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दिनांक:- 27-05-2016
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👉 आचार्य तुलसी की कृति- "श्रावक संबोध" - श्रृंखला - 23प्रस्तुति - 🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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कल से आगे -
📝 श्रावक संबोध-23 📝
नव तत्व: ज्ञान का आधार
(दोहा)
22 - जानूं जीव अजीव मैं,
पुण्य पाप की बात।
आश्रव संवर निर्जरा
बंध मोक्ष विख्यात।।
अर्थ - जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष - ये नौ तत्त्व जैनदर्शन में प्रख्यात हैं। मैं इनको जानता हूं।
भाष्य - तत्त्व नौ हैं। प्रस्तुत पद्य में उनका नामांकन किया गया है। आगमों में श्रावक का विशद वर्णन उपलब्ध है। श्रावक जीव-अजीव को जानते हैं। पुण्य-पाप के मर्म को समझते हैं, आश्रव, संवर, निर्जरा, क्रिया, अधिकरण, बंध और मोक्ष के विषय में कुशल होते हैं। इस वर्णन के आधार पर श्रावक का तत्त्वज्ञ होना प्रमाणित होता है। तत्त्वज्ञान के स्तर में तरतमता हो सकती है। इसलिए जिनके पास जितना ज्ञान होता है, उसे निरन्तर पुष्ट करने का प्रयत्न आवश्यक है।
नौ तत्त्वों में मुख्य तत्त्व दो हैं - जीव और अजीव। शेष इन्हीं का विस्तार है। आश्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष का समावेश जीव तत्त्व में होता है। पुण्य, पाप और बंध का समावेश अजीव तत्त्व में होता है। नौ तत्त्वों का जो क्रम है, उसमें प्रथम जीव है और अंतिम मोक्ष है। जीव मूल तत्त्व है। मोक्ष उसका लक्ष्य है। बीच के सात तत्त्व बंधन और मुक्ति की प्रक्रिया बताने वाले हैं। जीव का अजीव के साथ गहरा संबंध है। सूक्ष्म और स्थूल - दोनों शरीर अजीव हैं। जब तक इन दोनों से छुटकारा नहीं होगा, जीव का मोक्ष नहीं हो सकेगा। पुण्य, पाप और बंध सूक्ष्म शरीर (कर्मशरीर) की परिणतियां हैं। आश्रव कर्मों का आकर्षक है। संवर और निर्जरा - ये दो तत्त्व मोक्ष के साधक हैं। मोक्ष प्रत्येक सम्यक्दृष्टि संपन्न व्यक्ति की मंजिल है। बंधन और मोक्ष की प्रक्रिया समझे बिना बंधन से मुक्ति की दिशा में प्रस्थान नहीं हो सकता, इसलिए नौ तत्त्वों का ज्ञान आवश्यक है।
क्रमशः....... कल
प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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