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❖ नैनागिर में हुआ था चमत्कार ~बात 1993 की है, आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ नैनागिर में विराजमान थे, वैसे तीर्थक्षेत्रों पर भीड़ कम रहती है, परन्तु जहाँ स्वयम चलते फिरते तीरथ विराजमान हों वहाँ तो मेला लगा ही रहता है, सुबह का समय था आचार्य भगवन ससंघ मंच पर आसीन थे और प्रवचन चल रहे थे... #Nainagir #SiddhaKshetra [ NOTE: Ye pic alag incident ki hain and story alag incident ki hain ]
सब लोग शांत होकर गुरु की अमृत वाणी सुन रहे थे, वही टेंट के खम्बे के पास एक छोटा सा छिद्र था उसमे एक सर्प छिपा हुआ आराम से आचार्य भगवन को देख रहा था, अचानक पास बैठे एक व्यक्ति की नजर उसपर गई और वो घबराकर उठ गया और चिल्लाने लगा सांप - सांप, उसे देखकर सब लोग उठकर खड़े हो गए और इधर उधर भागने लगे वो सर्प मंच के पास आया और जोर जोर से नृत्य करने लगा, वहाँ उपस्थित लोग आश्चर्य से देखने लगे ये क्या हो रहा है, आचार्य भगवन भी अपनी चिरपरिचित मुस्कान लिये उसे देख रहे थे, उस समय मोबाइल नही चलते थे तो कुछ कैमरे वाले लोग जो वहाँ आचार्य श्री के प्रवचन रिकॉर्ड कर रहे थे, वो अपने कैमरे से पूरी घटना रिकॉर्ड करने लगे, थोड़ी देर बाद उस सर्प ने आचार्य श्री को तीन बार जमीन पर फन रखकर नमोस्तू किया, आचार्य श्री ने उसे हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया और सबके सामने से वो सर्प अचानक से ही गायब हो गया वहाँ उपस्थित लोगों ने उसे बहुत ढूढ़ने की कोशिस की लेकिन कहीं नही मिला आचार्य श्री ने सबसे बैठने के लिये कहा
वो सर्प तो चला गया, वहाँ तीन लोगों ने कैमरे से पूरी घटना रिकॉर्ड की थी जब उसकी रिकोर्डिंग देखी तो फिर से चमत्कार हुआ, तीनों कैमरों में सब कुछ आया, आचार्य श्री ससंघ आये, वहाँ उपस्थित जितने लोग थे सब आये... लेकिन वो सर्प किसी भी कैमरे में कहीं भी नही दिखा, बार बार रिपीट करके देखते रहे तीनों कैमरा वाले, पर वो कोई साधारण सर्प नही था वो तो देव थे जो आचार्य भगवन को सुनने उनके दर्शन करने सर्प का रूप रखकर धरती पर आये थे
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*शंका समाधान - 8 Nov.' 2016*
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१. *सम्यक दर्शन के उपगूहन अंग को बहुत अच्छे से समझना चाहिए* - (व्यक्ति का नाम लिए बिना) जो दोष प्रकट करने से समष्टि की सुरक्षा होती हो उसमे कोई दोष नहीं है, और अगर समष्टि की हानि हो रही हो तो उन दोषों को छिपा लेना चाहिए ।
२. *शास्त्रों के अनुसार, पूजन के बर्तन आदि में बीजाक्षर लिखने का कोई विधान नहीं है, स्वास्तिक लिखना चाहिए* और फिर उन बर्तन आदि की सफाई करने में कोई दोष नहीं है ।
३. *शिखर जी की वंदना जूते - चप्पल पहन के करने में महान दोष है, इससे अच्छा है कि आप वंदना ही ना करें ।* वहां मोटे वाले मोज़े मिलते हैं उनको पहन सकते हैं ।
४. जैन दर्शन में व्रत आदिक शरीर को कृष करने के लिए नहीं किये जाते, अपितु शरीर को समर्थ बनाने के लिए किये जाते हैं ।
५. प्रारंभिक भूमिका में इंसानियत को ही धर्म मान कर चलना चाहिए ।
६. *भक्ति में बहुत बड़ी शक्ति होती है । भक्ति करते रहिये, शक्ति जगेगी और मुक्ति अपने आप मिलेगी ।*
७. *अपनों की मृत्यु होने पर संवेदना जगती है जबकि " मैं " कि मृत्यु होने पर प्रेम प्रकट होता है । अपने ego को go कर दीजिये ।*
८. जिनको अपने गुणों का भान होता है उनको किसी से ईष्या नहीं होती और वो दूसरों के अवगुणों को नहीं देखते ।
*- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज*
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दिगम्बर में बनके विचरु, वो घड़ी कब आएगी.. जिनवर बनने को निकलू, वो घड़ी कब आएगी.. आएगा वैराग्य मुझको इस संसार से.. सर्व बंधन तोड़के निकलू में सब त्याग कर...:):) अहा...
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Ten classic and new undyingly melodious songs which reflect the fire and intensity of thirst to embrace the final step of initiation - Saiyam, have been fuse...
#JainBhajan 30000 people have already experienced the bhaav of Saiyam in the mystical voices of 10 different singers. Have you? If not, experience it right now.
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