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Gadal, Dharapur, Guwahati, Assam, India
अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
आगमवाणी और गीत संगान का अनुपम संगम है अर्हत वन्दना
-अर्हत वन्दना से भी ज्ञान का सरलता से उठाया जा सकता है लाभ
-आचार्यश्री ने संयम का दिखाया पथ, कहा संयम साधना का सहायक तत्त्व
-साध्वीवर्याजी ने समस्या के तीन कारणों का किया विवेचन
12.09.2016 गड़ल (असम)ः अर्हता वन्दना प्रातः और सायं की जाती है। इसमें अर्हतों की वाणी अर्थात आगम के सूक्त और गीत का समन्वय होता है। इसके माध्यम से अर्हतों की वन्दना व आराधना की जाती है। आगम वाक्य और गीतों यह एक गुंथित अनुष्ठान सा है। इसमें आर्षवाणी का ध्यान व स्वाध्याय भी हो जाता है और ज्ञान और भावनामय गीत का संगान भी हो जाता है। अर्हत वन्दना में पूर्ण रूप से स्थिर, ध्यानस्थ होने का प्रयास करना चाहिए। यह भी ज्ञानार्जन का बहुत अच्छा माध्यम है। आदमी को यदि आगम पाठ के अर्थ का बोध हो और भावना पवित्र हो तो इससे ज्ञान का अर्जन भी किया जा सकता है और भी वन्दना का अधिक से अधिक लाभ भी उठाया जा सकता है। सोमवार को चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अर्हत वन्दना की महिमा बताई और उससे ज्ञानार्जन का रास्ता दिखाया।
आचार्यश्री ने साधु-संतों को समता धर्म को धारण करने की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को समता भाव की आराधना करनी चाहिए। परिस्थितियां अनुकूल हों या प्रतिकूल समता भाव बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के जीवन में मान-सम्मान की स्थिति आती है या कभी कहीं अपमान की स्थिति भी आ सकती है-इन दोनों परिस्थितियों में साधु हो आदमी को दोनों को समता भाव बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी गुस्सा करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। गुस्सा विषमता तो शांत रहना समभाव रहने में सहायक साबित हो सकता है। आदमी समता भाव की आराधना करे तो अपने जीवन को सुखमय बना सकता है। आचार्यश्री ने ‘यह वक्त बीत जाएगा’ को समता भाव बनाए रखने का सूत्र बताते हुए कहा कि यदि कोई समय कष्टदाई भी आया है तो वह भी बीत और यदि सुख प्रदान करने वाला या अनुकूल हो जाए तो वह भी बीत जाने वाले होता है। जब आदमी के ध्यान में यह बात का ध्यान होगा कि यह वक्त बीत जाएगा तो वह अपने भीतर समता भाव को विकसीत कर सकता है। आदमी समता की साधना करे तो मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्याजी ने श्रद्धालुओं को समस्याओं का मूल कारण अज्ञान को बताते हुए कहा कि आदमी के भीतर जब तक अज्ञान रूपी अंधकार विद्यमान रहता है आदमी समस्याओं से घिरा रहता है। आदमी को ज्ञानार्जन का प्रयास करना चाहिए। ज्ञानार्जन के लिए आदमी को अपनी आत्मा को शुद्ध और स्वच्छ बनाना चाहिए। स्वाध्याय और ध्यान के माध्यम से आदमी अपनी आत्मा को शुद्ध बना सकता और अपने भीतर के अज्ञान रूपी अंधकार को भी मिटा सकता है।
कार्यक्रम के अंत में उत्तरी कर्नाटक से पहुंचे श्रद्धालुओं के संघ ने आचार्यश्री के दर्शन किए और मंगल आशीष प्राप्त किया।
चन्दन पाण्डेय
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