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आज के दिन महावीर कहते है की जो जोड़ा है उसे छोड़ दो
अगर वृक्ष अपना फल देना बंद कर दे तो वृक्ष की क्या स्थिति होगी... उसमें लगा लगा वो फल सड़ जाएगा.. उसकी जड़ ने सृजन तो किया लेकिन विसर्जन नहीं किया
यदि हम भोजन का सृजन ही सृजन करें और मल विसर्जन ना करें तो क्या होगा..? शरीर में बीमारियाँ लग जाएगी..
इसी तरह अगर हम परिग्रह का सृजन ही सृजन करे और इसका परित्याग ना करे विसर्जन ना करें तो सब समान धीरे धीरे ख़राब हो जाएगा, उपयोगी नहि रहेगा
महावीर कहते है की सृजन के साथ विसर्जन की कला सिख लो
इसलिए जैन धर्म में पूजा करते हैं जिनदेव की, जिसने विसर्जन ही विसर्जन किया है।
इच्छा ख़ुशी का कारण है, लेकिन इच्छा का त्याग चीर सुख का माध्यम बनता है
अगर इच्छा को छोड़ दोगे तो सुख और दुःख से दूर एक अलग आनंद होगा।
मोह-माया से मुक्त होने का प्रयास करना ही त्याग है. संसार के प्रति मर जाना और सन्यास के प्रति जाग जाना।
दान और त्याग में अंतर महावीर ने ऐसे बताया की,
१. दान पुण्य में कारण है और त्याग धर्म में कारण है ।
२. दान हमेशा अछी वस्तु का होता है, त्याग बुराइयों का होता है।
३. दान में ग़रीब-अमीर का भेद है, त्याग कोई भी कर सकता है।
४. दान में दो की आवश्यकता है एक लेने वाला एक देने वाला, त्याग में किसी की आवश्यकता नहीं त्याग केवल अपने मन से होता है।
५. दानी का सम्मान होता है, त्यागी की पूजा होती है।
अतः दान और त्याग अलग अलग हैं लेकिन अभ्यास करवाने के लिए दोनो को मिला दिया गया है ।
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