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🌀संस्मरण🌀 मुनि क्षमासागर जी द्वारा आत्मान्वेषी पुस्तक में लिखा गया संस्मरण.
जब पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का मुक्तागिरी चातुर्मास(१९८०) के बाद रामटेक की और विहार हुआ तो रास्ते में एक दिन अम्बाडा गाँव पहुँचते-२ अँधेरा छा गया | सारा संघ गाँव के समीप एक खेत में ठहर गया | खेत में ज्वार के डंठलो से बना एक स्थान था | रात्री विश्राम यही करेंगे, ऐसा सोचकर सभी ने प्रतिक्रमण किया और सामायिक में बैठ गए |
दिसम्बर के दिन थे | ठण्ड बढ़ने लगी |
रात नो बजे जब श्रावको को मालूम हुआ की आचार्य महाराज खेत में ठहरे है तो बिचारे सभी वहां खोजते-२ पहुचे| जो बनी सो सेवा की | स्थान एकदम खुला था, नीचे बिछे डंठल कठोर थे| इन सबके बाबजूद भी आचार्य महाराज अपने आसन पर अडिग रहे | किसी भी तरह से प्रतिकार के लिए उत्सुकता प्रकट नहीं की |
लगभग आधी रात गुजर गयी | फिर दिन भर के थके शरीर को विश्राम देने के लिए वे एक करवट से लेट गए | उनके लेटने के बाद ही सारा संघ विश्राम करेगा, ऐसा नियम हम सभी संघस्त साधुओ ने स्वत: बना लिया था, सो उनके उपरान्त हम सभी लेट गए |
ठण्ड बढती देखकर कुछ श्रावको ने समीप में रखे सूखे ज्वार के डंठल सभी के ऊपर डाल दिए | सब चुपचाप देखते रहे, किसी ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त्त नहीं की | लोग यह सोचकर निश्चिन्त हो गए की अब ठण्ड कम लगेगी, पर ठण्ड तो उतनी ही रही. डंठल का वोझ एवं चुभन अवश्य बढ़ गई |
उपसर्ग व परीषह के बीच शांत भाव से आत्म-ध्यान में लीन रहना ही सच्ची साधुता है, सो सभी साधूजन चुपचाप सब सहते रहे | सुबह हुई, लोग आये | डंठल अलग किये | हमारे मन में आया की श्रावको को उनकी इस अज्ञानता से अवगत करना चाहिए, पर आचार्य महाराज की स्नेहिल व निर्विकार मुस्कुराहट देखकर हमने कुछ नहीं कहा | मार्ग में आगे कुछ दूर विहार करने के बाद आचार्य महाराज बोले की “देखो, कल सारी रात कैसा कर्म निर्जरा करने का अवसर मिला, ऐसे अवसर का लाभ उठाना चाहिए |”
हम सभी यह सुनकर दंग रह गए | मन ही मन अत्यंत श्रद्धा और विनय से भरकर उनके चरणों में झुक गए | आज कर्म निर्जरा के लिये तत्पर ऐसे रत्नत्रयधारी साधक का चरण सान्निध्य मिल पाना दुर्लभ ही है |
Source.. आत्मान्वेषी -मुनि क्षमा सागर
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Acharya Shri #exclusive Picha @ Kundalpur:)) waaooo