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दिगम्बर साधु का नग्न स्वरूप मज़ाक़ की वस्तु नई हैं #तरुणसागर #Jainism #Digambara #Tarunsagar #Tirthankara
दिगम्बर मुनिराज वे होते ह जो पूरे जीवन नग्न रहते हैं, 24 धंटे में एक बार शुध भोजन तथा जल खड़े होकर लेते हैं, जीवन भर ब्रह्मचारी रहते हैं, कही भी जाना हो हमेशा पैदल ही चलते हैं, कितना भी दूर जाना हो हमेशा पैदल चलते हैं, जैन धर्म की पुस्तकें पढ़ते हैं, ध्यान करते हैं, उपदेश देते हैं.. इन दिगम्बर साधु के एक भी पैसा/ बैंक अकाउंट/ मठ नई होता, जीवन भर चलते रहते ह एक से दूसरे जगह, मंदिर/ अकेला शांति स्थान/ धर्मशाला आदि में रहते हैं, अपने को भावो से शुद्ध बनाने का प्रयास करते हैं, किसी को भी उनके कारण परेशानी या दुःख ना हो ध्यान रखते हैं। www.jinvaani.org दिगम्बर साधु के नग्न रूप का मज़ाक़ क्रोध/बैर तथा अज्ञानता के कारण से कोई उड़ा लेता हैं तो उसको एक बार इन दिगम्बर के आचरण [ Lifestyle & Daily routine ] को देख लेना चाहिए फिर आप स्वतंत्र हैं!!! अगर आपका कोई प्रश्न हैं तो आप पूछ सकते हैं, इस पोस्ट को SHARE करे ताकि कोई भी जो दिगम्बर साधु के बारे में ना जानते हो वे भी जाने PLEASE -written by admin
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शंका समाधान
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१. मंदिर जी में बिना धुली द्रव्य / सामग्री तो कभी भी नहीं चढ़ानी चाहिए! late पहुंचने या किसी और वजह से अगर धुली द्रव्य / सामग्री नहीं चढ़ा पाए तो अपनी बिना धुली द्रव्य / सामग्री को मंदिर जी में द्रव्य पात्र में डाल कर पश्चाताप के रूप में उस दिन एक रस का त्याग करिये और आगे से कोशिश करे की समय पर पहुँच कर केवल धुली द्रव्य / सामग्री ही चढ़ाएं!
२. साधू का दिगम्बरत्व रूप साधना का एक उत्कृष्ट रूप है, विकार, दुर्बलता रहित है!
" चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री १०८ शांति सागर जी महाराज " ने एक बार जब हैदराबाद (जहाँ मुसलमान शासन था) की तरफ विहार किया तब वहाँ के निजाम ने आचार्य श्री की चर्या सुनकर अपनी बेगमों के साथ उनकी आरती उतारी! और कुछ लोगों के आपत्ति करने पर निजाम ने जो उत्तर दिया वो इतिहास बन गया! उन्होंने कहा की - " हमारे देश में नंगों पर प्रतिबन्ध है, फरिश्तों पर नहीं और ये एक फ़रिश्ते हैं "!
३. माँ बाप अगर अपनी संतान के आगे हाथ जोड़े तो ये संतान के धर्म की वजह से होना चाहिए! इसके उलट, माँ बाप अगर अपनी संतान के आगे अगर उनके अधर्म की वजह से हाथ जोड़ रहे हैं तो ऐसे बच्चों का जीवन व्यर्थ है!
४. नकारात्मक सोच, तत्व ज्ञान का अभाव, अंध विश्वास व्यक्ति का मनोबल तोड़ते हैं! इसके लिए साधू जन, महान लोगो के बीच रहे, तत्व का अभ्यास करे!
५. शास्त्रानुसार विवाह सामने वाले का कुल, रूप, सनाथता, व्यय, गुण, शील को देखकर करना चाहिए!
- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज
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जो भी कोई दिगंबर संतो की नग्नता पर गलत कमेंट करते हैं वे लोग कुछ नहीं जानते इन दिगंबर के बारे की वे नग्न क्यों हैं और उसका क्या कारन हैं और उनकी जीवन चर्या क्या हैं! Whosoever comments on Nakedness of Digambara Saints knows nothing about these 'Naked philosophers' aka Digambara Ascetics and their lifestyle!! #Digambara #Tarunsagar #Jainism #Tirthankara #Dalailama #तरुणसागर #monks
Digambara "sky-clad" is one of the two major schools of Jainism. The word Digambara (Sanskrit) is a combination of two words: dig (directions) and ambara (clothes), referring to those whose garments are of the element that fills the four quarters of space. Digambara monks do not wear any clothes. The monks carry picchi, a broom made up of fallen peacock feathers (for clearing the place before walking or sitting), kamandalu (a water gourd), and shastra (scripture).
Digambara monks do not wear any clothes as it is considered to be parigraha (possession), which ultimately leads to attachment. A Digambara monk has 28 mūla guņas (primary attributes). These are: five mahāvratas (supreme vows); five samitis (regulations); pañcendriya nirodha (five-fold control of the senses); Şadāvaśyakas (six essential duties); and seven niyamas (rules or restrictions).
