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✿ जीवन में एक ऐसा नियम जरूर होना चाहिए जिसको पूरा करने के लिए जान-की बाजी भी लगा दी जाए,आचार्यों ने उस भील की प्रशंशा की जिसने सिर्फ कौवे का मांस छोड़ कर पांचवे स्वर्ग में देव हुआ,तुम जैन लोग मांस अदि भी नहीं खाते...तुम्हारी प्रशंशा नहीं की...क्योंकि उसके नियम के लिए उसने जान की बाजी लगा दी । www.facebook.com/vidyasagarGmuniraaj ---- मुनि श्री सुधा सागर जी.
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❖ हितोपदेश... मुनि कुन्थुसागर [ आचार्य विद्यासागर जी की जीवन से जुडी घटनाएं व् कहानिया ] ❖ @ www.facebook.com/VidyasagarGmuniraaj
संसारी प्राणी सुख चाहता है, दु:ख से भयभीत होता है. दु:ख छूट जावे ऐसा भाव रखता है. लेकिन दु:ख किस कारण से होता है इसका ज्ञान नहीं रखा जावेगा तो कभी भी दु:ख से दूर नहीं हुआ जा सकता.
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी कहतें है - कारण के बिना कोई कार्य नहीं होता इसलिए दु:ख के कारण को छोड़ दो, दु:ख अपने आप समाप्त हो जायेगा. सुख के कारणों को अपना लिया जावे तो सुख स्वत: ही उपलब्ध हो जावेगा. दु:ख की यदि कोई जड़ (कारण) है तो वह है - परिग्रह. परिग्रह संज्ञा के वशीभूत होकर यह संसारी प्राणी संसार में रुल रहा है, दु:खी हो रहा है. 'पर' वस्तु को अपनी मानकर उससे ममत्व भाव रखता है यही तो दु:ख का कारण है.
आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज जी ने परिग्रह त्याग के संबंध में बताया - एक बार कुम्हार, गधे के ऊपर मिटटी लादकर आ रहा था. वह गधा नाला पार करते समय नाले में ही बैठ गया. मिटटी धीरे धीरे पानी में गलकर बहने लगी. उसका परिग्रह कम हो गया और उसका काम बन गया, उसे हलकापन महसूस होने लगा. आचार्यश्री फिर हँसकर बोले - जब परिग्रह छोड़ने से गधे को भी आनन्द आता है तो आप लोगों को भी परिग्रह छोड़ने में आनन्द आना चाहिए. वहाँ बैठे श्रावक आचार्य भगवान के कथन का अभिप्राय समझ गए और सभी लोग आनन्द विभोर हो उठे. हँसी-हँसी में ही गुरुदेव से इतना बड़ा उपदेश मिल गया की - यदि इसे जीवन में उतारा जावे तो संसार से भी तरा जा सकता है और शाश्वत सुख को प्राप्त किया जा सकता है.
note* अनुभूत रास्ता' यह किताब आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के परम शिष्य मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी की रचना है, इसमें मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी ने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के अमूल्य विचार और शीक्षा को शब्दित किया है. इस ग्रुप में इसी किताब से रचनाए डालने का प्रयास है ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रावक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के विचारों और शीक्षा का आनंद व लाभ ले सके -Samprada Jain -Loads thanks to her for typing and sharing these precious teachings.
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शंका समाधान
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१. आप जिस भूमिका में हो उसे निभाते हुए धर्म कीजिये!
२. जैन दर्शन के अनुसार जाति व्यवस्था व्यक्ति के कर्मों के अनुसार निश्चित होती है! एक शूद्र भी ब्राम्हण बन सकता है!
३. जैन धर्म का तो पशु भी पालन कर सकता है! पशुओं को भी सम्यक दर्शन हो सकता है!
४. जिनसे उपवास नहीं बन पाता वो धीरे धीरे करके अभ्यास करे!
