15.09.2016 ►TMC ►Terapanth Center News

Published: 15.09.2016
Updated: 09.01.2018

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📢 गुवाहाटी: हाजरी वाचन
पुज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में आज "मर्यादा पत्र" का वाचन हुआ। गुरु सन्निधि से कार्यक्रम की नयनाभिराम झलकियां।

15.09.2016
प्रस्तुति > #तेरापंथ मीडिया सेंटर
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News in Hindi

💠 *तुषरा,ओडिशा*
★आचार्य भिक्षु चरमोत्सव।
💠 *अहमदाबाद*
★आचार्य भिक्षु चरमोत्सव।
💠 *बैंगलोर*
★विजयनगर- आचार्य भिक्षु चरमोत्सव।
★यशवंतपुर- मासखमण तप अभिनन्दन।

15.09.2016
प्रस्तुति > *तेरापंथ मीडिया सेंटर*
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🌎 आज की प्रेरणा 🌏
प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण
प्रस्तुति - अमृतवाणी 📺
संप्रसारण - संस्कार चैनल के माध्यम से:-
पुरुषार्थ से वीर्य प्राप्त होता है | भाग्यवाद, नियतिवाद और पुरुषार्थवाद यह एक सिद्धांत है | जैन तत्व विद्या में परिणामिक भाव की बात है| अभव्य कभी मोक्ष नहीं जाता | भव्य कभी अभव्य नहीं बन सकता और अभव्य कभी भव्य नहीं बन सकता | यह एक नियम है, नियति है इसे बदला नहीं जा सकता | अनंत आकाश में लोकाकाश है, यह भी एक नियम है | केवली के द्वारा जाना गया व कहा गया वचन सदा सत्य होता है | वीतरागता के पथ पर हमारी निष्ठा व समर्पण रहे | भगवान महावीर का तीर्थंकर बनना भी तय था, नियत था | होनहार व नियति को टाला नहीं जा सकता व अनहोनी होती नहीं तो फिर बैचेनी क्यों? नियति में कोई परिवर्तन नहीं होता जबकि भाग्य में परिवर्तन हो सकता है इसलिए भाग्य भरोसे न बैठकर हमें पुरुषार्थ करना चाहिए | न तो एकांत भाग्यवादी बनें न एकांत पुरुषार्थ वादी | काव्य में भी तो शब्द व भाव दोनों का महत्व होता है |

दिनांक - १५ सितम्बर २०१६, बृहस्पतिवार

🌎 आज की प्रेरणा 🌏
प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण
प्रस्तुति - अमृतवाणी 📺
संप्रसारण - संस्कार चैनल के माध्यम से:-
पुरुषार्थ से वीर्य प्राप्त होता है | भाग्यवाद, नियतिवाद और पुरुषार्थवाद यह एक सिद्धांत है | जैन तत्व विद्या में परिणामिक भाव की बात है| अभव्य कभी मोक्ष नहीं जाता | भव्य कभी अभव्य नहीं बन सकता और अभव्य कभी भव्य नहीं बन सकता | यह एक नियम है, नियति है इसे बदला नहीं जा सकता | अनंत आकाश में लोकाकाश है, यह भी एक नियम है | केवली के द्वारा जाना गया व कहा गया वचन सदा सत्य होता है | वीतरागता के पथ पर हमारी निष्ठा व समर्पण रहे | भगवान महावीर का तीर्थंकर बनना भी तय था, नियत था | होनहार व नियति को टाला नहीं जा सकता व अनहोनी होती नहीं तो फिर बैचेनी क्यों? नियति में कोई परिवर्तन नहीं होता जबकि भाग्य में परिवर्तन हो सकता है इसलिए भाग्य भरोसे न बैठकर हमें पुरुषार्थ करना चाहिए | न तो एकांत भाग्यवादी बनें न एकांत पुरुषार्थ वादी | काव्य में भी तो शब्द व भाव दोनों का महत्व होता है |

दिनांक - १५ सितम्बर २०१६, बृहस्पतिवार

🔯 गुरुवचनों को अपनाये - जीवन सफल बनायें 🔯
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🙏 जय जिनेन्द्र सा 🙏

दिनांक- 15-09-2016
तिथि: -भाद्रव सुदी चौदस (14)

गुरुवार का त्याग/पचखाण

1> आज *रात्रि भोजन* करने का त्याग करे।

जय जिनेन्द्र
प्रतिदिन जो त्याग करवाया जाता हैं सभी से निवेदन है की आप स्वेच्छा से त्याग आवश्य करे। छोटे छोटे त्याग करके भी हम मोक्ष मार्ग की आराधना कर सकते हैं। त्याग अपने आप में आध्यात्म का मार्ग हैं।
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