Source: Wikipedia [ If you have any question regarding those Digambara saints, you can ask question in comment box. we will try to provide best possible answer as Jainism has mentioned. ] PLEASE SHARE THIS IMPORTANT CONTENT!
--- ♫ www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---
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जो भी कोई दिगंबर संतो की नग्नता पर गलत कमेंट करते हैं वे लोग कुछ नहीं जानते इन दिगंबर के बारे की वे नग्न क्यों हैं और उसका क्या कारन हैं और उनकी जीवन चर्या क्या हैं! Whosoever comments on Nakedness of Digambara Saints knows nothing about these 'Naked philosophers' aka Digambara Ascetics and their lifestyle!! #Digambara #Tarunsagar #Jainism #Tirthankara #तरुणसागर
Digambara "sky-clad" is one of the two major schools of Jainism. The word Digambara (Sanskrit) is a combination of two words: dig (directions) and ambara (clothes), referring to those whose garments are of the element that fills the four quarters of space. Digambara monks do not wear any clothes. The monks carry picchi, a broom made up of fallen peacock feathers (for clearing the place before walking or sitting), kamandalu (a water gourd), and shastra (scripture).
Digambara monks do not wear any clothes as it is considered to be parigraha (possession), which ultimately leads to attachment. A Digambara monk has 28 mūla guņas (primary attributes). These are: five mahāvratas (supreme vows); five samitis (regulations); pañcendriya nirodha (five-fold control of the senses); Şadāvaśyakas (six essential duties); and seven niyamas (rules or restrictions).
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❖ #Girnar #Neminath ❖ Sri Krishna & his master Ghora Angirasa/Neminatha Svami, The king Nebuchadnazzar has built temple to pay homage to Lord Neminatha [ Rishi ], the paramount deity of Mount Raivata/Girnar. Eye-opener text..
Neminatha Svami, the 22nd Tirthankara, There is a mention in the Chhandogya Upanishada III, that the sage 'Ghora Angirasa. imparted a certain instructions of the spiritual sacrifice to Krishna, the son of Devaki. The liberal payment of this scarify was austerity, liberality, simplicity, non-violence and truthfulness. These teachings of Ghora Angirasa seem to be the tenets of Jainism. Hence, Ghora Angirasa seems to be the Jain saint. The writers of the Jain scriptures say that Tirthankara Neminatha was the master of Krishna, the Ghora Angirasa. It may be possible to suggest that Neminatha was his early name and when he had obtained salvation after hard austerities, he might have been given the name of Ghora Angirasa.
In the Yajurveda, Neminatha seems to be clearly mentioned as one of the important Rishis. He is described as one who is capable of crossing over the ocean of life and death, as the remover of violence, one who is instrumental is sparing life from injury and so on. The Yajurveda probably beolongs to the twelfth century B. C. This indicates that Neminatha seems to be known at this time and flourished even before.
The king Nebuchadnazzar (940 B. C.) who was also the lord of Revanagara (in Kathiawara) and who belonged to Sumer tribe, has come to the lace (Dwarka) of the Yaduraja. He has built a temple and paid homage and made the grant perpetual in favour of Lord Neminatha, the paramount deity of Mt. Raivata. This inscription is of great historical importance. The king named Nebuchadnazzar was living in the 10th century B. C. It indicates that even in the tenth century B.C. there was the worship of the temple of Neminatha the 22nd. Tirthankara of the Jains. It goes to prove the historicity of Neminatha.
