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दुर्ग! ‘‘अपने भीतर प्रवेश करना पुरूषार्थ है और प्रवेश कर शांति की स्वानुभूति प्राप्त करना उपलब्धि है। अंतर्रात्मा में उतरे बिना शांति की अनुभूति संभव नहीं। हमारी भाग दौड़ शांति के लिए किंतु दिशा सुख की ओर से। काल्पनिक सुखों की आकांक्षा ही ही हमें भौतिक संसाधनों मान-सम्मान और प्रशंसा पाने के लिए पे्ररित करती है जो स्थायी नहीं है। सांसारिक जीवन में सुख और दु:ख एक ही सिक्के के दो पहलू है। आत्मशांति के लिए मौन रहकर अपने हृदय में स्वयं उतरे और स्वानुभूति करें। बुद्धि की सम्यक समझ से ही इस उपलब्धि को प्राप्त किया जा सकता है। उक्त विचार आज ऋषभ नगर, दुर्ग में श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ एवं श्री संघशास्ता चातुर्मास समिति द्वारा आयोजित प्रवचन श्रृंखला में आचार्यश्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी ने श्रावक-श्राविकाओं को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। http://www.jahajmandir.org/