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❖ PROUD INFO:) Sri.Virachand Raghavji Gandhi. #VirachandGandhi #Gandhi #Chicago #Vivekanand
He represented Jainism at world religious parliament in Chicago along with Sri. Swamy Vivekanand in 1893. VR Gandhi a Gujarati Jain, was a polyglot who spoken fourteen languages and was a successful barrister.
VR Gandhi was a close friend of Mahatma Gandhi. VR Gandhi helped Mahatma Gandhi in his struggle to establish a legal practice.
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*शंका समाधान - 9 Nov.' 2016*
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१. *भगवान् के समवसरण की अंतिम भूमि श्री मंडप में पहुँचने वाला नियमतः सम्यक दृष्टि होता है ।* लेकिन अगर बाद में पथ भ्रष्ट होता है तो अर्ध पुद्गल परावर्तन (असंख्य समय) तक संसार में भटक सकता है ।
२. बहुत से लोग निश्चय का आश्रय तो ले लेते हैं लेकिन निश्चय से निश्चय का मतलब नहीं जान पाते । उनको शास्त्रों में निश्चयाभासी बताया है और वो अपनी क्रिया और चर्या को नष्ट करके भ्रष्ट हो जाते हैं ।
३. *केवली भगवान् की जो भी क्रिया होती है वो नियोगतः होती है, इच्छा से नहीं ।*
४. विवेकी / योग्य व्यक्ति भंवरों की भांति होता है जिसको कोई भी आकर्षक वस्तु आकृष्ट नहीं कर पाती और वह अपनी दृष्टि फूल के अंदर के पराग पर ही रखता है । जबकि अयोग्य / अज्ञानी व्यक्ति मक्खी की तरह होता है जिसके सामने मिठाई और विष्ठा रखी हो तो भी भेद नहीं कर पाती और विष्ठा पर बैठ जाती है ।
५. जाप करने से हमारे संकेत भगवान् के पास नहीं बल्कि हम स्वयं भगवान् के पास पहुँच जाते हैं ।
६. *पंचम काल में यह हमारा सौभाग्य है कि भले ही हमको तीर्थंकर भगवान् नहीं मिल पाया लेकिन तीर्थंकर सम आचार्य गुरुदेव का सानिध्य प्राप्त हुआ ।*
७. बुद्धि और भावनाओं में सामंजस्य होना चाहिए । संबंधों और मानवीयता में भावनाओं से और व्यापार में बुद्धि से काम लेना चाहिए ।
८. पूजा के समय भगवान् को चढ़ाने का और अपने लगाने के लिए चन्दन अलग अलग रखने चाहिए ।
९. *हमारे गुरुदेव में लोकान्तिक देव होने के लिए शास्त्रों में जो जो लक्षण बताये हैं, वो सारे मौजूद हैं ।*
१०. गृहस्थ को पहले, प्रारंभिक चरण में बंधनों को कम करने का प्रयास करना चाहिये । उसके लिए एक तो वह जल में पड़े वाले कमल की तरह अनासक्ति से रहने का प्रयास करे, दूसरा जितना संभव हो सके उतना संयम धारण करें ।
११. *भगवान एक हैं, वीतराग है और सबके हैं । दीपक को ना देखकर उसकी ज्योति को देखिये सब एक ही दिखेंगे ।*
१२. *भगवान् का समवशरण मायामय नहीं होता यानि कि विक्रिया से नहीं बनता*, अपितु देव लोग स्वर्ग कि दिव्य निधियों को use करके टेक्निक से बनाते हैं । और समवशरण विघटित होने के बाद वो सारी निधियां वापस वही चली जाती हैं जहाँ से आयी थी ।
*- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज*
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News in Hindi
108 वाहनों से अशोकनगर से भोपाल पहुंचे करीबन 3000 लोग, हर घर से एक सदस्य हुआ शामिल... आचार्यश्री बोले- मेरे पीछे आ जाओ मैं तुम्हें अशोकनगर (शोक रहित स्थान) ले चलता हूं:)
आचार्यश्री को आमंत्रित करने भोपाल पहुंचे हजारों भक्तों से आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कहा कि तुम सब मेरे पीछे आ जाओ मैं तुम्हें अशोकनगर (शोक रहित स्थान) ले चलता हूं। वहां आनंद ही आनंद होगा। उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा है कि अशोकनगर वाले भक्ति में मग्न होकर सबकुछ भूल गए हैं। यह क्षण बहुत दुर्लभ होता है। इस तरह का आनंद सौधर्म इंद्र को भी नहीं मिल पाता है। ज्ञात हो कि आचार्यश्री को आमंत्रित करने के लिए मंगलवार रात को 51 बस और 57 कारों से करीबन 3 हजार भक्त भोपाल गए थे।
इतनी अधिक संख्या होने के बावजूद सभी लोग अनुशासित थे। किसी भी भक्त ने चलते समय पैर छूने की कोशिश नहीं की। सुबह 9 बजे आचार्यश्री जैसे ही पाण्डाल में विराजमान हुए। सभी भक्तों ने एक साथ जोरदार जयकारा लगाया। इस मौके पर अधिक से अधिक भक्तों ने आचार्यश्री को शास्त्र भेंट किए। इस मौके पर आचार्यश्री की महापूजन की गई। ।
समाज की ओर से अध्यक्ष रमेश चौधरी, युवाजन की ओर से विजय धुर्रा ने आचार्यश्री से अशोकनगर में शीतकालीन वाचना करने का आग्रह किया। शैलेंद्र श्रंगार ने अपनी मधुर आवाज में महापूजन गायी। प्रतिष्ठाचार्य प्रदीप भैया, मुकेश भैया ने अर्घ चढ़वाए। धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि व्यक्ति जब आनंद की गहराई में उतरकर सोचता है कि हम कहां भटक कर आ गए हैं। तब उसका चिंतन इस तरफ बढ़ता है। वह अविनश्वरता की ओर आगे बढ़ता है। आप लोग ऐसी भक्ति में रम गए कि तांडव नृत्य करने वाला इंद्र भी इतने आनंद का अनुभव नहीं कर सकता है। सौधर्म इंद्र भी इनकी भक्ति में पीछे रह गया। लेकिन यह तो बहुत थोड़े अंश में है। पूरा आनंद तो डूबने पर आएगा। अभी तो तुमने पानी में पैर रखा है डुबकी भी लगाओ। तभी तुम अशाेकनगर का अनुभव कर पाओगे। उस अविनश्वर अशोकनगर का।
35 साल पहले आए थे अशोकनगर में आचार्यश्री 35 साल पहले आए थे। तभी से भक्त उनकी राह देख रहे हैं। अब तक कई बार समाजजन, पदाधिकारी और भक्त आमंत्रण के लिए आ चुके हैं। हथकरघा की बात आई तो दान के लिए खुल गए हाथ घर-घर हथकरघा लगाने की आचार्यश्री की राष्ट्रवादी सोच को मजबूत करते हुए अशोकनगर से भोपाल पहुंचे भक्तों ने मुक्त हस्त से दान दिया। पांच मिनट का समय और दान राशि करोड़ों में पहुंच गई। लिखने वाले लिखने में ही पिछड़ गए लेकिन दान देने वालों का क्रम नहीं टूट रहा था।
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