५. संकल्पित (नियम) होकर क्रिया करने का लाभ अलग ही है! जैसे की bank में current account में पैसे रखने पर कोई interest नहीं मिलता, जबकि ४५ दिन की भी FD कराने पे interest मिल जाता है! यानि की पैसे ना उठाने के संकल्प से interest मिलता है! मतलब संकल्प का महत्व है!
६. जैन दर्शन के अनुसार, ग्रहस्थ के लिए विरोधी हिंसा एक प्रकार से अहिंसा ही होती है क्योंकि यह हिंसा, अहिंसा के लिए की हुई होती है और ऐसी हिंसा की नहीं जाति, मजबूरी में करनी पड़ती है! एक सैनिक अगर सीमा पर लड़ाई करते हुए विरोधी की हिंसा भी करता है तो वह उसके लिए यह क्षम्य है, यह उसका धर्म है! हमारे कई तीर्थंकर भगवानों / चक्रवर्ती ने भी दिग्विजय प्राप्त की! रावण से की हुई लड़ाई राम का धर्म था! लेकिन ये भी ध्यान रखना चाहिए की पहले शत्रु को अहिंसा पूर्वक समझा के मित्र बनाने का प्रयास करना चाहिए!
- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज
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आप सभी को एक नये जैन तीर्थ से परिचय करवाते हुये हर्ष हो रहा है । यह स्थान है म.प्र.के बालाघाट जिले की बैहर तहसील मे छत्तीसगढ राज्य की सीमा से लगा हुआ स्थान है रधोली जहॉ अति प्राचीन मनोहारी दिगम्बर प्रतिमायें भगवान आदि नाथ, महावीर, शांति नाथ,नेमी नाथ की है।ये प्रतिमायें सैकडो वर्षो से वृक्छ के नीचे रखी हुई थी जिन्हे स्थानिय लोग घाना बाबा के नाम से पूजते है।यहॉ की बडी मान्यता यह है कि गंम्भीर से गंम्भीर रोग से पीडित मरीज यहॉ से निरोग होकर लौटता है ।माघ माह की पूर्णिमा के दिनो मे प्रति वर्ष यहॉ भव्य मेला लगता है जिसमे स्थानीय जन बडी संख्या मे उमडते है।यह भी आश्चर्य का विषय है कि अजैन वह भी आदिवासी गोंड जाति के लोेग हमेशा अहिंसक तरीके से ही जैन प्रतिमाओं की पूजन करते आ रहे है।यहॉ पर कभी बलि आदि की परंपरा देखने सुनने मे नही आई।आइये भाइयों हम भी दर्शन करें
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❖ तुम विद्या के सागर, हो आगम के आगर! तुम्ही से सुशोभित, हो जीवन का सागर!!
जब तुमको देखा समझ ये आया, महावीर स्वामी को साक्षात् पाया!
तेरी शांत मुद्रा में मैं खो गया हूँ, अनुपम छवि का दीवाना हो गया हूँ!1!
जिनवाणी को अंतस में बसाया, अंतर चक्षु मैं खुलते पाया!
तेरे मुख से जिनवाणी का मर्म, नयन पथगामी मैं बनू तुझ सम!2!
अध्यात्म सरोवर के राजहंस, निहारा तुझे जैसे आत्मा में बसंत,
तुझे देख इतना जान गया हूँ, मोक्ष मार्ग अब पहचान गया हूँ!3!
जब से देखा इस वीतराग दशा को, मान रहा हूँ धन्य स्वयं को!
कर्म बंधन कब को मैं भी तोडू, संसार सागर से नाता तोडू!4!
तुम विद्या के सागर, हो आगम के आगर! तुम्ही से सुशोभित, हो जीवन का सागर!!
I must call it 'भावो की अभिव्यक्ति - the expression of inner feelings' –Nipun Jain [ www.jinvaani.org ]
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आचार्य श्री चरण:) ✿ गुरुवर तेरे चरणों की, जिसे रज धूल मिल जाये.. आशीष तेरा पाकर, उसकी तक़दीर बदल जाये... ✿#vidyasagar #kundalpur
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