडलपुर मैं आकर देखो,
कोना-कोना दमक उठा है.

🚩खुश्बू अद्भुत फैल चुकी है,
दिशा चारों और अंबर मैं.
विदयासागर गुरू आ रहे,
श्रद्धा पूर्ण दिगम्बर मैं.
चलो उठो,गुरू संग हो लो
क्या रखा बाह्य आडंबर मैं.

🚩कठिन पलों का पुण्य फलों मैं अब निवेश होने वाला है..
कुंडलपुर मैं तीर्थकर का,
जल्दी प्रवेश होने वाला.!!

गुरूदेव का रात्री विश्राम सगरा मैं हैं..कल के आहार बनवार में हो सकते हैं 👆🏻👆🏻👆🏻👆🏻.

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❖ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के दुर्लभ प्रवचन हिंदी संस्करण!! -विनयावनति ❖

विनय जब अंतरंग में प्रादुर्भूत हो जाती है तो उसकी ज्योति सब ओर प्रकाशित होती है। वह मुख पर प्राकाशित होती है, आँखों में से फूटती है, शब्दों में उदभूत होती है और व्यवहार में प्रदर्शित होती है।

विनय का महत्त्व अनुपम है। यह वह सोपान है जिसपर आरूढ होकर साधक मुक्ति की मंजिल तक पहुँच सकता है। यह विनय नामक गुण तत्त्व-मंथन से ही उपलब्ध हो सकता है। विनय का अर्थ है सम्मान, आदर, पूजा, आदि। विनय से हम आदर और पूजा तो प्राप्त करते ही हैं, साथ ही सभी विरोधियों पर विजय भी प्राप्त कर सकते हैं। क्रोधी, कामी, मायावी, लोभी सभी विनय द्वारा वश में किये जा सकते हैं। विनयी दूसरों को भली भांति समझ पाता है और उसकी चाह यही रहती है कि दूसरे भी अपना विकास करें। अविनय में शक्ति का बिखराव है, विनय में शक्ति का केन्द्रीकरण है। कोई आलोचना भी करे तो हम उसकी चिंता ना करें। विनयी आदमी वही है जो गाली देनेवाले के प्रति भी विनय का व्यवहार करता है।

एक जंगल में दो पेड खडे हैं- एक बड का दूसरा बेंत का। बड का पेड घमण्ड में चूर है। वह बेंत के पेड से कहता है- तुम्हारे जीवन से क्या लाभ है? तुम किसी को छाया तक नहीं दे सकते और फल-फूल का नामोनिशान नहीं। यदि कोई काट भी ले तो मेरी लकडी से बैठने के लिये आसनों का निर्माण हो सकता है। तुम्हारी लकडी से तो दूसरों को पीटा ही जा सकता है। सबकुछ सुनकर भी बेंत का पेड मौन रहा। थोडी देर में मौसम ऐसा हो गया कि तूफान और वर्षा दोनों एकसाथ प्रारम्भ हो जाते हैं। बेंत का पेड साष्टांग दण्डवत करने लगता है, झुक जाता है किंतु बड का पेड ज्यों का त्यों खडा रहता है और देखते ही देखते पाँच मिनट में तूफान का वेग उसे उखाड कर फेंक देता है। बेंत का पेड जो झुक गया था, तूफान के निकल जाने पर ज्यों का त्यों खडा हो गया। विनय की जीत हुई, अविनय हार गया। जो अकडता है, गर्व करता है उसकी दशा बिगडती ही है।

हमें शब्दों की विनय भी सीखनी चाहिये। शब्दों की अविनय से कभी-कभी बडी हानि हो जाती है। एक भारतीय सज्जन अमेरिका गये। वहाँ उन्हें एक सभा में बोलना था। लोग उन्हें देख कर हँसने लगे और जब वे बोलने के लिये खडे हुए तो हँसी और अधिक बढने लगी। उन भारतीय सज्जन को थोडा क्रोध आ गया। मंच पर आते ही उनका पहला वाक्य था- 50% अमेरिकन मूर्ख होते हैं। अब क्या था, सारी सभा में हलचल मच गयी और सभा अनुशासन से बाहर हो गयी। तत्काल ही उन भारतीय सज्जन ने थोडा विचार कर के कहना शुरु किया कि क्षमा करें, 50% अमेरिकन मूर्ख नहीं होते। इन शब्दों को सुनकर लोग यथास्थान बैठ गये। देखो, अर्थ में कोई अंतर नहीं था, केवल शब्द-विनय द्वारा वह भारतीय सबको शांत करने में सफल हो गया।

विनय जब अंतरंग में प्रादुर्भूत हो जाती है तो उसकी ज्योति सब ओर प्रकाशित होती है। वह मुख पर प्राकाशित होती है, आँखों में से फूटती है, शब्दों में उदभूत होती है और व्यवहार में प्रदर्शित होती है। विनय के गुण से समंवित व्यक्ति की केवल यही भावना होती है कि सभी में यह गुण उद्भूत हो जाये। सभी विकास की चरम सीमा प्राप्त कर लें।