Source: Book 'Faith & Philosophy of Jainism, Copyright © Arun Kumar Jain, New Delhi, India' #Jinvaani #Arihant #Tirthankar #mahavir #Jainism #Jain #Dharma #Adinath
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Update
Yesterday Pravachan:) संत प्रभावित नहीं होते -आचार्य विद्यासागर जी #vidyasagar #digambara #Jainism #Tirthankara #Saint
आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा है कि पानी गरम हो सकता है, बरफ नहीं, इसी प्रकार मनुष्य प्रभावित होता है, संत या मुनि नहीं। आचार्यश्री रविवार को आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर हबीबगंज में प्रवचन दे रहे थे। इस दौरान इंदौर के भक्तों ने आचार्यश्री को इंदौर पधारने के लिए जोर से नारा लगाया। आचार्यश्री ने इसी विषय को प्रवचन का माध्यम बनाते हुए कहा कि किसी के शोर से संत मुनि प्रभावित नहीं होते। उन्होंने कहा कि जल का स्वभाव शीतलता है, लेकिन वह कुछ समय के लिए गरम हो सकता है। उसमें गरम होने की क्षमता है। लेकिन यदि वह बरफ बन जाए तो उसे गरम नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार मनुष्य कुछ समय के लिए प्रभावित हो सकता है, उसमें प्रभावित होने की पात्रता है, लेकिन मनुष्य एक बार सच्चा संत बन जाए तो उसे प्रभावित नहीं किया जा सकता। क्योंकि वह आत्मा में रमण करता है। आचार्यश्री ने कहा कि तीन लोक की शक्तियां भी सच्चे मुनि को पिघला नहीं सकती। क्योंकि उनके ज्ञान में ऐसे शक्तियां होती है। आप कितना ईंधन व्यय कर लो वे पिघलने वाले नहीं है। आत्मा का स्वभाव ऐसा है कि जो इसे महसूस करता है वह बर्फ की तरह उसमें जम जाता है। आचार्यश्री ने कहा कि गर्मी और ठंड में अंतर है। गर्मी सहन की जा सकती है, लेकिन बर्फ को सहन करना मुश्किल है। लेकिन याद रखना कि बर्फ की चटक लाभप्रद भी होती है। शरीर में सूजन हो जाने पर गरम सिकाई से ज्यादा लाभ बर्फ की सिकाई से होता है
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Today (29th Aug) is the 18th Anniversary of Dhiksha mahostava of H H Sri Madabinava Charukeerthi Bhattarakaru of Jaina Kashi Matha/ Monastery, Moodabidri, Dakshina Kannada district, Karnataka, South India. #Jainism #Charukerti #Moodbadri #Bhattarak #Tirthankara #Arihant
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❖ गिरनार जी की 4th टोंक पर ध्यान में डूबे हुए आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज!! #Girnar #neminath #vidyasagar #RajulNemi picture:)
Sri Krishna & his master Ghora Angirasa/Neminatha Svami, The king Nebuchadnazzar has built temple to pay homage to Lord Neminatha [ Rishi ], the paramount deity of Mount Raivata/Girnar. Eye-opener text...
Neminatha Svami, the 22nd Tirthankara, There is a mention in the Chhandogya Upanishada III, that the sage 'Ghora Angirasa. imparted a certain instructions of the spiritual sacrifice to Krishna, the son of Devaki. The liberal payment of this scarify was austerity, liberality, simplicity, non-violence and truthfulness. These teachings of Ghora Angirasa seem to be the tenets of Jainism. Hence, Ghora Angirasa seems to be the Jain saint. The writers of the Jain scriptures say that Tirthankara Neminatha was the master of Krishna, the Ghora Angirasa. It may be possible to suggest that Neminatha was his early name and when he had obtained salvation after hard austerities, he might have been given the name of Ghora Angirasa.
In the Yajurveda, Neminatha seems to be clearly mentioned as one of the important Rishis. He is described as one who is capable of crossing over the ocean of life and death, as the remover of violence, one who is instrumental is sparing life from injury and so on. The Yajurveda probably beolongs to the twelfth century B. C. This indicates that Neminatha seems to be known at this time and flourished even before.
The king Nebuchadnazzar (940 B. C.) who was also the lord of Revanagara (in Kathiawara) and who belonged to Sumer tribe, has come to the lace (Dwarka) of the Yaduraja. He has built a temple and paid homage and made the grant perpetual in favour of Lord Neminatha, the paramount deity of Mt. Raivata. This inscription is of great historical importance. The king named Nebuchadnazzar was living in the 10th century B. C. It indicates that even in the tenth century B.C. there was the worship of the temple of Neminatha the 22nd. Tirthankara of the Jains. It goes to prove the historicity of Neminatha.
Source: Book 'Faith & Philosophy of Jainism, Copyright © Arun Kumar Jain, New Delhi, India' #Jinvaani #Arihant #Tirthankar #mahavir #Jainism #Jain #Dharma #Adinath
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News in Hindi
यदि आपको मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज के प्रवचन कि clipping नियमित रूप से नही मिल रहे है तो कृपया मुझे लिखें
मैत्री समूह
+91 98-27-440301
[email protected]
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स्यादवाद सप्तभंगी अनेकांत से हैं रंगी.. चारु चंद्रमा सी उज्जवल ज्योति प्रगताड़े ना.. जिनवानी माँ:) #Jinvaani #Arihant #Tirthankar #mahavir #Jainism #Jain #Dharma
ऐ जिनेंद्र प्रभु आपका अनेकांतवाद का जो RULE आपने दिया.. जो तो amazing हैं.. ये RULE कहता हैं जो मेरा thought हैं सिर्फ़ वही सत्य नहीं हैं बल्कि जो दूसरे सोचते हैं वह भी truth का part हैं! आपके मानने वाले कोई फल से पूजा करे तो कोई मेवा से करे तो कोई रत्नो से पूजा करे ओर सब पुण्य कमाए जाते हैं सब भावना हैं उनकी.. सब अलग अलग thought रखते हुए भी वात्सल्य rakhte ह एक दूसरे से.. जब जीव मात्र के लिए दया की बात हैं तो कोई पूजा अभिषेक के नाम पर तो बिलकुल नहीं लड़ सकता जिसके दिल में आपका वास हैं ओर जिसने धर्म को सही meaning में समझा हैं:)
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