मुझसे एक सज्जन ने एक दिन प्रश्न किया - महाराज, आप अपने पास आने वाले व्यक्ति से बैठने को भी नहीं पूछते। आपमें इतनी भी विनय नहीं है महाराज? मैनें उसकी बात बडे ध्यान से सुनी और कहा- भैया, साधु की विनय और आपकी विनय एक जैसी कैसे हो सकती है? आपको कैसे कहूँ ‘आइये बैठिए’। क्या यह स्थान मेरा है? और मान लो कोई केवल दर्शन मात्र के लिये आया हो? इसी तरह मैं किसी से जाने का भी कैसे कह सकता हूँ? मैं आने जाने की अनुमोदना कैसे कर सकता हूँ? कोई मान लो रेल, मोटर से प्रस्थान करना चाहता हो तो मैं उन वाहनों की अनुमोदना कैसे करूँ जिनका त्याग मैं बरसों पहले कर चुका हूँ? और मान लो कोई केवल परीक्षा करना चाहता हो तो उसकी विजय हो गयी और मैं पराजित हो जाउंगा। आचार्यों का उपदेश मुनियों के लिए केवल इतना है कि वे हाथ से कल्याण का संकेत करें और मुख का प्रसाद बिखेर दें। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं करना है।

सो मुनि धर्म मुनिन कर धरिये, तिनकी करतूति उचारिये
ताकूं सुनिये भवि प्राणी, अपनी अनुभूति पिछानी।
साधु की मुद्रा ऐसी वीतरागतामय होती है जो दूसरों को अत्मानुभा का प्रबल साधक बन जाती है।

एक बात और है। अगर किसी को बिठाना दूसरों को अनुचित मालूम पडे अथवा स्थान इतना भर जाये कि फिर कोई जगह ही अवशेष न रहे तो ऐसे में मुनि महाराज वहाँ से उठना पसन्द करेंगे अथवा उपसर्ग समझ कर बैठे रहेंगे तो भी उनकी मुद्रा ऐसी होगी कि देखने वाल भी साधना और तपस्या को समझ कर शिक्षा ले सके। बिच्छू के पास एक डंक होता है। जो व्यक्ति उसे पकडने का प्रयास करता है, वह उसे डंक मार ही देता है। एकबार ऐसा हुआ। एक मनुश्य जा रहा है। उसने देखा, कीचड में एक बिच्छू फँसा हुआ है। उसने उसे हाथ से जैसे ही बाहर निकालना चाहा, बिच्छू ने डंक मारने का प्रसाद दे दिया और कई बार उसे निकालने की कोशिश में वह डंक मारता रहा। तब लोगों ने कहा, “बावले हो गये हो। ऐसा क्यों किया तुमने”? “अरे भई बिच्छू ने अपना काम किया और मैंने अपना काम किया, इसमें बावलापन क्या?” उस आदमी ने उत्तर दिया। इसी प्रकार मुनिराज भी अपना काम करते हैं। वे तो मंगल कामना करते हैं और उन्हें गाली देने वाले उन्हें गाली देने का काम करते हैं। तब तुम कैसे कह सकते हो कि साधु के प्रति अविनय का भाव रख सकता है।

शास्त्रों में आभावों की बात आई है, जिसमें प्रागभाव का तात्पर्य है “पूर्व पर्याय का वर्तमान में आभाव” और प्रध्वंसाभाव का अभिप्राय है “वर्तमान पर्याय में भावी पर्याय का आभाव”। इसका मतलब है कि जो उन्नत है वह कभी गिर भी सकता है और जो पतित है वह कभी भी उठ सकता है। यही कारण है कि सभी आचार्य महान तपस्वी भी त्रिकालवर्ती तीर्थंकरों को नमस्तु प्रस्तुत करते हैं और भविष्य काल के तीर्थंकरों को नमोस्तु करने में भावी नय की अपेक्षा सामान्य संसारी जीव भी शामिल हो जाते हैं, तब किसी की अविनय का प्रश्न ही नहीं उठता। आप सभी में केवलज्ञान की शक्ति विद्यमान है यह बात भी कुन्दकुन्दादि महान आचार्यों द्वारा पहचान ली गयी है।

अपने विनय का गुण विकसित करो। विनय गुण से असाध्य कार्य भी सहज साध्य बन जाते हैं। यह विनय गुण ग्राह्य है, उपास्य है, आराध्य है। भगवान महावीर कहते हैं-“ मेरी उपासना चाहे न करो, विनय गुण की उपासना जरूर करो”। विनय का अर्थ यह नहीं है कि आप भगवान के समक्ष विनय करो और पास पडोस में अविनय का प्रदर्शन करो। अपने पडोसी का यथा योग्य विनय करो। कोई घर पर आ जाये तो उसका सम्मान करो। “मनेन तृप्ति न तु भोजनेन” अर्थात सम्मान से तृप्ति होती है, भोजन से नहीं, अतः विनय करना सीखो। विनय गुण आपको सिद्धत्व प्राप्त करा देगा।

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#Amazing #Jainism #View mulnayak bhagwan Parshvanatha Ji.. @ Tirth kshetra KanakGiri, Karnataka -pic by mini jain, big thanks her!!

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Bhagwan mahavir Swami @ KanakGiri, Karnataka -pic by mini Jain -big thanks her

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